परमाणु बमों का निर्माण करेगा पोलैंड?
रिपोर्ट के मुताबिक डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों से यूरोप का विश्वास अमेरिका के ऊपर से हिल गया है। जबकि चीन और रूस जैसे देश लगातार अपने परमाणु जखीरे का विस्तार कर रहे हैं। रूस के पास दुनिया में सबसे ज्यादा परमाणु बम हैं। रूस अकसर यूरोपीय देशों को अपने परमाणु बमों का खौफ दिखाता रहता है। लेकिन यूरोपीय देश अमेरिकी सुरक्षा की वजह से अभी तक बेखौफ थे। जिसके बाद अब यूरोप में मोटे तौर पर दो सवाल उठ रहे हैं। पहला सवाल ये कि यूरोपीय देश न्यूक्लियर डेटरेंट क्षमता कैसे बनाए रख सकते हैं और दूसरा सवाल कि क्या यूरोपीय देश परमाणु क्लब में शामिल हो सकते हैं? हालांकि कुछ यूरोपीय देशों के पास परमाणु बम बनाने के लिए जरूरी एलिमेंट्स मौजूद हैं, लेकिन फिर भी फिलहाल एक्सपर्ट्स इस बात की उम्मीद कर रहे हैं कि यूरोपीय देश शायद ही परमाणु बम बनाने के लिए जल्दबाजी दिखाएंगे।
यूरो न्यूज की एक रिपोर्ट में ओस्लो न्यूक्लियर प्रोजेक्ट के रिसर्च फेलो फेबियन रेने हॉफमैन ने कहा है कि, “यूरोपीय देशों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे या तो परमाणु हथियार कार्यक्रम शुरू करने के लिए नागरिक परमाणु बुनियादी ढांचे को तैनात नहीं करते हैं, या, अगर उनके पास नागरिक परमाणु बुनियादी ढांचा है तो यह अत्यधिक ‘प्रसार-प्रतिरोधी’ है।” उन्होंने कहा कि “उदाहरण के लिए फिनलैंड और स्वीडन में केवल हल्के पानी वाले रिएक्टर हैं, जो हथियार-ग्रेड प्लूटोनियम के उत्पादन के लिए उपयुक्त नहीं हैं। इसके अलावा, उन देशों में से किसी के पास रासायनिक पुनर्संसाधन संयंत्र नहीं हैं, जो विखंडनीय सामग्री उत्पादन में वांछित आइसोटोप को अवांछित आइसोटोप से अलग करने के लिए जरूरी हैं।”
फ्रांस और यूके कर पाएंगे यूरोप की सुरक्षा?
यूरोप की दोनों परमाणु-सशस्त्र शक्तियों फ्रांस और ब्रिटेन के ऊपर अब यूरोपीय देशों की सुरक्षा की जिम्मेदारी है। लेकिन ब्रिटेन अपने पास परमाणु बमों के होते हुए भी अमेरिका पर निर्भर है। लेकिन फ्रांस को अमेरिकी इजाजत की कोई जरूरत नहीं है और फ्रांस यूरोपीय देशों में परमाणु बमों की तैनाती का आह्वान कर चुका है। लेकिन उसके पास करीब 300 परमाणु बम हैं, जबकि रूस के पास 6000। इसके अलावा ब्रिटेन के पास परमाणु हथियारों को ले जाने वाली पनडुब्बियां अब बेकार हो चुकी हैं और अमेरिकी बेस से ही ब्रिटेन परमाणु हथियारों को ऑपरेट कर सकता है। लिहाजा ब्रिटेन के दोनों हाथ बंधे हुए हैं।
लिहाजा फिलहाल यूरोपीय देशों के पास फ्रांस ही एकमात्र विकल्प बच रहा है, जिसके पास न्यूक्लियर डेटरेंट है। फ्रांस, अमेरिका पर निर्भर नहीं है और वो सिर्फ पनडुब्बियों से ही परमाणु बमों को नहीं चला सकता है, बल्कि उसके पास राफेल फाइटर जेट और मिसाइल बेस हैं, जिससे वो परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है। यानि फ्रांस अपने न्यूक्लियर हथियारों को यूरोप में तैनात कर सकता है। लेकिन हॉफमैन का कहना है कि ये इतना आसान नहीं है, जैसा दिख रहा है। उन्होंने यूरोन्यूज से कहा कि “परमाणु बम रखने के लिए देशों को बुनियादी ढांचे का निर्माण करना होगा। विशालकाय बंकरों का निर्माण करना होगा।” उन्होंने कहा कि “मैं यह भी कहूंगा कि जर्मनी में फ्रांसीसी परमाणु हथियारों को आगे तैनात करने से वास्तव में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। अगर ऐसा होता भी है, तो उन्हें अग्रिम पंक्ति के देशों में आगे तैनात किया जाना चाहिए” यानी पोलैंड जैसे देश, जो रूस के ठीक बगल में हैं। दूसरी तरफ पोलैंड ने फ्रांसीसी परमाणु बमों की यूरोपीय देशों में तैनाती का समर्थन किया है, जिससे सवाल तो उठने लगे हैं कि क्या फ्रांस आगे जाकर पोलैंड में परमाणु बमों की तैनाती करेगा?