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अमेरिकी एजेंसी यूएसएड की ओर से भारत में ‘वोटर टर्नआउट’ बढ़ाने के लिए की गई कथित फंडिंग का मामला तूल पकड़ता जा रहा है.
शुक्रवार को भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि अमेरिकी प्रशासन की ओर से भारत में चुनावी फंडिंग के बारे में दी गई जानकारी से देश के आंतरिक मामलों में विदेशी हस्तक्षेप को लेकर गंभीर चिंता पैदा हुई है.
इससे पहले बीजेपी ने इस कथित फंडिंग को भारत में विदेशी हस्तक्षेप करार दिया था और इस मुद्दे पर कांग्रेस को घेरा.
हालांकि कांग्रेस ने भारत को पैसे मिलने के डोनाल्ड ट्रंप के दावे को ‘बकवास’ करार दिया था.
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यूएसएड की ‘चुनावी फंडिंग’ पर बीजेपी-कांग्रेस फिर भिड़े
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि भारत को चुनावों में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए 2.10 करोड़ डॉलर क्यों दिए जाने चाहिए.
यूएसएड (यूनाइटेड स्टेट एजेंसी फोर इंटरनेशनल डेवलपमेंट) की ये कथित फंडिंग भारत के लिए थी या बांग्लादेश के लिए, इस पर अभी बहस ही चल रही है.
लेकिन लगता है कि भारत सरकार ने डोनाल्ड ट्रंप के इस बयान को गंभीरता से लिया है. शुक्रवार को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि इस मामले की जांच की जा रही है और जल्द ही इस पर अपडेट दिया जाएगा.
दरअसल भारत को मिले इस कथित फंड पर बहस के बीच अंग्रेजी अख़बार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने ये ख़बर छापी है कि ये पैसा बांग्लादेश को दिया गया था.
इस ख़बर के बाद पर भारत में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए कथित फंडिंग पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप का नया दौर शुरू हो गया.
बीजेपी के आईटी सेल के चीफ अमित मालवीय ने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट का हवाला देकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखा,” इसमें 2.10 करोड़ डॉलर की फंडिंग के रेफरेंस को गलत तरीके से पेश किया गया है, जिसका मकसद भारत में मतदान प्रतिशत बढ़ाना था.”
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अमित मालवीय ने लिखा, ” ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट ने 2012 में एसवाई कुरैशी (पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त) के नेतृत्व में चुनाव आयोग और इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स (आईएफईएस) के बीच एएमयू (मेमोरंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग) की अनदेखी की है.”
मालवीय ने लिखा, ”आईएफईएस अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन से जुड़ा हुआ है. उन्होंने कहा कि सोरोस के संगठन को मुख्य रूप से यूएसएड फंड करता है. रिपोर्ट में 2014 से शुरू होकर भारत की चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने के मकसद से अलग-अलग कैटेगरी के तहत कई फंडिंग का ज़िक्र नहीं है.”
दूसरी ओर ‘ इंडियन एक्सप्रेस’ की इस रिपोर्ट का हवाला देते हुए कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने बीजेपी को राष्ट्र विरोधी करार दिया और कहा कि बीजेपी ही सबसे लंबे समय तक विपक्ष में रही है और उसने ही कांग्रेस सरकारों को अस्थिर करने के लिए ‘बाहरी ताकतों’ की मदद ली है.
वहीं कांग्रेस के कम्यूनिकेशन हेड जयराम रमेश ने कहा कि ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट ने बीजेपी के झूठ का पर्दाफाश कर दिया है. उन्होंने कहा है कि बीजेपी को झूठे आरोप लगाने के लिए माफ़ी मांगनी चाहिए.
कैसे शुरू हुआ विवाद
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दरअसल ये पूरा मामला अमेरिका में सरकारी खर्चों में कटौती के लिए बनाए गए डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी यानी (डीओजीई) के फैसले से जुड़ा है.
इस विभाग का नेतृत्व टेस्ला और स्पेसएक्स के मालिक एलन मस्क कर रहे हैं.
इसी के तहत 1960 के दशक से मानवीय सहायता कार्यक्रम चला रही है अमेरिकी एजेंसी यूएसएड ने कई परियोजनाओं की फंडिंग रद्द कर दी थी.
इस महीने की शुरुआत में डोनाल्ड ट्रंप ने यूएसएड को बंद करके उसे विदेश मंत्रालय में शामिल करने एलान किया था .
इसने फंडिंग से कटौती के जो फ़ैसले लिए उसमें “कंसोर्टियम फॉर इलेक्शन एंड पॉलिटिकल प्रोसेस स्ट्रेंथनिंग” यानी दुनिया भर में चुनाव और वोटिंग के जरिये लोकतंत्र को मजबूत करने का प्रोजेक्ट भी शामिल था.
इस प्रोग्राम को मिलने वाले फंड में से 486 मिलियन डॉलर की कटौती कर दी गई. कहा जा रहा है कि इसी फंडिंग में से 2.10 करोड़ डॉलर भारत के हिस्से का था.
डीओजीई की इस कटौती का बचाव करते हुए ट्रंप ने कहा था भारत के पास “बहुत पैसा है”. वो दुनिया के सबसे ज्यादा टैक्स लगाने वाले देशों में से एक है.
गुरुवार को उन्होंने इस पर फिर सवाल उठाया और कहा कि भारत को ये पैसा क्यों दिया जाना चाहिए.
इससे पहले ट्रंप ने मियामी के एक सम्मेलन में इस फंडिंग का संबंध भारत से जोड़ते हुए कहा था कि उन्हें लगता है कि वो चुनाव में किसी और को जितवाने की कोशिश कर रहे थे. उनका इशारा बाइडन सरकार की ओर था, जो भारत में कथित तौर पर सत्ता परिवर्तन चाहती थी.
उसी दिन अमित मालवीय ने 2024 के चुनाव से पहले लंदन में एक कार्यक्रम में बोलते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी के भाषण का वीडियो क्लिप शेयर किया था. इसमें राहुल गांधी ये कहते सुने जा सकते हैं कि ” अमेरिका और यूरोप जैसे लोकतंत्र इस बात से अनजान हैं कि भारत में लोकतांत्रिक मॉडल का एक बड़ा हिस्सा बर्बाद हो गया है.”
मालवीय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा था, ”राहुल गांधी लंदन में थे और अमेरिका से लेकर यूरोप तक विदेशी ताकतों से भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का अनुरोध कर रहे थे.
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने मालवीय के इस दावे को ख़ारिज करते हुए कहा था कि मोदी सरकार अपने एक दशक के कार्यकाल के दौरान यूएसएड की ओर से सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों को मिली सहायता पर रिपोर्ट जारी करे.
क्या यूएसएड ने भारत को 2.10 करोड़ डॉलर दिए थे
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इस बारे में कई मीडिया रिपोर्टों के बावजूद न तो डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएन्सी (डीओजीई) और न ही डोनाल्ड़ ट्रंप ने इस बात का सुबूत दिया है कि भारत में वोटिंग को बढ़ावा देने के लिए 2.10 करोड़ डॉलर दिए गए.
भारत के चुनाव आयोग ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. लेकिन पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई क़ुरैशी ने कहा कि पूर्व चुनाव प्रमुख एसवाई क़ुरैशी ने कहा कि 2010 से लेकर 2012 तक के उनके कार्यकाल में ऐसा कोई फंड नहीं मिला था.
इससे पहले अमित मालवीय ने दावा किया था कि 2012 में जब क़ुरैशी मुख्य चुनाव आयुक्त थे तो भारतीय निर्वाचन आयोग ने जॉर्ज सोरोस से जुड़े एक ग्रुप से समझौता किया था. इस ग्रुप को यूएसएड पैसा दे रहा था. इसका मकसद चुनाव के दौरान वोट प्रतिशत बढ़ाने के कैंपेन का समर्थन करना था.
क़ुरैशी ने इस दुर्भावना से लगाया गया आरोप कहा है. उन्होंने कहा कि वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने के लिए कैंपेन चलाने का जो समझौता हुआ उसमें वित्तीय या कानूनी बाध्यता नहीं थी.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित