अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और मैक्सिको की राष्ट्रपति क्लाउडिया शीनबाम की लंबे समय से टलती आ रही पहली सीधी मुलाकात अब होने जा रही है। हैरानी की बात यह है कि यह बैठक इमिग्रेशन मुद्दे पर नहीं, बल्कि 2026 वर्ल्ड कप, व्यापार और टैरिफ जैसे विषयों पर केंद्रित है, जबकि ट्रंप का सबसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा ही अमेरिका-मैक्सिको बॉर्डर पर कड़ी कार्रवाई है।
दस महीने से सत्ता में रहने के बाद अब जाकर ट्रंप शीनबाम से मिल रहे हैं, जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति अक्सर पड़ोसी देश मैक्सिको के नेता से जल्दी मुलाकात करते हैं। हालांकि बताया यह भी जा रहा है कि जून 2024 में कनाडा में जी7 सम्मेलन के दौरान दोनों की मुलाकात तय थी, लेकिन इस्राइल–ईरान तनाव बढ़ने के कारण ट्रंप को समय से पहले लौटना पड़ा और बैठक रद्द हो गई।
वर्ल्ड कप के बहाने मुलाकात, लेकिन टैरिफ का साया कायम
बता दें कि ट्रंप और राष्ट्रपति शीनबाम की यह मुलाकात वर्ल्ड कप के बहाने भले ही हो रही है, लेकिन इसका वास्तविक लक्ष्य कुछ और ही है। इस बात को ऐसे समझा जा सकता है कि शुक्रवार को वॉशिंगटन के कैनेडी सेंटर में 2026 फुटबॉल वर्ल्ड कप का ड्रॉ हुआ, जिसमें अमेरिका, मैक्सिको और कनाडा तीनों मेजबान हैं।
दूसरी ओर शीनबाम पहले ही कह चुकी थीं कि वह ड्रॉ में हिस्सा लेंगी और ट्रंप से छोटी मुलाकात संभव है। मीडिया रिपोर्ट की माने तो उनका फोकस है- ऑटोमोबाइल, स्टील और एल्युमिनियम पर लगे अमेरिकी टैरिफ हटवाना है। दूसरा ओर ट्रंप की ओर से भी कहा गया कि वह शीनबाम से मिलेंगे।
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मैक्सिको अमेरिका का सबसे बड़ा साझेदार
रिपोर्टस बताती हैं कि आज के समय में मैक्सिको अमेरिका का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। जहां ट्रंप की बनाई हुई USMCA व्यापार संधि अभी लागू है, लेकिन अमेरिकी अधिकारी अब इसकी समीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, जिससे व्यापार तनाव बढ़ सकता है। उधर, सीमा पार अवैध प्रवेश में भारी गिरावट और ट्रंप प्रशासन की बड़े पैमाने पर टैरिफ लगाने की अधूरी धमकियों ने दोनों देशों की प्राथमिकताएं बदल दी हैं।
फोन पर बातचीत जारी, लेकिन मुलाकात में देरी का कारण?
हालांकि ट्रंप रूस और चीन के राष्ट्राध्यक्षों से मिल चुके हैं, लेकिन शीनबाम से मुलाकात अब तक टलती रही। दोनों देशों के बीच फोन पर लगातार बातचीत होती रही है, जिस दौरान फेंटानिल ड्रग तस्करी रोकने और टैरिफ पर चर्चा मुख्य विषय रहे हैं। वहीं ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद 25% टैरिफ लगाने की धमकी दी थी, लेकिन बाद में रोक लगा दी।
ऐसे में कई बार मैक्सिको को राहत भी मिलती रही। यह संकेत देता है कि शीनबाम ट्रंप के साथ संबंधों को संभालने में माहिर मानी जाती हैं। उन्होंने ट्रंप के ‘मैक्सिको की खाड़ी का नाम बदलकर ‘अमेरिका की खाड़ी’ करने वाले बयान को मजाकिया अंदाज में टालते हुए सुझाव दिया कि अगर ऐसा है तो पूरे उत्तरी अमेरिका का नाम ‘अमेरिका मैक्सिकाना’ रख दिया जाए।
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मैक्सिको की बड़ी चुनौती- 2026 से पहले नए टैरिफ रोकना
मैक्सिको की अर्थव्यवस्था धीमी है और अगर ट्रंप 25% तक के बड़े टैरिफ लगा देते हैं तो देश को भारी नुकसान हो सकता है। मैक्सिको सरकार ने अमेरिका की 1% रेमिटेंस टैक्स का कड़ा विरोध किया था, लेकिन यह रोक नहीं पाई। यह टैक्स एक जनवरी से लागू होगा।
ट्रंप की बड़े पैमाने पर निर्वासन नीति और मैक्सिको की चिंता
ट्रंप प्रशासन ने कई डेमोक्रेटिक शहरों में बड़े पैमाने पर निर्वासन अभियान शुरू किए हैं। हालांकि कहा जाता है कि खतरनाक अपराधियों को निशाना बनाया जा रहा है, लेकिन गिरफ्तार किए गए अधिकांश लोग ऐसे नहीं हैं। इससे अमेरिका में वर्षों से रह रहे कई मेक्सिकन नागरिक अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। विदेश से भेजे पैसे लगातार सात महीनों से गिर रहे हैं, जो मैक्सिको की अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका है। ऐसे में इमिग्रेशन अब दोनों देशों के बीच पहले जितना बड़ा मुद्दा नहीं रहा, क्योंकि सीमा पार अवैध प्रवेश में भारी कमी आई है।
सुरक्षा और ड्रग्स पर सहयोग बढ़ा, समझिए कैसे?
गौरतलब है कि फेंटानिल और ड्रग कार्टेल को लेकर अमेरिका की चिंताओं को शांत करने के लिए शीनबाम ने अपने सुरक्षा प्रमुख ओमर गार्सिया हार्फ़ुच को ज्यादा अधिकार दिए। मैक्सिको ने कई कार्टेल सरगनाओं को अमेरिका को सौंपा है, जिनमें राफेल कारो किंटेरो भी शामिल है, जिस पर 1985 में डीईए एजेंट की हत्या का आरोप है। हालांकि ट्रंप के साथ हर मुद्दे पर तालमेल आसान नहीं रहा। ट्रंप द्वारा मैक्सिको में अमेरिकी सैनिक भेजने के सुझाव को शीनबाम ने सख्ती से ठुकरा दिया। ट्रंप ने उन पर कार्टेल से डरने का आरोप लगाया, लेकिन शीनबाम ने विवाद बढ़ने से बचते हुए कोई पलटवार नहीं किया।