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Us Iran Attack Pakistan Trump Nobel,ट्रंप के नोबेल नॉमिनेशन को कैंसिल करेगा पाकिस्तान? ईरान पर हमले के बाद बुरी तरह फंसे शहबाज, सांप छछूंदर वाला हाल – pakistan nobel peace prize nomination for donald trump awkward after us attack on iran pressure on shehbaz

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Jun 23, 2025


इस्लामाबाद: पाकिस्तान ने दो दिन पहले दुनिया को चौंकाते हुए डोनाल्ड ट्रंप को शांति का मसीहा बताया और उनके लिए नोबेल पुरस्कार की मांग कर डाली। पाकिस्तान ने आधिकारिक तौर पर ट्रंप के लिए नोबेल पुरस्कार मांगा है और भारत-पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष में उन्हें मध्यस्थता करवाने का क्रेडिट दिया है। पाकिस्तान का कहना था कि भारत और पाकिस्तान परमाणु युद्ध में फंस सकते थे और ट्रंप ने न्यूक्लियर वॉर रूकवाया है, इसलिए उन्हें दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित अवार्ड मिलना चाहिए। लेकिन शहबाज सरकार का यह कूटनीतिक दांव अगले ही दिन पाकिस्तान के गले की फांस बन गया। रविवार को अमेरिका ने इजरायल के साथ मिलकर ईरान पर हमला कर दिया। जबकि पाकिस्तान, ईरान के समर्थन में लंबी लंबी फेंकने में लगा था। पाकिस्तान इस्लाम के नाम पर ईरान के साथ खड़ा होने का दावा कर रहा था, लेकिन अब पाकिस्तान की जनता, डिप्लोमेट्स और एक्सपर्ट्स शहबाज सरकार पर ट्रंप को नोबेल पुरस्कार देने की मांग को वापस लेने का प्रेशर बना रहे हैं।

पाकिस्तान के लिए ये हाल सांप और छछूंदर के बीच फंसे होने जैसा है। नोबेल नॉमिनेशन वापस लेने का मतलब ट्रंप से पंगा लेना होगा, जबकि दूसरी तरफ घरेलू राजनीति में कहा जा रहा है कि शहबाज शरीफ और पाकिस्तान के फील्ड मार्शल असीम मुनीर ने ईरान के पीठ में खंजर घोंपा है। हालांकि पाकिस्तान ने ईरान पर हमले की निंदा जरूर की है, लेकिन इससे दाग साफ नहीं होने वाले हैं। पाकिस्तान, भारत को घेरने के लिए ट्रंप के लिए नोबेल कार्ड खेला था, लेकिन मुस्लिम दुनिया में उसकी थू-थू हो रही है।

ट्रंप के लिए नोबेल, ईरान के पीठ पर खंजर
पाकिस्तान की विदेश नीति ने 24 घंटे में यूटर्न लिया और शनिवार को ट्रंप की तारीफ में कसीदे पढ़ने वाली सरकार रविवार को अमेरिकी हमले की निंदा करती दिखी। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने अमेरिका-इजरायल के कदम को “अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन” बताया। इससे पाकिस्तान की नीति पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं, कि क्या शहबाज सरकार को ट्रंप के असली चरित्र का अंदाजा नहीं था? क्या यह जल्दबाजी में लिया गया फैसला था? सोशल मीडिया पर लगातार पाकिस्तानी अपनी ही सरकार की फजीहत कर रहे हैं। बीबीसी की संवाददाता अज़ादेह मोशिरी, जो पाकिस्तान कवर करती हैं, उन्होंने लिखा है कि ‘पाकिस्तान एक मुश्किल स्थिति में है। ओवल ऑफिस के साथ बढ़ते संबंधों और एक पड़ोसी देश के लिए समर्थन को कैसे समेटा जाए, जिस पर अमेरिका ने अब बमबारी की है?’ उन्होंने लिखा है कि “सोशल मीडिया पर पाकिस्तानी राजनेता और आम जनता “अजीब” और “शर्मनाक” शब्दों का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं।”

पाकिस्तान सीनेट रक्षा समिति के पूर्व अध्यक्ष मुशाहिद हुसैन ने शुरू में ट्रंप के नोबेल नामांकन की सराहना की थी और तर्क दिया था कि अगर यह “ट्रंप के अहंकार को संतुष्ट करने से फायदा मिलता है ऐसा करना सही है, क्योंकि यूरोपीय लोगों ने भी ऐसा ही किया है।” लेकिन एक दिन बाद वे सरकार की निंदा करते हुए ट्रंप के नोबेल नॉमिनेशन को निरस्त या रद्द करने की मांग कर रहा हैं। उन्होंने ट्रंप को युद्धोन्मादी बताया है। यानि पाकिस्तान के राजनीतिक गलियारे में भी बवंडर आ गया है। पूर्व राजदूत मलीहा लोधी ने सरकार की आलोचना करते हुए कहा, “यह फैसला राष्ट्रीय गरिमा के खिलाफ है।” पाकिस्तान के एक्सपर्ट्स यह कह रहे है कि “पाकिस्तान की सरकार खुद नहीं जानती कि वह किस स्टैंड पर है। ये दिखाता है कि पाकिस्तान की विदेश नीति आज भी विचारधारा से नहीं, मजबूरी और अवसरवाद से चलती है।”

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