”लड़की भविष्य को लेकर ज़्यादा महत्वाकांक्षी नहीं होनी चाहिए. अगर लड़की महत्वाकांक्षी नहीं होगी तो कौन होगा? लड़का कभी काम करता है? टाटा, बाय-बाय मिस्टर हैंडसम.”
अंधेरी जगह पर बैठी दो बहनें अनुजा और पलक टॉर्च की रौशनी से अखबार में ‘वर, वधु चाहिए’ वाले विज्ञापन पढ़ते हुए ये बातें कहती हैं.
भारतीय कहानी पर आधारित शॉर्ट फ़िल्म ‘अनुजा’ अब ऑस्कर्स यानी द अकेडमी अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट हुई है. ये शॉर्ट फ़िल्म 23 मिनट की है. ‘अनुजा’ बेस्ट लाइव एक्शन शॉर्ट फ़िल्म कैटेगिरी में नॉमिनेट हुई है.
‘अनुजा’ के लेखक और डायरेक्टर एडम जे ग्रेव्स हैं. प्रियंका चोपड़ा जोनास अनुजा की एक्ज़ीक्यूटिव प्रोड्यूसर हैं. फ़िल्म के नौ प्रोड्यूसर्स में से एक गुनीत मोंगा कपूर भी हैं.
2023 में ‘बेस्ट शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री’ कैटेगिरी में ऑस्कर जीतने वाली भारतीय डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म ‘द एलीफ़ेंट व्हिसपरर्स’ की प्रोड्यूसर भी गुनीत मोंगा थीं. ये ऑस्कर जीतने वाली पहली भारतीय डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म थी. गुनीत की शॉर्ट फ़िल्म पीरियड भी ऑस्कर्स में सफल रही थी.
इस रिपोर्ट में हम आपको ‘अनुजा’ फ़िल्म की कहानी, फ़िल्म से जुड़े लोगों और ऑस्कर जीतने वाले भारतीयों बारे में कुछ अहम बातें बताएंगे. साथ ही ये भी जानेंगे कि ऑस्कर तक पहुंचने की प्रक्रिया कैसी है?
‘अनुजा’ की कहानी क्या है?
‘अनुजा’ फ़िल्म दो बहनों की कहानी है. जो दिल्ली की एक कपड़ा फैक्ट्री में काम करती हैं. इस दौरान ज़िंदगी की चुनौतियां और दो बहनों की बातचीत के ज़रिए फ़िल्म की कहानी आगे बढ़ती नज़र आती है.
अनुजा की उम्र फ़िल्म में नौ साल है और वो अपनी बहन पलक के साथ रहती है. अनुजा का किरदार सजदा पठान और पलक का किरदार अनन्या ने निभाया है.
सजदा ‘सलाम बालक ट्रस्ट’ के सेंटर में रहती हैं. ये ट्रस्ट बाल श्रम से छुटकारा, लड़कियों की शिक्षा, मौक़ा दिलाने और रहने का ठिकाना उपलब्ध करवाने की दिशा में काम करता है.
फ़िल्म के ट्रेलर में ये बहनें बोर्डिंग स्कूल में पढ़ाई, मैटरिमोनियल विज्ञापनों पर बातें करती सुनाई देती हैं.
लड़कियों को समाज में जिन घूरती नज़रों से जूझना पड़ता है, उसकी भी एक झलक ‘अनुजा’ के ट्रेलर में दिखती है.
फ़िल्मी दुनिया की अहम वेबसाइट आईएमडीबी के मुताबिक़, फ़िल्म में अनुजा को स्कूल में पढ़ने का एक मौक़ा मिलता है.
फ़िल्म की कहानी में इन बहनों के सामने ये चुनौती है कि वो कैसे इस अहम फ़ैसले तक पहुंचती हैं. ज़ाहिर है ये फ़ैसला इन बहनों की ज़िंदगी बदल सकता है.
अनुजा के डायरेक्टर कौन हैं?
‘अनुजा’ फ़िल्म की वेबसाइट के मुताबिक़, एडम जे ग्रेव्स ने यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसलवेनिया से बीए और पीएचडी की पढ़ाई की.
वो लंबे वक़्त तक बनारस में भी रहे. एडम ने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से संस्कृत की पढ़ाई की है.
एडम ने राजस्थान, बिहार, यूपी और मध्य प्रदेश की कई एनजीओ से भी जुड़े रहे. फ़िल्म की प्रोड्यूसर सुचित्रा मत्तई हैं. सुचित्रा एडम की पत्नी भी हैं.
यूनीसेफ के मुताबिक़, दुनिया में औसतन 10 में से एक लड़की बाल श्रम से जूझ रही होती है. एडम इस आंकड़े और अपने आस-पास की बच्चियों की हालत को इस फ़िल्म को बनाने की वजहों में गिनाते हैं.
