राज्यसभा के नए सभापति सीपी राधाकृष्णन ने सदन के पहले ही दिन साफ कर दिया कि उच्च सदन में मर्यादा और संविधान सर्वोपरि होंगे। उन्होंने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि राज्यसभा केवल बहस की जगह नहीं है, बल्कि यह वह मंच है जहां देश के करोड़ों लोगों की उम्मीदें जुड़ी होती हैं। इसलिए संसदीय व्यवस्था की ‘लक्ष्मण रेखा’ को हर सदस्य को समझना और उसका पालन करना जरूरी है। उन्होंने स्पष्ट किया कि सभी सदस्य अपनी बात रखेंगे, लेकिन निर्धारित नियमों और संवैधानिक सीमाओं के अंदर ही।
राधाकृष्णन ने कहा कि भारत का संविधान और राज्यसभा की नियम पुस्तिका संसदीय आचरण की ‘लक्ष्मण रेखा’ को तय करते हैं। उनका कहना था कि सभापति और सदस्य दोनों को ही अपनी ज़िम्मेदारियों को समझते हुए इस रेखा का पालन करना होगा। उन्होंने भरोसा दिया कि वे हर सदस्य के अधिकारों की रक्षा करेंगे, लेकिन यह तभी संभव है जब वे निर्धारित नियमों के भीतर अपनी बात रखें। उन्होंने सदन को याद दिलाया कि व्यापक एजेंडा और सीमित समय इस सत्र की सबसे बड़ी चुनौती है।
सदस्यों का आभार व्यक्त किया
अपने पहले संबोधन में राधाकृष्णन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सदन के सभी सदस्यों का धन्यवाद किया, जिन्होंने शीतकालीन सत्र के पहले दिन उन्हें बधाई और शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा कि यह सम्मान केवल पद का नहीं, बल्कि जिम्मेदारी का भी है। उन्होंने इस मौके को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि उम्मीद है सभी सदस्य मिलकर सदन को सुचारू रूप से चलाने में सहयोग देंगे।
ये भी पढ़ें- टोकने पर भड़कीं कांग्रेस MP रेणुका चौधरी, गुस्से में कटाक्ष; माननीयों पर गंभीर टिप्पणी
सदस्यों को मिलेंगे पर्याप्त अवसर
राधाकृष्णन ने कहा कि संसदीय प्रक्रिया में प्रश्नकाल, शून्यकाल और विशेष उल्लेख जैसे प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि हर सांसद को अपनी बात रखने और नागरिकों की समस्याएं उठाने का पर्याप्त अवसर मिले। उन्होंने दोहराया कि इन प्रक्रियाओं का सही उपयोग ही लोकतंत्र को मजबूत करता है। उनकी अपील थी कि सभी सदस्य सदन की गरिमा को बनाए रखते हुए इन अवसरों का रचनात्मक उपयोग करें।
समझनी होगी हर वर्ग की उम्मीद
सभापति ने कहा कि सदन में होने वाली हर चर्चा उन परिवारों से जुड़ी होती है जो संसद को उम्मीद की नजर से देखते हैं। उन्होंने किसानों, मजदूरों, रेहड़ी-पटरी वालों, महिलाओं, युवाओं और देश के सबसे कमजोर तबकों का जिक्र करते हुए कहा कि उनकी आवाज यहां गूंजनी चाहिए। उन्होंने कहा कि संसद का असली दायित्व सामाजिक न्याय और आर्थिक सशक्तिकरण को मजबूत करना है, खासतौर पर अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग और कमजोर वर्गों के लिए।
जिम्मेदारी बड़ी, अपेक्षाएं उससे भी बड़ी
अपने संबोधन के अंतिम हिस्से में राधाकृष्णन ने कहा कि वे सभी सदस्यों के अधिकारों और सुविधाओं की रक्षा करेंगे। उनका संदेश स्पष्ट था सदन की गरिमा पहले, राजनीति बाद में। उन्होंने कहा कि जब संसद जिम्मेदारी और शालीनता के साथ काम करती है, तब लोकतंत्र और मजबूत होता है। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस सत्र में सदन सार्थक चर्चाओं और जनहित के कामों पर केंद्रित रहेगा।
अन्य वीडियो-