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सीरिया में बशर अल-असद ने लगभग 25 सालों तक सख़्ती के साथ शासन किया था और अक्सर पश्चिमी देशों सहित कई अन्य देश इसकी निंदा भी करते रहे हैं.
लेकिन पिछले साल नवंबर में हयात तहरीर अल-शाम या एचटीएस के नेतृत्व वाले विद्रोहियों ने एक हफ्ते से कुछ अधिक समय में ही असद सरकार को उखाड़ फेंका और देश पर कब्ज़ा कर लिया.
एचटीएस एक सुन्नी मुस्लिम संगठन है, जो पहले अल-क़ायदा और इस्लामिक स्टेट ग्रुप (आईएस) से जुड़ा हुआ था. इसका सीरिया और मध्य पूर्व पर क्या असर होगा? इस पर चर्चा के लिए तुरंत ही पश्चिमी देशों और मध्य पूर्व के देशों के विदेश मंत्रियों और अधिकारियों की एक बैठक सऊदी अरब में बुलाई गई.
इस बैठक में सीरिया पर से प्रतिबंध हटाने और वहां पुनर्निर्माण के लिए सहायता देने की संभावना पर भी बात हुई. इस कारण इस हफ्ते हम दुनिया जहान में यह जानने की कोशिश करेंगे कि सीरिया आगे किस दिशा में जा सकता है?
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दिसंबर 2010 में अरब जगत के कई देशों में तानाशाही सरकारों को हटाने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गये थे और इसे ‘अरब स्प्रिंग’ कहा जाने लगा.
उत्तरी अफ़्रीका में शुरू हुए जनता का यह विरोध धीरे-धीरे पूर्व में अरब प्रायद्वीप तक पहुंच गए. मार्च 2011 सीरिया में भी विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए.
उस समय बशर अल-असद सीरिया के राष्ट्पति थे और उनसे पहले उनके पिता देश के नेता थे. सीरिया में कई दशकों से इस परिवार का शासन चला आ रहा था. बशर अल-असद के शासन के दौरान सीरिया में दमन और मानवाधिकार उल्लंघनों की वारदातें अक्सर होती रही.
2011 में विरोध प्रदर्शनों से निपटने के लिए असद ने हज़ारों लोगों को गिरफ़्तार कर लिया. चैटहैम हाउस में मध्य पूर्व मामलों के वरिष्ठ शोधकर्ता टीम ईटन का कहना है कि विरोध प्रदर्शनों की शुरूआत में ही असद सरकार ने उससे सख़्ती से निपटने का फ़ैसला कर लिया था.
“असद सरकार ने जिस प्रकार क्रूरता से विरोध प्रदर्शनों को कुचला, उसी वजह से सशस्त्र संघर्ष छिड़ गया. जल्द ही सशस्त्र संघर्ष देश के कई हिस्सों में फैल गया और ज़मीन के नियंत्रण को लेकर हिंसक लड़ाई शुरू हो गई, लेकिन उसमें किसी की जीत होती नहीं दिख रही थी.”
इस्लामिक स्टेट ने इराक़ से बाहर सीरिया में भी पैर जमाना शुरू कर दिया. सितंबर 2014 में अमेरिका ने सीरिया में इस्लामिक स्टेट के ख़िलाफ़ सैनिक कार्रवाई शुरू कर दी, लेकिन असद सत्ता में बने रहे.
फिर नवंबर 2024 में स्थायी बदलाव की संभावना उभरी जब एचटीएस के नेतृत्व में विद्रोहियों के गुट ने सीरिया सरकार के ख़िलाफ़ तेज़ रफ़्तार से हमला शुरू करके देश के अधिकांश हिस्सों पर कब्ज़ा कर लिया.
एचटीएस को संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका सहित कई देशों ने आतंकवादी संघठन घोषित कर रखा है.
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8 दिसंबर की सुबह तत्कालीन राष्ट्रपति असद सीरिया से भाग कर रूस पहुँच गए और असद युग का अंत हो गया. मगर क्या असद को लग रहा था कि वो लड़ाई जीत लेंगे?
टीम ईटन के अनुसार जिस अफरा-तफरी मे असद देश छोड़ कर भागे हैं उससे नहीं लगता कि उन्हें कोई अंदाज़ा था कि उनकी सरकार गिर जाएगी.
“उन्हें लगा होगा कि वो तुरंत नहीं निकले तो सीरिया में ही फंस जाएंगे.”
बाहरी दुनिया को भले ही लगे कि असद सरकार अचानक गिर गई, लेकिन टीम ईटन याद दिलाते हैं कि पूरे देश पर लंबे समय से उनका नियंत्रण नहीं था. एचटीएस के हमले के समय के साथ कुछ महत्वपूर्ण बातें जुड़ी हुई. अक्तूबर 2023 में हमास ने इसराइल पर हमला कर दिया था.
लेबनान का चरमपंथी गुट हिज़बुल्लाह सरकार में बने रहने मे बशर अल-असद की मदद कर रहा था, लेकिन ग़ज़ा में लड़ाई छिड़ने के बाद वो इसराइल के साथ संघर्ष में फंस गया.
टीम ईटन ने कहा कि हिज़बुल्लाह लंबे समय से असद सरकार को सैनिक सहायता देता रहा है और सीरिया की सेना का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, लेकिन जब वो इसराइल के साथ संघर्ष में व्यस्त हो गया तो असद सरकार की स्थिति कमज़ोर हो गई.
हिज़बुल्लाह का प्रमुख समर्थक ईरान भी इसराइल के साथ संघर्ष में जुट गया था. वहीं, सीरिया को सहायता दे रहे रूस का ध्यान भी यूक्रेन युद्ध पर था.
इस प्रकार असद सरकार के सभी सहयोगियों की प्राथमिकताएं बदल गई थी. टीम ईटन कहते हैं कि विद्रोही गुटों की सफलता का एक कारण यह था कि उन्होंने आपसी समन्वय के साथ इस हमले को अंजाम दिया. अब देखना है कि आगे क्या करना है? इस बारे में इन गुटों में आपसी सहमति कायम हो पाएगी या नहीं.
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असद सरकार को उखाड़ फेंकने वाले विद्रोहियों के गुट का नेतृत्व जिस एचटीएस ने किया था, उसकी शुरुआत सीरिया के गृह युद्ध के दौरान हुई थी. उस दौरान इस्लामिक स्टेट सीरिया में बड़े पैमाने पर अपहरण और हत्या कर रहा था.
इस समय गुट का नाम जबात अल नुसरा था. 2017 में उसने अपने आप को एक राजनीतिक ताकत में ढाल कर अपना नाम बदल कर एचटीएस रख लिया.
इस विभाजन के समय एचटीएस ने सीरिया के उत्तर पश्चिमी क्षेत्र इदलिब के अधिकांश हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया. अपने बुरे अतीत के बावजूद एचटीएस ने इदलिब की 45 लाख की आबादी को कई सालों से चल रहे गृह युद्ध में स्थिरता की एक झलक ज़रूर दिखा दी. उसने प्रशासन चलाने के लिए बाहर से पैसे जुटाने के बजाए टैक्स के ज़रिए पैसा जुटाया.
इस विषय में हमने बात की डॉक्टर रहाफ़ अलडोघली से जो सीरियाई अकादमिक हैं और लैंकेस्टर यूनिवर्सिटी में मध्य पूर्व और उत्तरी अफ़्रीका अध्ययन की प्रोफ़ेसर हैं.