एडम कहते हैं, ”मैं जिन लड़कियों से मिला वो मुश्किल हालात के बावजूद काफी प्रेरक लगीं, वो गिफ्टेड थीं. इन लड़कियों की काबिलियत से प्रभावित हुए बगैर रहना नामुमकिन था. इन लड़कियों के अनुभवों पर फ़िल्म बनाना ज़रूरी था.”
ऑस्कर की रेस में कब-कब रहा है भारत?
फ़िल्मी दुनिया में ऑस्कर प्रतिष्ठित पुरस्कार है.
अब तक कई भारतीय ऑस्कर पुरस्कार जीत चुके हैं. हालांकि इसमें ऑस्कर उन फ़िल्मों को ज़्यादा मिला है, जिसका विदेशी कनेक्शन हो.
जिन भारतीयों को अब तक ऑस्कर मिला है, उनमें ये नाम शामिल हैं:
- 1983: भानू अथैया को फ़िल्म ‘गांधी’ के लिए ‘बेस्ट कॉस्ट्यूम डिजाइन कैटेगिरी के लिए ऑस्कर मिला था.
- 1992: भारतीय फिल्मकार सत्यजीत रे को ‘ऑनररी लाइफ टाइम अचीवमेंट’ पुरस्कार से नवाज़ा गया था.
- 2009: रसूल पोकुट्टी को ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ फ़िल्म के लिए ‘साउंड मिक्सिंग’ में ऑस्कर मिला था.
- 2009: ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ फ़िल्म के लिए ‘ओरिजिनल सॉन्ग’ के लिए गुलज़ार और ‘ओरिजनल स्कोर’ के लिए एआर रहमान को भी अवॉर्ड मिला था.
- 2023: ‘द एलीफ़ेंट व्हिसपरर्स’के लिए गुनीत मोंगा और कार्तिकी को भी ‘बेस्ट डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट कैटेगिरी’ में ऑस्कर मिला था.
- 2023: फ़िल्म ‘आरआरआर’ के गाने ‘नाटू-नाटू’ के लिए संगीतकार किरावानी और गीतकार चंद्रबोस को ‘ओरिजिल सॉन्ग’ कैटेगिरी में ऑस्कर मिला.
इसके अलावा भारतीय मूल के राहुल ठक्कर, कोटालांगो लियोन को 2016 और विकास को 2018 में ‘अकेडमी अवॉर्ड फोर टेक्नीकल अचीवमेंट’ मिला था.
ऑस्कर तक कैसी पहुँची अनुजा
वरिष्ठ पत्रकार और फ़िल्म समीक्षक रामचंद्रन श्रीनिवासन ने बीबीसी को बताया था, ”नॉमिनेशन तो प्रोसेस का हिस्सा है. फ़िल्म के चयन से लेकर इसके अवॉर्ड पाने की प्रक्रिया क़रीब छह महीने की होती है. इस बीच इसे बनाने वाले पुरज़ोर कोशिश करते हैं कि उनकी फ़िल्म को ये पुरस्कार मिल जाए.”
दुनियाभर में ऑस्कर अवॉर्ड देने वाली संस्था के 10 हज़ार से ज़्यादा सदस्य होते हैं. इनमें से अधिकतर अमेरिका के होते हैं. वहीं भारत से भी क़रीब 40 लोग इसके सदस्य होते हैं.
ये सदस्य एडिटिंग, साउंड, वीएफ़एक्स जैसी अलग-अलग 17 कैटेगरी से जुड़े होते हैं. इनमें से 16 कैटेगरी आर्ट से जुड़ी होती है और 17वीं नॉन टेक्निकल होती है.
श्रीनिवासन ने कहा था, “हर साल इन कैटेगरी से जुड़े सदस्य उन 300 से ज़्यादा फ़िल्मों के लिए वोटिंग करते हैं जो ऑस्कर की रेस में शामिल होती हैं. फिर वोटिंग के आधार पर 10 अलग-अलग कैटेगरी में फ़िल्मों का चयन होता है. फ़िल्में शॉर्ट लिस्ट की जाती हैं और इन पर फिर वोटिंग होती है और आख़िर में नॉमिनेट फ़िल्मों की अंतिम लिस्ट तैयार होती है.”
फिर आगे का ज़िम्मा आमतौर पर पीआर कंपनियां संभालती हैं. फिर फ़िल्म अकेडमी के सदस्यों को दिखाई जाती है.
श्रीनिवासन ने बताया था, “अपनी फ़िल्म दिखाने के लिए उन्हें ये बताना पड़ता है कि आप कौन हैं? उन्हें पूरा समय देना पड़ता है. ब्रेकफास्ट, लंच साथ करना पड़ता है. अपनी फ़िल्म की मार्केटिंग में किसी तरह की कोई चूक नहीं होने देने की कोशिश रहती है.”
साल 1957 में रिलीज़ हुई ‘मदर इंडिया’ पहली भारतीय फ़िल्म थी, जो ऑस्कर में टॉप फाइव तक पहुंची थी.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित