1984 में अंतरिक्ष में जाने वाले भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा ने अपनी यात्रा के अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष यात्रा इंसान की सोच को बदल देती है। उन्हें दुनिया को इस नजरिये से देखने में मदद करती है कि पृथ्वी ग्रह सभी का है, किसी एक का नहीं।
राकेश शर्मा ने रक्षा मंत्रालय द्वारा रिकॉर्ड किए गए एक पॉडकास्ट में अपने विचार साझा किए। यह पॉडकास्ट उस दिन जारी किया गया जब 41 साल बाद भारत का एक और अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला तीन अन्य अंतरिक्ष यात्रियों के साथ अंतरिक्ष की यात्रा पर निकले।
शर्मा ने अंतरिक्ष में बिताए थे आठ दिन
राकेश शर्मा ने 1984 में तत्कालीन सोवियत संघ के मिलकर की गई एक अंतरिक्ष यात्रा में हिस्सा लिया था और सैल्यूट-7 के तहत अंतरिक्ष में आठ दिन बिताए थे। इस बार शुभांशु शुक्ला एक्सिओम स्पेस मिशन के तहत अमेरिका, पोलैंड और हंगरी के तीन अन्य अंतरिक्ष यात्रियों के साथ अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) गए हैं।
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अंतरिक्ष यात्रा से पहले दो महीने लगाकर सीखी रूसी भाषा
राकेश शर्मा ने अपने पॉकास्ट में बताया कि जब उन्हें चुना गया, तब वे वायुसेना में परीक्षण पायलट थे। बाद में वे भारतीय वायुसेना से विंग कमांडर के पद से सेवानिवृत्त हुए। वे कहते हैं, ‘मैं युवा था, फिट था और योग्य था, इसलिए मुझे चुना गया।’ इसके बाद उन्हें मास्को के पास स्टार सिटी में 18 महीने का प्रशिक्षण दिया गया। उन्होंने यह भी बताया कि पूरा प्रशिक्षण और अंतरिक्ष में संवाद रूसी भाषा में था, इसलिए उन्हें पहले वह भाषा सीखनी पड़ी, जो आसान नहीं था। इसे सीखने में उन्हें करीब दो महीने लगे।
शुक्ला की यात्रा को लाखों लोगों ने लाइव देखा
शर्मा ने कहा कि उनकी यात्रा उस समय हुई थी, जब बहुत कम लोगों के पास टीवी था। जबकि इस बार शुभांशु शुक्ला की यात्रा को लाखों लोगों ने मोबाइल और टीवी पर लाइव देखा। शुक्ला ने जैसे ही पृथ्वी की कक्षा में पहुंचकर संपर्क किया, उन्होंने कहा, ‘कमाल की सवारी थी।’
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अंतरिक्ष में हर 45 मिनट में सूर्योदय और सूर्यास्त होता है
जब शर्मा से पूछा गया कि अंतरिक्ष से भारत को देखकर कैसा लगा, तो उन्होंने कहा, ‘बहुत सुंदर’ उन्होंने भारत की विविधता- समुद्र तट, घाटियां, जंगल, मैदान, पहाड़ और हिमालय की तारीफ की। उन्होंने यह भी बताया कि अंतरिक्ष में हर 45 मिनट में सूर्योदय और सूर्यास्त होता है, जो पृथ्वी से बहुत अलग अनुभव है।
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