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20 जनवरी डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति के तौर पर दूसरे कार्यकाल का पहला दिन था. राष्ट्रपति बनते ही ट्रंप ने 90 दिनों के लिए विदेशी मदद बंद करने का फ़ैसला किया था.
इससे जुड़े एग्जेक्युटिव ऑर्डर में कहा गया था कि यूनाइटेड स्टेट्स फॉरन डेवलपमेंट असिस्टेंट को 90 दिनों के लिए रोका जाता है ताकि इसकी समीक्षा की जा सके.
यूएस एजेंसी फोर इंटरनेशनल ऐड एक स्वतंत्र एजेंसी है, जो 1961 में अमेरिकी कांग्रेस के ज़रिए बनी थी.
इसका मक़सद था कि दुनिया भर में लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा दिया जाए. हालांकि इसके लक्ष्य को अमेरिकी सुरक्षा और उसके प्रभाव बढ़ाने के रूप में भी देखा जाता रहा है.
भारत में इस एजेंसी से मिलने वाले फंड के मुद्दे पर पहले बीजेपी ने कांग्रेस को घेरा था. लेकिन अब कांग्रेस ने अतीत में स्मृति इरानी के इस एजेंसी के साथ संबंधों को लेकर बीजेपी पर हमला किया है.
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यूएसएआईडी दुनिया भर के 100 से ज़्यादा देशों में वित्तीय मदद पहुँचाती रही है. यूएसएआईडी को फंड अमेरिकी बजट में आवंटित होता था.
2024 में अमेरिका ने यूएसएआईडी के लिए 44.20 अरब डॉलर का फंड आवंटित किया था. यह अमेरिका के 2024 के कुल बजट का 0.4 प्रतिशत था.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार को डीओजीई की ओर से भारत में वोटर टर्नआउट के लिए 2.1 करोड़ डॉलर के फंड रद्द करने का बचाव किया था.
ट्रंप ने कहा था, ”हम भारत को 2.1 करोड़ डॉलर क्यों दे रहे हैं? उनके पास बहुत पैसे हैं. भारत दुनिया के उन देशों में है, जो हमसे बहुत टैक्स लेता है. भारत में इतना ज़्यादा टैरिफ है कि कोई सामान बेचना मुश्किल है. भारत और वहाँ के प्रधानमंत्री को लेकर मेरे मन में बहुत सम्मान है लेकिन 2.1 करोड़ डॉलर मतदान को प्रोत्साहित करने के लिए? अमेरिका में वोटर टर्नआउट का क्या?”
भारत में विवाद क्यों?
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अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएन्सी (डीओजीई) ने जब से यूनाइटेड स्टेट एजेंसी फोर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएआईडी) के ख़र्चों में कटौती का फ़ैसला किया है, तब से भारत में भी इस पर राजनीतिक बहस शुरू हो गई है.
डीओजीई के प्रमुख टेस्ला के मालिक एलन मस्क हैं. डीओजीई को अमेरिका के सरकारी ख़र्चों में कटौती की ज़िम्मेदारी दी गई है.
दरअसल भारत में मतदान बढ़ाने के लिए भी यूएसएआईडी ने फंड का आवंटन किया था, जिसे डीओजीई ने कैंसल करने का फ़ैसला किया है. इसके बाद से बीजेपी और कांग्रेस एक दूसरे पर निशाना साध रहे हैं.
पहले बीजेपी ने कांग्रेस को यूएस के इस फंड को लेकर घेरा था लेकिन अब बीजेपी नेता स्मृति इरानी भी इस विवाद की चपेट में आ गई हैं.
दरअसल, भारत में वोटर टर्नआउट के लिए अमेरिकी एजेंसी यूएसएआईडी से 2.1 करोड़ डॉलर के फंड को लेकर बीजेपी कांग्रेस की आलोचना कर रही थी.
लेकिन मंगलवार को कांग्रेस ने भी पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता स्मृति इरानी के यूएसएआईडी से संबंध निकाले. बीजेपी अमेरिकी एजेंसी के 2.1 करोड़ डॉलर के फंड को लेकर जांच की मांग कर रही थी.
कांग्रेस नेता प्रियांक खड़गे ने स्मृति इरानी के 31 अक्तूबर 2011 के एक ट्वीट को शेयर किया है, जिसमें इरानी ख़ुद कह रही हैं कि वह यूएसएआईडी की गुडविल एम्बेसडर थीं.
प्रियांक खड़गे ने एक्स पर लिखा है, ”सरकार की वेबसाइट के मुताबिक़ स्मृति इरानी यूएसएआईडी की भारत में गुडविल एम्बेसडर के रूप में काम कर चुकी हैं. तो इसका मतलब ये है कि बीजेपी नेता जॉर्ज सोरोस के असली एजेंट हैं?”
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स्मृति इरानी का नाम कैसे आया?
इरानी के अलावा कांग्रेस ने विदेश मंत्री एस जयशंकर और केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल पर भी यूएसएआईडी को प्रमोट करने का आरोप लगाया है. कांग्रेस का कहना है कि यूएसएआईडी से ज़्यादा फंड बीजेपी की अगुआई वाली एनडीए सरकार में मिले हैं.
प्रियांक खड़गे के आरोप को आगे बढ़ाते हुए कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने लिखा है, ”आख़िरकार हमें उस पसंदीदा सवाल का जवाब मिल ही गया- रसोड़े में कौन था? जॉर्ज सोरोस की असली एजेंट के रूप में स्मृति इरानी उभरी हैं.”
बीजेपी आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने कांग्रेस के आरोपों का जवाब दिया है और इस विवाद में कांग्रेस की दिवंगत नेता और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को शामिल कर दिया.
अमित मालवीय ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा है, ”विश्व स्वास्थ्य संगठन ने (डब्ल्यूएचओ) ने स्मृति इरानी को 2002 से 2005 तक ओरल रीहाइड्रेशन साल्ट्स यानी ओआरएस का गुडविल ब्रैंड एम्बेसडर नियुक्त किया था. उस वक़्त स्मृति इरानी टीवी सीरियल ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ के कारण घर-घर में लोकप्रिय थीं.”
हालांकि स्मृति इरानी 2003 में बीजेपी में शामिल हो गई थीं और 2004 के आम चुनाव में दिल्ली के चांदनी चौक से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल के ख़िलाफ़ उम्मीदवार थीं.
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बीजेपी बनाम कांग्रेस
अमित मालवीय ने लिखा है, ”विश्व स्वास्थ्य संगठन के जिस कैंपेन में स्मृति इरानी थीं, उसकी प्रचार सामग्री दिल्ली परिवहन निगम की बसों में लगाई गई थी. तब शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री थीं और पवन खेड़ा उनके पर्सनल असिस्टेंट थे, जो चप्पल और सूटकेस उठाते थे. ज़ाहिर है कि यह कैंपेन शायद उनके पे ग्रेड से बाहर का था.”
अमित मालवीय ने लिखा है, ”कांग्रेस को स्मृति इरानी फोबिया से बाहर निकलना चाहिए. यह सच है कि स्मृति इरानी ने राहुल गांधी को हराया था और यह कांग्रेस के लिए स्थायी दुख बन गया है.”
मालवीय की इस पोस्ट का जवाब पवन खेड़ा ने भी दिया.
पवन खेड़ा ने 2023 में यूएसएआईडी और भारत के बीच समझौते का एक स्क्रीनशॉट शेयर किया है. यह भारतीय रेलवे में 2030 तक ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन को लेकर समझौता था.
इस दस्तावेज़ में यूएसएआईडी प्रशासक के साथ जयशंकर की बैठक का हवाला है, जिसमें खाद्य, ऊर्जा और क़र्ज़ से जुड़ी चुनौतियों पर बात हुई थी.
पवन खेड़ा ने लिखा है, ”बीजेपी आईटी सेल के कुली ज़ोर-शोर से बता रहे हैं कि शीला दीक्षित ने ही डब्ल्यूएचओ ओआरएस कैंपेन की शुरुआत की थी. उन्हें लगता है कि इससे वे हमें नीचा दिखा सकते हैं. लेकिन यह शर्म नहीं, गर्व की बात है. ये आप हैं, जो यूएसएआईडी, सोरोस, वैश्विक सहयोग को बुराई की तरह पेश कर रहे हैं और फिर अपनी नाकामी छुपाने के लिए कथित विदेशी हस्तक्षेप की आड़ लेने लगते हैं. जब आप रंगे हाथों पकड़े जाते हैं तो दूसरों पर आरोप लगाने लगते हैं.”
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कांग्रेस भी हमलावर
पवन खेड़ा ने लिखा है, ”हम गवर्नेंस और जियोपॉलिटिक्स में वैश्विक सहयोग की भूमिका को स्वीकार करते हैं. आप अपने आका के पास पूँछ हिलाते जाइए और पूछिए कि उनकी सरकार की योजनाओं में यूएसएआईडी का कितना फंड मिला था. उनसे पूछिए यूएसएआईडी ने कैशलेस इकॉनमी का क्यों समर्थन किया था और किसके दबाव में आपने नोटबंदी की थी.”
