डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। संसद के शीतकालीन सत्र के आखिरी दिनों में सरकार ने परमाणु ऊर्जा से जुड़ा एक अहम कानून पास किया है। इसका नाम है SHANTI बिल। सरकार का कहना है कि इस बिल से देश में परमाणु ऊर्जा का विस्तार होगा और पहली बार निजी कंपनियों को भी इस सेक्टर में बड़ी भूमिका निभाने का मौका मिलेगा, जबकि सुरक्षा और निगरानी में कोई ढील नहीं दी जाएगी।
क्या है SHANTI बिल?
Sustainable Harnessing and Advancement of Nuclear Energy for Transforming India (SHANTI) बिल संसद में वॉयस वोट से पास हुआ। उस समय ज्यादातर विपक्षी सांसद सदन से बाहर चले गए थे। उनका विरोध किसी और मुद्दे, यानी G RAM G बिल को लेकर था जो कांग्रेस के समय शुरू हुई मनरेगा (MNREGA) योजना की जगह लेने वाला है।
यह बिल जूनियर परमाणु ऊर्जा मंत्री जितेंद्र सिंह ने पेश किया। उन्होंने कहा कि यह कानून भारत की परमाणु नीति को आज की तकनीक, अर्थव्यवस्था और ऊर्जा जरूरतों के हिसाब से आधुनिक बनाएगा, लेकिन सुरक्षा से कोई समझौता नहीं होगा।
निजी कंपनियों को मिलेगी एंट्री
अब तक भारत का सिविल न्यूक्लियर सेक्टर पूरी तरह सरकार के हाथ में था। SHANTI बिल के तहत अब निजी कंपनियां और ज्वाइंट वेंचर परमाणु बिजलीघर लगाने और चलाने में हिस्सा ले सकेंगी। इसके अलावा न्यूक्लियर फ्यूल के ट्रांसपोर्ट जैसे कामों में भी निजी क्षेत्र को अनुमति दी गई है। हालांकि कुछ संवेदनशील काम जैसे यूरेनियम एनरिचमेंट अब भी सिर्फ सरकार ही करेगी।
इस बिल में सुरक्षा व्यवस्था को भी मजबूत किया गया है। एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड (AERB) को अब कानूनी दर्जा दिया गया है। इसका मतलब है कि AERB अब अपने नियम खुद लागू कर सकेगा। AERB को न्यूक्लियर प्लांट्स की जांच करने, हादसों की जांच करने और जरूरत पड़ने पर किसी प्लांट की मंजूरी रद करने का अधिकार भी मिलेगा।
डिजाइन से लेकर कचरा प्रबंधन तक निगरानी
अब निगरानी सिर्फ प्लांट चलने तक सीमित नहीं रहेगी। डिजाइन स्टेज से ही AERB की भूमिका होगी। यानी किसी भी परमाणु परियोजना की योजना, निर्माण, संचालन और बंद करने की प्रक्रिया पर सरकार की नजर रहेगी। न्यूक्लियर कचरे (वेस्ट) के प्रबंधन को भी इसी दायरे में लाया गया है। इसके साथ ही लाइसेंस देने के नियम भी साफ और तय किए गए हैं।
इस बिल में परमाणु हादसों के मुआवजे से जुड़े नियमों में भी बदलाव किया गया है। पहले यह काम 2010 के सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट के तहत होता था। नए कानून में भी ‘नो फॉल्ट लायबिलिटी’ का सिद्धांत रहेगा, यानी गलती साबित करना जरूरी नहीं होगा। लेकिन अब मुआवजे की एक सीमा तय कर दी गई है। प्लांट के आकार के हिसाब से यह 100 करोड़ से 300 करोड़ रुपये तक होगी।
किस बात पर विवाद
इस बिल में एक अहम बदलाव यह है कि खराब मशीन या सामग्री की वजह से हुए नुकसान पर मुआवजा नहीं मिलेगा। इस प्रावधान को लेकर राजनीतिक और सार्वजनिक स्तर पर काफी बहस हो रही है। सरकार का कहना है कि यह व्यवस्था छोटे परमाणु प्लांट और नई तकनीक जैसे स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर को बढ़ावा देने के लिए जरूरी है और इससे पीड़ितों के अधिकार कम नहीं होंगे।