राजस्थान विधानसभा में विधिविरुद्ध धर्म-संपरिवर्तन प्रतिषेध विधेयक पर चर्चा के दौरान मंगलवार को सदन गीता के श्लोक से गूंज उठा। शिव विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने अपने संबोधन की शुरुआत श्रीमद्भगवद गीता के उस श्लोक से की, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण के अवतार लेकर अधर्म के विनाश और धर्म की रक्षा का उल्लेख है। भाटी ने कहा कि वह ऐसे वंश से आते हैं जिसने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए सदियों तक प्राणों की आहुति दी है।
धर्म और संस्कृति पर खतरे की बात
भाटी ने कहा कि हमारा देश मजबूत जरूर है, लेकिन इसकी जड़ों को कमजोर करने की कोशिशें लगातार हो रही हैं। राजनीतिक स्वार्थी दल और विदेशी ताकतें भोली-भाली जनता को धर्म और पैसों के लालच में फंसाकर सामूहिक धर्मांतरण करा रही हैं। इसे उन्होंने सीधे-सीधे देश की आस्था और सांस्कृतिक नींव पर हमला बताया। उन्होंने कहा कि धर्म आस्था का विषय है, सौदेबाजी का नहीं। गीता में स्पष्ट कहा गया है कि पूरी दुनिया का एक ही धर्म है- मानव धर्म।
कानून का समर्थन, लेकिन सतर्कता की नसीहत
भाटी ने धर्मांतरण विरोधी कानून को समय की मांग बताते हुए इसके समर्थन में जोरदार तर्क रखे। हालांकि उन्होंने यह भी चेताया कि इस कानून का इस्तेमाल राजनीतिक दुश्मनी निकालने या निर्दोष लोगों को प्रताड़ित करने के लिए नहीं होना चाहिए। सरकार की जिम्मेदारी है कि कठोरता और न्याय, दोनों का संतुलन बना रहे। उन्होंने विशेष रूप से आदिवासी समाज की पीड़ा का जिक्र किया और कहा कि यह समाज सांस्कृतिक रूप से सबसे समृद्ध है, लेकिन इन्हीं भोले और सच्चे लोगों को बहलाकर उनका धर्मांतरण कराया जा रहा है।
सीमांत क्षेत्र की सौहार्दपूर्ण परंपरा
भाटी ने अपने सीमांत क्षेत्र का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां सैकड़ों वर्षों से भाईचारा और आपसी सौहार्द कायम है। विभाजन के समय जब पंजाब और बंगाल दंगों से झुलस गए थे, तब भी राजस्थान में धर्म और जाति के नाम पर दंगे नहीं हुए। आजादी के 70 साल बाद भी यह परंपरा कायम है।
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राजनीति में गिरते स्तर पर प्रहार
भाटी ने राजनीति में वोट की लालसा को सबसे बड़ा संकट बताया। उन्होंने कहा कि कभी हिंदू-मुस्लिम, कभी जाट-राजपूत और कभी अन्य समाजों के बीच नफरत की दीवार खड़ी की जा रही है। उन्होंने कहा कि जो लोग गांधी और नेहरू का नाम लेते हैं, वही समाज को बांटने और आग लगाने का काम कर रहे हैं।
महान नेताओं का स्मरण
भाटी ने गर्व से कहा कि वह उस धरती से आते हैं जहां दिवंगत जसवंत सिंह, तनसिंह, गंगाराम, विरधिचंद जैन और हादी साहब जैसे नेता हुए, जिन्होंने राजनीति की लेकिन कभी धर्म और जाति के आधार पर जनता को नहीं बांटा। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को याद करते हुए कहा कि सरकारें आएंगी, सरकारें जाएंगी, लेकिन यह देश रहना चाहिए।
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