संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में भारत के चुनाव को प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के वरिष्ठ अधिकारी ने भारत की लोकतांत्रिक संस्थाओं और समावेशी विकास मॉडल पर वैश्विक विश्वास का प्रतीक बताया। पीएम के प्रधान सचिव पीके मिश्रा ने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी की जनभागीदारी की सोच ने शासन के स्वरूप को बदल दिया है। अब योजनाएं केवल लागू नहीं होतीं, बल्कि लोगों को सम्मान व भागीदारी के साथ जोड़ती हैं।
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सुशासन स्वयं एक मौलिक अधिकार है- पीके मिश्रा
वह ‘नेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन एवरीडे एसेंशियल्स-पब्लिक सर्विसेज एंड डिग्निटी फॉर ऑल’ को संबोधित कर रहे थे। पीके मिश्रा ने कहा कि मानवाधिकार दिवस (10 दिसंबर) लोकतांत्रिक देशों, विशेषकर भारत के लिए महत्वपूर्ण है, जहां सांविधानिक आदर्श, लोकतांत्रिक संस्थाएं और सामाजिक मूल्य मिलकर मानव मर्यादा की रक्षा और संवर्धन करते हैं। उन्होंने कहा कि सुशासन स्वयं एक मौलिक अधिकार है, जिसमें दक्षता, पारदर्शिता, शिकायतों का त्वरित समाधान और समय पर सेवाओं की उपलब्धता शामिल है।
भारत की सभ्यतागत सोच में मानव गरिमा और कर्तव्य
पीके मिश्रा ने कहा कि भारत की सभ्यतागत सोच में हमेशा से मानव गरिमा और कर्तव्य को केंद्र में रखा गया है। धर्म, न्याय, करुणा, सेवा, अहिंसा और वसुधैव कुटुंबकम जैसे सिद्धांत सार्वजनिक जीवन का आधार रहे हैं। उन्होंने बताया कि 2014 से पहले भारत ने शिक्षा का अधिकार, मनरेगा और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून जैसे अधिकार आधारित विकास मॉडल अपनाए, लेकिन प्रभावी क्रियान्वयन न होने से इनकी विश्वसनीयता प्रभावित हुई।
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‘गरीबी उन्मूलन सबसे प्रभावी मानवाधिकार हस्तक्षेप’
2014 के बाद, सरकार ने सैचुरेशन अप्रोच पर जोर दिया यानी हर पात्र व्यक्ति तक योजना पहुंचे। डिजिटल ढांचे, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर और विकसित भारत संकल्प यात्रा जैसे अभियानों ने कागजी अधिकार को लागू अधिकार में बदला। उन्होंने बताया कि बीते 10 वर्षों में 25 करोड़ भारतीय गरीबी रेखा से ऊपर उठे, जिसका प्रमाण हाउसहोल्ड कंजम्पशन एक्सपेंडिचर सर्वे 2023-24 में भी मिलता है। पीके मिश्रा ने कहा कि गरीबी उन्मूलन सबसे प्रभावी मानवाधिकार हस्तक्षेप है और भारत यही मॉडल दुनिया के सामने रख रहा है।