उनका कहना है,”सीरिया के अन्य सशस्त्र गुटों की तुलना में एचटीएस अधिक बुद्धीमान है क्योंकि वह धन के लिए बाहरी देशों पर निर्भर नहीं है. उसने क्षेत्र के व्यापार से टैक्स और सीमा शुल्क के ज़रिए पैसे जुटाए हैं. उसकी आय का एक मुख्य जरिया तुर्की जाने वाले व्यापार मार्ग बाबल हवा क्रसिंग से होने वाला व्यापार है. वो वहां से गुजरने वाले सामान पर टैक्स और सीमा शुल्क प्राप्त करता है.”
एचटीएस का दावा है कि इदलिब पर प्रशासन के अनुभव से उसके पास देश चलाने के लिए आवश्यक विश्वसनीयता आ गयी है.
लेकिन डॉक्टर रहाफ़ अलडोघली कहती हैं, “उसके पास अच्छा अनुभव तो है लेकिन इदलिब में उसने तानाशाही तरीके से शासन चलाया था. सीरिया में लंबे अरसे से राजनीतिक तानाशाही रही है और किसी दूसरे सशस्त्र गुट के पास भी अनुभव नहीं है.”
एचटीएस का नेतृत्व लगभग चालीस साल के नेता अहमद अल-शरा, जिन्हें अबू मोहम्मद अल जुलानी भी कहते हैं. वो अपनी छवि को जिहादी जिहादी लड़ाके से बदल कर सूट पहनने वाले दूरदर्शी नेता के रूप में पेश कर रहे हैं.
डॉक्टर रहाफ़ अलडोघली की राय है कि जुलानी जैसे नेता की वजह से ही एचटीएस संगठित बना रहा है. जब कि दूसरे सीरियाई सशस्त्र गुटों में यह बात दिखायी नहीं देती.
दरअस्ल जुलानी ने पिछले कुछ सालों के दौरान अपने सभी प्रतिद्वंदियों को दरकिनार कर दिया था. इस कारण एचटीएस एक शक्तिशाली संगठन बना रहा है. साथ ही एचटीएस ने अपने आपको एक स्थानीय सीरियाई संगठन के रूप में ढाला है. इसकी प्राथमिकता स्थिरता और प्रशासन है. उसने अपने आपको विश्व के दूसरे जिहादी गुटों से दूर भी कर लिया है.
मगर सवाल उठता है कि क्या इस प्रशासन में भी कट्टरपंथी और तानाशाही प्रवृत्ति हावी हो जाएगी? नए प्रशासन ने स्कूल में इतिहास को इस्लामी धारणाओं के अनुसार पढ़ाने के लिए नया पाठ्यक्रम लागू कर दिया है.
डॉक्टर रहाफ़ अलडोघली कहती हैं कि आख़िरकार जुलानी कट्टरपंथी सोच के अनुसार काम करते रहे हैं. अगर वो प्रशासन को उदारवादी बनाने या सभी तबकों को साथ लेकर चलने की कोशिश करेंगे तो उन्हें भीतर से ही चुनौती मिल सकती है.
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वाशिंगटन इस्टिट्यूट में अरब राजनीति अध्ययन के प्रोग्राम के निदेशक डेविड शेंकेर कहते हैं एचटीएस ने हाल में कई सकारात्मक बयान जारी किए हैं, लेकिन आतंकवाद से जुडे उसके अतीत को भुलाया नहीं जा सकता.ट
उन्होंने कहा, “इस संगठन को आतंकवादी घोषित किया गया है. एक समय यह अल-क़ायदा और इस्लामिक स्टेट ग्रुप से जुड़ा हुआ था. अभी भी वह कट्टरपंथी इस्लामी विचारधारा पर चलता है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय में इस बात को लेकर चिंता है कि वह किस प्रकार सीरिया पर शासन करेगा. क्यों कि सीरिया के गैर मुस्लिम लोगों को इस प्रकार की इस्लामी कट्टरपंथी सरकार नहीं चाहिए.”
एचटीएस की पृष्ठभूमि को लेकर कई सवाल खड़े हुए हैं जैसे कि उसके नेतृत्व में सीरिया का भविष्य क्या होगा. मगर बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करता है कि क्षेत्र के दूसरे देश और क्षेत्र के बाहर के देशों की इस पर क्या प्रतिक्रिया आती है.
एचटीएस के सत्ता में आने से ईरान पर बड़ा असर पड़ेगा. डेविड शेंकेर कहते हैं कि सीरिया और ईरान के बीच लगभग चालीस दशकों तक एक सामरिक संबंध कायम रहा. सीरिया ईरान के लिए एक पुल की तरह है. इसके जरिए वो
जिसके जरिये वो बेरूत से दक्षिणी लेबनान और इसराइल की सीमा तक पहुंच सकता है. मगर व्याव्हारिक दृष्टि से इसका ईरान के लिए क्या मायने है?
डेविड शेंकेर ने कहा, “इसका मतलब यह है कि ईरान ने एक सहयोगी खो दिया है. सीरिया के जरिए ईरान इसराइल को परेशान कर सकता था, उसे धमका सकता था और निशाना बना सकता था. तो इसका मतलब यह है कि ईरान का एक मित्र देश कम हो गया है. साथ ही ईरान का सीरिया के साथ सामरिक संबंध खत्म हो गया है.”
इस राजनीति में दूसरा महत्वपूर्ण देश है सीरिया का पड़ोसी तुर्की जो कि लंबे समय से असद सरकार का विरोध करता रहा है. वो सीरिया के उत्तरी क्षेत्र में दबदबा रखने वाले कुर्द विद्रोहियों के साथ दशकों से लड़ता रहा है.
सीरिया के गृह यु्द्ध के कारण लगभग तीस लाख सीरियाई शरणार्थी तुर्की में रह रहे हैं. यानी सीरिया में सत्ता परिवर्तन तुर्की के लिए केवल विदेश नीति का मसला नहीं बल्कि घरेलू राजनीति से जुड़ा मुद्दा भी है. सीरिया में असद सरकार के गिरने से रूस पर भी असर पड़ सकता है.
रूस असद सरकार की सहायता करता रहा है और साथ ही अफ़्रीका में रूसी कार्यवाहियों के लिए सीरिया के भूमध्यसागरीय तट का इस्तेमाल करता रहा है. डेविड शेंकेर कहते हैं कि सीरिया में अभी भी रूस के दो सैनिक अड्डे हैं. अब देखना है कि सीरिया की नई सरकार वहां रूस के मौजूदगी को कैसे देखेगी. इस क्षेत्र में बड़ा प्रभाव रखने वाले अमेरिका की क्या प्रतिक्रिया होगी? यह भी अभी स्पष्ट नहीं है.
अमेरिका के सैनिक सीरिया में इस्लामिक स्टेट से लड़ने के लिए कुर्द गुट एसडीएफ़ के साथ मिल कर काम करते रहे हैं. एसडीएफ़ उन जेलों की निगरानी करता है, जहां इस्लामिक स्टेट के सैकड़ों चरमपंथी कैद हैं. अपने पहले कार्यकाल के दौरान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सीरिया से अमेरिकी सैनिक वापिस बुलाने की बात की थी. अब इस बारे में अमेरिका का क्या रुख़ होगा?
डेविड शेंकेर ने बताया कि फ़िलहाल अमेरिका के लगभग दो हज़ार सैनिक पूर्वी सीरिया में मौजूद हैं जो कि असर सरकार को पूर्वी क्षेत्र के तेल भंडारों से दूर रख रहे थे. 2018 में अमेरिका ने लगभग 200 सैनिकों को वापस बुला लिया था, लेकिन हो सकता है अब ट्रंप सभी अमेरिकी सैनिकों को सीरिया से वापिस बुला लें.”
