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Sep 17, 2025


हरियाणा विलेज कॉमन्स के मामले में 2022 के फैसले को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भूमि मालिकों के अधिकार बहाल कर दिए हैं। तीन जजों की पीठ के इस फैसले को राज्य सरकार के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। दरअसल, तीन साल पहले सुप्रीम कोर्ट की ही एक अन्य पीठ से पारित आदेश में गांव की साझा जमीनों (कॉमन लैंड्स) को ग्राम पंचायतों को लौटाने का निर्देश दिया गया था। आज चीफ जस्टिस बीआर गवई, न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने यह आदेश पुनर्विचार याचिका पर सुनाया। साथ ही कोर्ट ने तीन साल से अधिक समय से चली आ रही पुरानी व्यवस्था को दोषपूर्ण मानते हुए उसे निरस्त कर दिया।

हरियाणा सरकार की अपील खारिज

मंगलवार को हरियाणा की अपील खारिज करते हुए इस अहम आदेश में चीफ जस्टिस गवई ने कहा, ‘हमें वर्तमान मामले के तथ्यों पर स्टार डेसिसिस के सिद्धांत को लागू करने में उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ के फैसले में कोई त्रुटि नहीं दिखती। इसमें उस कानून का पालन किया गया है जिसे 100 से अधिक फैसलों में लगातार लागू किया गया है। परिणामस्वरूप, हमें राज्य की अपील में कोई दम नहीं दिखता। इसलिए इसे खारिज किया जाता है।’

सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया- जमीन ग्राम पंचायत या राज्य के अधीन नहीं

उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, हमें यह मानने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ के निर्णय और अंतिम आदेश में कोई त्रुटि नहीं है। जो भूमि किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए निर्धारित नहीं की गई है, वह ग्राम पंचायत या राज्य के अधीन नहीं मानी जा सकती।

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प्रबंधन और नियंत्रण केवल पंचायत के पास, लेकिन…

पीठ ने कहा, जमीन मालिकों की अनुमेय अधिकतम सीमा से आनुपातिक कटौती लागू करके उनसे से ली गई भूमि के लिए, प्रबंधन और नियंत्रण केवल पंचायत के पास होता है। ऐसा निहित प्रबंधन और नियंत्रण अपरिवर्तनीय है इसलिए भूमि पुनर्वितरण के लिए मालिकों को वापस नहीं की जाएगी, क्योंकि जिन सामान्य उद्देश्यों के लिए भूमि काटी गई है, उनमें न केवल वर्तमान, बल्कि भविष्य की जरूरतों को भी शामिल किया गया है।

क्या है तीन साल पुराना आदेश, जिसे सुप्रीम कोर्ट की ही दूसरी पीठ ने पलट दिया?

दरअसल, 7 अप्रैल, 2022 के आदेश में शीर्ष न्यायालय की पीठ ने कहा था कि पंजाब के एक कानून के तहत भूमि मालिकों से ली गई जमीन का मालिकाना हक पंचायतों का नहीं होगा। कोर्ट ने कहा था कि मालिकों से ली गई भूमि अगर उनकी अनुमेय सीमा से अधिक होने की सूरत में केवल प्रबंधन और नियंत्रण ही पंचायत के पास होगा, न कि स्वामित्व। न्यायालय ने ‘प्रबंधन और नियंत्रण’ के मायने साफ करते हुए कहा था कि भूमि का पट्टे पर देना और गैर-मालिकों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों आदि द्वारा भूमि का उपयोग इस दायरे में ही माना जाएगा, बशर्ते इस्तेमाल ग्राम समुदाय के लाभ के लिए हो।

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पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट का 22 साल पुराना आदेश बरकरार रहेगा

तीन साल से अधिक पुराने अपने ही फैसले की समीक्षा की मांग वाली याचिका को स्वीकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने कहा, आज के आदेश के बाद पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का 2003 का फैसला बरकरार रहेगा। उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने इस फैसले में कहा था कि चकबंदी के दौरान साझा उद्देश्यों के लिए चिह्नित न की गई भूमि, पंचायत या राज्य के पास नहीं, बल्कि मालिकों के पास ही रहेगी।

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