- Author, दीपक मंडल
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स देशों को फिर चेतावनी दी है.
ट्रंप ने कहा है कि ब्रिक्स (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ़्रीका) देशों ने अंतरराष्ट्रीय कारोबार में डॉलर का इस्तेमाल छोड़ा तो अमेरिका उनके ख़िलाफ़ सौ फ़ीसदी टैरिफ़ लगाएगा.
ट्रंप ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रूथ सोशल पर चेतावनी दी है कि अगर ब्रिक्स देशों ने डॉलर के मुक़ाबले कोई नई ब्रिक्स करंसी विकसित की तो अमेरिका चुपचाप बैठा नहीं रहेगा.
ट्रंप कनाडा और मैक्सिको के ख़िलाफ़ टैरिफ का एलान कर चुके हैं.
भारत ब्रिक्स के संस्थापक देशों में से एक है. ट्रंप ने कहा था कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फरवरी में अमेरिका का दौरा कर सकते हैं. लेकिन सवाल ये है कि नरेंद्र मोदी से दोस्ती का दावा करने वाले ट्रंप उस ग्रुप को क्यों निशाना बने रहे हैं, जिसका भारत अहम सदस्य है.
ट्रंप ने क्या कहा
ट्रंप ने कहा कि वो दौर चला गया जब ब्रिक्स देश डॉलर से दूरी बनाने की कोशिश करते रहें और अमेरिका दूर खड़ा होकर तमाशा देखे.
उन्होंने कहा कि अमेरिका को दुश्मन जैसे दिखने वाले इन देशों से ये कमिटमेंट चाहिए कि वो न तो कोई नई ब्रिक्स करंसी बनाएंगे और न किसी ऐसी मुद्रा का समर्थन करेंगे जो ताक़तवर डॉलर की जगह ले सकती है.
उन्होंंने ट्रूथ सोशल पर लिखा, ” अगर उन्होंने ऐसा किया तो उन्हें सौ फ़ीसदी टैरिफ़ का सामना करना होगा. इसके साथ ही उन्हें अमेरिका जैसे शानदार देश को अपना माल बेचने का सपना छोड़ना पड़ेगा.”
ट्रंप ने कहा कि डॉलर की जगह ब्रिक्स की नई करंसी की कोई संभावना नहीं है. ब्रिक्स अंतरराष्ट्रीय व्यापार में या कहीं और अमेरिकी डॉलर की जगह लेगा ऐसा लगता नहीं.
लेकिन अगर ब्रिक्स देशों ने अपनी करेंसी चलाने की कोशिश की तो उन्हें अमेरिका से कारोबार को अलविदा कहने के लिए तैयार रहना चाहिए.
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क्या रूस और चीन हैं निशाना
विश्लेषकों का कहना है कि भले ही ट्रंप ने भारत की सदस्यता वाले ब्रिक्स को धमकी दी है लेकिन उनका असली निशाना चीन और रूस हैं.
अमेरिका को सबसे बड़ी चुनौती चीन से मिल रही है. चीन अमेरिका को अपना प्रमुख प्रतिद्वंद्वी मानता है.
वहीं अमेरिका को भी लगता है कि उसके सामने सबसे बड़ी आर्थिक चुनौती चीन ही है.
यूक्रेन पर हमले और फिर रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों के बाद डॉलर की वैकल्पिक मुद्रा बढ़ाने की कोशिश और जोरशोर से शुरू हुई थी.
चीन ने रूस से रूबल में तेल खरीदना शुरू किया था.
भारत और रूस के बीच रूबल और रुपये में कारोबार होता रहा है.
अक्टूबर 2024 में 16 वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में ब्रिक्स देशों ने व्यापार में स्थानीय मुद्राओं के उपयोग को बढ़ाने या अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिए एक नई ब्रिक्स मुद्रा बनाने पर चर्चा की थी.
उस वक्त भी ट्रंप ने कहा कि यदि ब्रिक्स देश वैश्विक रिजर्व मुद्रा के रूप में अमेरिकी डॉलर के स्थान पर किसी मुद्रा का समर्थन करते हैं, तो उन्हें 100 फीसदी टैरिफ का सामना करना होगा.
हालांकि भारत ने अमेरिका के साथ मजबूत आर्थिक संबंधों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई तथा इस बात पर जोर दिया कि उसका अमेरिकी डॉलर को कमजोर करने का कोई इरादा नहीं है.