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सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज में मध्य पूर्व प्रोग्राम में वरिष्ठ शोधकर्ता नताशा ह़ॉल कहती हैं कि सीरिया में असद सरकार को इतनी तेज़ी से उखाड़ फेंका गया कि वहां कि आम जनता को विश्वास करना मुश्किल हो गया.
“मेरी कई सीरियाई लोगों से बात हुई.वो सालों से डर और दुख के साये में जी रहे थे. उन्हें लगता है जैसे उनकी छाती पर से बरसों से रखा भारी बोझ हट गया है.”
नताशा ह़ॉल कहती हैं कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन पाने के लिए एचटीएस ने सीरियाई जनता को स्पष्ट कर दिया कि उसकी प्राथमिकता देश में स्थिरता लाना है.
“एचटीएएस ने बहुत जल्द ही जिम्मेदारी से काम करना शुरू कर दिया और लूटपाट नहीं होने दी. सरकारी कर्मचारियों और सैनिकों से कहा कि वो अपने पद पर बने रह सकतें हैं, लेकिन वो बशर अल-असद के प्रति निष्ठा त्याग दें. उन्होंने अल्पसंख्यकों को आश्वासन दिया कि उन्हें कोई तकलीफ़ नहीं पहुंचाए जाएगी. विद्रोही आशा कि किरण जगाने कोशिश कर रहे है.”
लेकिन नागरिक व्यवस्था तभी बरकरार रह सकती है जब लोगों के पास घर और रोज़गार होगा. नताशा ह़ॉल का कहना है कि देश में बहुत ज्यादा ग़रीबी और कुपोषण है. सीरियाई सरकार लोगों को लूटती रही थी. मकान ध्वस्त हो चुके हैं और लगभग 90 प्रतिशत आबादी ग़रीबी रेखा से नीचे है. देश के पुनर्निर्माण के लिए बहुत काम करना होगा जिसके लिए अरबों डॉलर की ज़रूरत होगी, लेकिन साथ ही भ्रष्टाचार रोकने की चुनौती भी होगी.
नताशा ह़ॉल का कहना है कि जब इतनी बड़ी मात्रा में पैसे आते हैं तो यह सुनिश्चित करना मुश्किल होता है कि यह पैसे युद्ध सरदारों के हाथ में ना जाएं. क्यों कि ऐसा हुआ तो वैसी ही स्थिति पैदा हो जाएगी जैसी अफ़ग़ानिस्तान, इराक और लेबनान में हुई थी. ऐसे में नई सरकार और लोकतंत्र की जड़े मज़बूत होने में दिक्कत आ सकती है.
वो कहती हैं, “कई लोग एचटीएस के इस बयान से भी चिंतित है कि सीरिया में लोकतांत्रिक चुनाव करवाने में चार साल लगेंगे और संविधान तैयार करने में तीन साल.”
तो अब लौटते हैं अपने मुख्य प्रश्न की ओर- सीरिया आगे किस दिशा में जा सकता है? अबू मोहम्मद अल जुलानी के नेतृत्व वाले एचटीएस के देश पर कब्ज़ा करने से पहले ही एचटीएस को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने आतंकवादी संगठन घोषित कर रखा था.
इस कारण एचटीएस के सामने सबसे बड़ी चुनौती देश और बाहर के लोगों के सामने अपनी छवि बदलने की है. नए प्रशासन ने कहा है कि वो देश की संस्कृति की रक्षा करेगा. मगर कई लोग एचटीएस की सुन्नी धारणाओं को स्वीकार नहीं करते. ऐसे में प्रशासन क्या कदम उठाएगा यह अभी स्पष्ट नहीं है.
एक्सपर्ट डॉक्टर रहाफ़ अलडोघली कहती हैं कि अगर सीरिया में जातीय हिंसा भड़की तो देश फिर अराजकता की ओर जा सकता है इसलिए देश की सरकार को यह ख़तरा मोल नहीं लेना चाहिए.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित