रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने एक रिपोर्ट में कहा है कि कल्याण योजनाओं पर खर्च बढ़ने से राज्यों की बुनियादी ढांचे के विकास और अन्य विकास कार्यों पर खर्च करने की क्षमता कम हुई है। क्रिसिल ने टॉप 18 राज्यों के बजट का विश्लेषण करने के बाद यह बात कही। इन राज्यों का कुल GSDP में लगभग 90% हिस्सा है। केंद्र सरकार भी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा), जल जीवन मिशन, पीएम किसान, पीएम आवास योजना और पीएम पोषण जैसी कई कल्याण योजनाओं पर बड़ा खर्च करती है। मनरेगा के लिए केंद्र सरकार ने इस वित्तीय वर्ष के लिए 86,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।
ये चेतावनी कैसी?
क्रिसिल ने चेतावनी दी है कि राज्यों के कल्याण योजनाओं पर खर्च से उनका राजस्व घाटा बढ़ेगा। इससे उनकी पूंजीगत व्यय करने की क्षमता कम हो जाएगी। क्रिसिल ने कहा कि GSDP के फीसदी के रूप में इन योजनाओं पर खर्च पिछले वित्तीय वर्ष में भी इसी स्तर पर था। वित्तीय वर्ष 2019 और 2024 के बीच यह 1.4-1.6% था। राज्यों ने आम और विधानसभा चुनावों से पहले महिलाओं, बच्चों, मजदूरों और पिछड़े वर्गों के लिए योजनाओं पर राजस्व व्यय बढ़ाया है। कई राज्यों ने महिलाओं के लिए आय हस्तांतरण योजनाएं शुरू की हैं। इसमें लक्षित समूह को प्रति माह 1,000-2,000 रुपये मिलते हैं। कुछ राज्यों ने राज्य परिवहन बसों में महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा शुरू की है।
बेशक, सामाजिक कल्याण पर खर्च महत्वपूर्ण है। लेकिन, अत्यधिक और अनियंत्रित ‘मुफ्त’ योजनाएं देश की राजकोषीय स्थिति को कमजोर कर सकती हैं। ये दीर्घकालिक उत्पादक निवेश को बाधित करती हैं। चीन को मात देने के लिए भारत को न केवल सामाजिक समानता पर ध्यान देना होगा, बल्कि उससे भी अधिक, एक मजबूत, प्रतिस्पर्धी, निर्यात-उन्मुख और नवाचार-संचालित अर्थव्यवस्था का निर्माण करना होगा।
चीन को मात देने के लिए क्या जरूरी है?
चीन को आर्थिक रूप से पीछे छोड़ने के लिए केवल सामाजिक कल्याण पर खर्च करने से कहीं ज्यादा ठोस और दूरदर्शी कदम उठाने होंगे।
1. उत्पादक निवेश पर ध्यान
बुनियादी ढांचा: सड़क, रेल, बंदरगाह, बिजली, डिजिटल कनेक्टिविटी जैसे विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचे का निर्माण, जो लॉजिस्टिक्स की लागत कम करता है और उद्योगों को बढ़ावा देता है।
मानव पूंजी विकास: शिक्षा (उच्च शिक्षा सहित), स्वास्थ्य सेवा और कौशल विकास में बड़े पैमाने पर निवेश ताकि एक कुशल और स्वस्थ कार्यबल तैयार हो सके।
अनुसंधान और विकास (R&D): इनोवेशन को बढ़ावा देने के लिए अनुसंधान और विकास में सरकारी और निजी निवेश को बढ़ाना। चीन ने इसमें भारी निवेश किया है।
2. मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का विकास
चीन की आर्थिक सफलता का बड़ा हिस्सा उसके मजबूत विनिर्माण क्षेत्र के कारण है। भारत को ‘मेक इन इंडिया’ जैसी पहलों को और मजबूत करना होगा, जिसमें मैन्यूफैक्चरिंग इकाइयों की स्थापना को आसान बनाना, टैक्स प्रोत्साहन देना और ग्लोबल सप्लाई चेन में एकीकृत होना शामिल है।
रोजगार सृजन: विनिर्माण क्षेत्र बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा करता है, जो भारत की युवा आबादी के लिए महत्वपूर्ण है।
3. निर्यात पर जोर
चीन एक निर्यात-उन्मुख अर्थव्यवस्था है। भारत को अपने निर्यात आधार का विस्तार करना होगा, खासकर उच्च मूल्य वर्धित वस्तुओं और सेवाओं में। प्रतिस्पर्धी बनने के लिए निर्यातकों को समर्थन देना और व्यापार समझौतों पर फोकस करना महत्वपूर्ण है।
4. नीतिगत स्थिरता और व्यापार में आसानी
निवेशकों को आकर्षित करने के लिए स्थिर और अनुमानित नीतिगत वातावरण जरूरी है। ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ (व्यापार करने में आसानी) में और सुधार करना, लालफीताशाही कम करना और प्रभावी विवाद समाधान तंत्र स्थापित करना अहम है।
5. वित्तीय अनुशासन और रेवेन्यू ग्रोथ
राज्यों और केंद्र दोनों को वित्तीय अनुशासन बनाए रखना होगा। इसका मतलब है कि राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखना, कर्ज कम करना और टैक्स बेस को बढ़ाकर राजस्व बढ़ाना। अनावश्यक ‘मुफ्त’ योजनाओं पर लगाम लगाना या उन्हें लक्षित और सशर्त बनाना।
सब्सिडी का युक्तिकरण: कल्याणकारी योजनाओं को ‘मुफ्त’ से ‘सब्सिडी’ में बदलना, जहां जरूरतमंदों को सहायता मिले, लेकिन आर्थिक रूप से अक्षम लोगों को नहीं।
6. तकनीकी प्रगति को अपनाना
कृषि, विनिर्माण और सेवाओं सहित सभी क्षेत्रों में नवीनतम तकनीकों को अपनाना और डिजिटल इंडिया पहल को मजबूत करना होगा।