कांग्रेस के अन्य नेताओं ने एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें स्मृति इरानी जयशंकर के बेटे से बात करते हुए यूएसएआईडी में एम्बैस्डर के तौर पर अपना अनुभव बता रही हैं.
डीओजीई ने यूएसएआईडी के फंड कैंसल करने की जानकारी दी थी तो मालवीय से लेकर बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे तक ने इस फंड के उद्देश्य पर सवाल किया था. मालवीय ने रविवार को लिखा था, ”2.1 करोड़ डॉलर वोटर टर्नआउट के लिए? ज़ाहिर है कि यह भारत की चुनावी प्रक्रिया में विदेशी हस्तक्षेप है. इससे किसे फ़ायदा हो रहा है? ज़ाहिर है, सत्ताधारी पार्टी को नहीं.
मालवीय ने यह भी आरोप लगाया कि 2012 में एसवाई क़ुरैशी जब मुख्य चुनाव आयुक्त थे, तब द इंटरनेशनल फाउंडेशन फोर इलेक्टोरल सिस्टम के साथ एक एमओयू हुआ था.
मालवीय ने कहा था, ”यह संगठन जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी से जुड़ा है और इसे यूएसएआईडी से फंड मिलता रहा है. तब कांग्रेस के नेतृत्व वाला गठबंधन यूपीए सत्ता में था.”
अमित मालवीय के इस आरोप का जवाब एसवाई क़ुरैशी ने एक्स पर दिया है. एसवाई क़ुरैशी ने लिखा है, ”कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि 2012 में जब मैं मुख्य चुनाव आयुक्त था तो निर्वाचन आयोग ने भारत में मतदान बढ़ाने के लिए अमेरिकी एजेंसी के साथ एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए थे ताकि लाखों डॉलर का फंड मिल सके. लेकिन इन रिपोर्ट्स में रत्ती भर भी सच्चाई नहीं है. हाँ 2012 में आईएफ़ईएस के साथ एक एएमओयू हुआ था लेकिन कोई फंड नहीं लिया गया था. एमओयू में स्पष्ट था कि इसमें कोई वित्तीय और क़ानूनी बाध्यता नहीं रहेगी. इस एमओयू को फंड से जोड़ना पूरी तरह ग़लत है.”
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यूएसएआईडी बंद होने का असर भारत पर कितना?
बीजेपी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने पूरे विवाद पर दावा किया कि भारत में कई विरोध-प्रदर्शनों के पीछे विदेशी फंड रहा है. राजीव चंद्रशेखर ने लिखा है, ”यह बहुत ही हैरान करने वाला है कि यूएसएआईडी जैसा ऑर्गेनाइज़ेशन भारत में करोड़ों रुपए खर्च कर रहा है. अब इस बात की पुष्टि होती है कि पिछले कुछ सालों में भारत में जो विरोध-प्रदर्शन हुए, उसके पीछे विदेशी फंड था.”
वहीं लोकसभा में बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने आरोप लगाते हुए कहा था कि भारत विरोधी तत्व कांग्रेस के साथ जुड़े हैं और उन्हें यूएसएआईडी से फंड मिलता रहा है. दुबे ने कहा था, ”क्या जॉर्ज सोरोस संचालित संगठन ओपन सोसाइटी जो भारत को अस्थिर करना चाहता है, उसे यूएसएआईडी से 5000 करोड़ रुपए का फंड मिला था? क्या यूएसएआईडी और जॉर्ज सोरोस फाउंडेशन ने राजीव गांधी फाउंडेशन और राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट को पैसा दिया था या नहीं? मैं कांग्रेस से जवाब और जांच की मांग करता हूँ.”
भारत में पिछले कई सालों से यूएसएआईडी के फंड के आवंटन में कमी आई है. भारत सरकार कई मामलों में फंड की शर्तों को लेकर असहमत रही है. फॉरन असिस्टेंट वेबसाइट के अनुसार, पिछले एक दशक में यूएसएआईडी से भारत को क़रीब 1.5 अरब डॉलर का फंड मिला है, जो इसकी कुल वैश्विक मदद का महज 0.2 से 0.4 प्रतिशत के बीच है.
भारत और यूएसएआईडी के बीच संबंध की शुरुआत 1951 में हुई थी, जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने इंडिया इमर्जेंसी फूड ऐड एक्ट पर हस्ताक्षर किया था. इन दशकों में यूएसएआईडी की भूमिका खाद्य सुरक्षा के अलावा इन्फ्रास्ट्रक्चर समेत कई क्षेत्रों में बढ़ती गई.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित