पतली-पतली गलियों में लोग सो रहे थे। फुटपाथ भी खाली नहीं थे। इस बीच प्रयागराज जिला प्रशासन और शहरियों ने संवेदनशीलता दिखाते हुए श्रद्धालुओं की मदद को आगे हाथ बढ़ाया। स्कूल खोलकर उनके अंदर श्रद्धालुओं के ठहरने के इंतजाम किए गए। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के गेट भी खोल दिए गए। स्टूडेंट्स ने आनन-फानन में हलवाई का इंतजाम किया।
श्रद्धालुओं के लिए भोजन और चाय की व्यवस्था की गई। हॉस्टलों के दरवाजे खोल दिए गए। खुद स्टूडेंट्स रातभर जागकर श्रद्धालुओं के खाने-पीने और सोने का इंतजाम करते रहे। शहर का ऐसा कोई मोहल्ला नहीं था, जहां लोग श्रद्धालुओं की मदद के लिए आगे नहीं आए। बुजुर्गों और बीमारों की मदद के लिए केमिस्ट और डॉक्टरों ने सड़क पर खड़े होकर दवाएं बांटी। पूरी रात सड़कों पर भंडारे चलते रहे और फुटपाथ और गलियों में सो रहे लोगों को जगा-जगाकर उनके सोने का इंतजाम किया जाता रहा।
कुंभ का तो नहीं मालूम, प्रयागराज में हो गए भगवान के दर्शन
गुरुवार रात के करीब साढ़े ग्यारह बजे थे। गऊघाट पेट्रोल पंप के पास कुछ युवा और बुजुर्ग मिलकर श्रद्धालुओं के ठहरने का इंतजाम कर रहे थे। पेट्रोल पंप की छत के नीचे बड़े-बड़े तिरपाल डालकर श्रद्धालुओं के सोने की व्यवस्था की जा रही थी। उनको कंबल दिए जा रहे थे। भूखे-प्यासे श्रद्धालुओं के लिए खाना और पानी दिया जा रहा था। तिपहिया ठेलों पर बिठा-बिठाकर लोगों को वहां पहुंचाया जा रहा था। जिनके मोबाइल डिस्चार्ज हो गए थे। उनके मोबाइल चार्ज करने की व्यवस्था की जा रही थी।
बात की तो पता चला मोहल्ले के ही रहने वाले कुछ लोग मौनी अमावस्या पर स्नान करने गए थे। वहां की भगदड़ और लोगों की तकलीफ देखकर उनका दिल पसीज गया और वहीं फैसला लिया कि श्रद्धालुओं की हर संभव मदद करेंगे। कमान संभाली मोनू ने। पेट्रोल पंप के मालिक से बात कर स्थान सुरक्षित किया गया और वहां लाइट की व्यवस्था की गई। पूरी रात वहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के लिए इंतजाम किए जाते रहे। बातचीत के दौरान ही पश्चिम बंगाल से स्नान के लिए आईं रजनी और नयनतारा उठ बैठीं। बोलीं, हम लोग भटक रहे थे। न लौटने का साधन था, न रुकने का ठिकाना। ये लोग तो भगवान बनकर आए हैं। कुंभ में भगवान मिले कि नहीं पता नहीं, लेकिन यहां तो साक्षात मिले।
रात से सुबह तक चलते रहे भंडारे
गुरुवार सुबह करीब 6 बजे श्रद्धालुओं के लिए चाय की व्यवस्था कर रहे रजनीश केसरवानी ने बताया कि वह रातभर सोए नहीं हैं। श्रद्धालुओं की परेशानी देखकर नींद कहां आती, इसलिए घरवालों और दोस्तों की मदद से श्रद्धालुओं के लिए चाय की व्यवस्था की, जिससे ठंड में उन्हें कुछ तो राहत मिले। शुरुआत की तो सिलसिला अब तक चल रहा है।
कोठा पर्चा में श्रद्धालुओं के लिए हलवा बांट रहे पंकज जायसवाल ने बताया कि पूरे शहर में भीड़ और श्रद्धालुओं की परेशानी देखकर रहा नहीं गया। जितना कर सकते थे, कर रहे हैं। पूरे शहर का यही हाल था। जिन रास्तों से श्रद्धालु गुजर रहे थे, वहां लोगों ने अपनी दुकानें और घर के दरवाजे खोलकर खुले दिल से उनकी मदद की। अधिकतर बाजार बंद थे, लेकिन लोगों ने अपनी दुकानों के सामने भंडारे चलाए। जिसके पास कोई व्यवस्था नहीं थी वह चाय या बोतलबंद पानी ही बांटने लगा।
शहर के लोगों ने अपने स्तर पर टेंट लगाकर श्रद्धालुओं के लिए आश्रय स्थल बनवाए। कई स्थानों पर अच्छी आवभगत न करने और परेशानियों के लिए श्रद्धालुओं से माफी मांगते भी देखे गए। सिविल लाइंस इलाके में टेंट लगाकर लोगों के लिए भंडारा चला रहे युवक लगातार श्रद्धालुओं से लाउड स्पीकर से इस तरह की घोषणा करते सुने गए।
भीड़ बढ़ी तो खुले बैरियर और स्कूल
मौनी अमावस्या से पहले शहर में जगह-जगह नाकेबंदी कर दी गई थी। गलियों तक में लोगों को आने-जाने से रोका जा रहा था, लेकिन जब भीड़ उमड़ी, तो अधिकारियों के हाथ-पांव फूल गए। लौटते हुए लोगों को रास्ता देने के लिए बैरियर हटा दिए गए। ट्रेन और अन्य यातायात के साधन इतने थे नहीं, इसलिए स्कूलों को श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया। कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं ने आनन-फानन वहां पहुंचकर श्रद्धालुओं के लिए खाने-पीने की व्यवस्था भी की। सुबह होने के बाद श्रद्धालुओं की संख्या धीरे-धीरे कम हुई। तब जाकर शहर प्रशासन ने चैन की सांस ली।