हालांकि भारत ये लगातार कोशिश करता रहा है कि डॉलर पर उसकी निर्भरता कम हो. साथ ही वो रुपये को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के तौर पर आगे बढ़ाने की भी कोशिश करता रहा है. रूस से रुपये में कारोबार इसी का उदाहरण है.
नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में चीनी अध्ययन केंद्र में एसोसिएट प्रोफेसर अरविंद येलेरी कहते हैं, ” ट्रंप का असली निशाना चीन है. क्योंकि चीन लगातार ये कोशिश करता रहा है कि डॉलर को चुनौती दी जाए. चीन के पास अमेरिकी बॉन्ड सबसे ज्यादा है और इस पर वो काफी ब्याज भी कमा रहा है. लेकिन अब धीरे-धीरे वो इस बॉन्ड में निवेश कम कर रहा है. उसके बजाय उसने रूस और जापान का बॉन्ड लेना शुरू किया है.”
उनका कहना है, ” जहां तक भारत के ख़िलाफ़ कड़े कदम उठाने की बात है तो ट्रंप ट्रांजेक्शन व्यवहार यानी लेन-देन में विश्वास करते हैं. हालांकि वो कारोबारी मामले में अपने दोस्त देशों को भी कोई छूट नहीं देते. लेकिन कड़े प्रतिबंधों को ढीला करने के नाम पर उस दोस्त से काफी कुछ ले भी लेते हैं. ट्रंप चाहेंगे कि भारत अमेरिका के लिए अपने बाजारों को और खोले. अमेरिका का भारत के साथ व्यापार घाटा कम हो. इसलिए वो भारत के ख़िलाफ़ बहुत ज्यादा कड़ा रुख ना अपनाते हुए उससे ज्यादा छूट चाहेंगे.”
भारत का क्या होगा रुख़
भारत इस बात के संकेत देता रहा है कि वो भी ट्रंप प्रशासन के साथ डॉलर या ऐसे ही कारोबारी मुद्दों पर टकराव लेना नहीं चाहेगा.
इस पर उन्होंने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप एक ‘अमेरिकी राष्ट्रवादी’ हैं.
उन्होंने माना कि ट्रंप की नीतियों से वैश्विक व्यवस्था में अहम बदलाव देखने को मिल सकते हैं लेकिन भारत अपने हितों के हिसाब से चीजें तय करेगा.
उन्होंंने माना कि भारत और अमेरिका के बीच कुछ असहमतियां हैं लेकिन कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां हालात हमारे पक्ष में होंगे.
उन्होंने कहा कि अमेरिका के साथ भारत के रिश्ते अच्छे हैं. इसके साथ ही प्रधानमंत्री के साथ भी ट्रंप के निजी रिश्ते बेहतर हैं. इसका फायदा देश को मिलेगा.
डॉलर ग्लोबल करेंसी
अमेरिकी कांग्रेस की रिसर्च सर्विस के मुताबिक़ 2022 में लगभग आधा अंतरराष्ट्रीय कारोबार अमेरिकी डॉलर में हुआ था. सभी अंतरराष्ट्रीय कर्ज और सिक्योरिटीज का आधा हिस्सा डॉलर में ही है.
मजबूत डॉलर की वजह से अमेरिकी उत्पादकों के लिए विदेशों में सामान बेचना मुश्किल हो जाता है क्योंकि कमजोर मुद्रा वाले देशों को ये सामान बहुत महंगा मिलता है. इसके उलट ये देश अपने यहाँ सस्ता श्रम होने के कारण कम लागत में बना सकते हैं. फिर होता ये है कि अमेरिकी अपने मजबूत डॉलर के दम पर इस सस्ते सामान का इंपोर्ट कर लेते हैं. यही एक कारण है कि 1970 के दशक से अमेरिका का व्यापार घाटा बढ़ा है.
विश्व अर्थव्यवस्था में अमेरिका केंद्र में है. इसका मतलब ये है कि लगभग हर दूसरे देश की आर्थिक सफलता आंशिक रूप से अमेरिका से जुड़ी हुई है. अगर मंदी जैसी किसी घटना के कारण अमेरिकी डॉलर का मूल्य अचानक कम हो जाता है तो उस पर निर्भर हर देश आर्थिक दिक्कत का सामना कर सकता है.
2008 के वित्तीय संकट के बाद भी ऐसी ही स्थिति आई थी , जब अमेरिकी हाउसिंग बाजार में गिरावट के बाद दुनिया के शेयर बाज़ारों में 40 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित