कर्नाटक में प्रस्तावित हेट स्पीच और हेट क्राइम (रोकथाम) बिल, 2025 को लेकर राजनीतिक और सामाजिक हलकों में बहस तेज हो गई है। अब एक हिंदू संगठन ने इस बिल को लेकर राज्यपाल से सीधे हस्तक्षेप की मांग की है। दक्षिणपंथी संगठन हिंदू जनजागृति समिति ने कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत को ज्ञापन सौंपकर आग्रह किया है कि वे इस बिल को मंजूरी न दें। संगठन का कहना है कि यह कानून असंवैधानिक, अस्पष्ट और अभिव्यक्ति व धार्मिक स्वतंत्रता के लिए खतरा है।
हिंदू संगठन ने इन मुद्दों पर जताई चिंता
संगठन का आरोप है कि बिल में हेट स्पीच और हेट क्राइम की परिभाषाएं बहुत अस्पष्ट और व्यापक हैं, जिससे बिना किसी हिंसक मंशा के भी किसी बयान को अपराध बनाया जा सकता है। इससे प्रशासन को मनमानी कार्रवाई का मौका मिल सकता है। धार्मिक मामलों पर चिंता जताते हुए समिति ने कहा कि इस बिल में आरोपी को खुद साबित करना होगा कि उसका बयान जनहित या सच्चे धार्मिक उद्देश्य से था, जो मौजूदा आपराधिक कानूनों के खिलाफ है। समिति ने चेतावनी दी कि इस कानून के तहत वैदिक ग्रंथों का उल्लेख, धार्मिक प्रवचन, वैचारिक बहस या धार्मिक आलोचना जैसी गतिविधियां भी अपराध की श्रेणी में आ सकती हैं।
इसके अलावा, बिल में भाषण से जुड़े अपराधों को संज्ञेय और गैर-जमानती बनाए जाने पर भी आपत्ति जताई गई है। संगठन का कहना है कि इससे संतों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों की तुरंत गिरफ्तारी और उत्पीड़न हो सकता है। ज्ञापन में यह भी कहा गया कि बिल पुलिस और कार्यपालिका को बिना पर्याप्त न्यायिक निगरानी के बहुत अधिक अधिकार देता है, जिससे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन होता है।
समिति ने यह भी तर्क दिया कि हेट स्पीच से जुड़े कई प्रावधान पहले से ही केंद्र के कानूनों में मौजूद हैं। ऐसे में राज्य का यह कानून संविधान के अनुच्छेद 254 के तहत टकराव की स्थिति पैदा कर सकता है। संगठन ने राज्यपाल से आग्रह किया कि वे संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत इस बिल पर मंजूरी रोकें और इसे दोबारा विचार के लिए विधानसभा को लौटाएं, ताकि इसमें स्पष्ट परिभाषाएं, अधिकारों की सुरक्षा और न्यायिक निगरानी जोड़ी जा सके।
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केंद्रीय मंत्री शोभा ने भी जताई आशंका
इससे पहले केंद्रीय मंत्री शोभा करंदलाजे ने भी राज्यपाल गहलोत से कर्नाटक सरकार के हेट स्पीच एंड हेट क्राइम (प्रिवेंसन) बिल 2025 पर अपनी सहमति नहीं देने का अनुरोध किया था।उनका कहना था कि यह बिल अस्पष्ट है और इसके दुरुपयोग किए जाने की आशंका बहुत अधिक है।
अब जानिए बिल में क्या प्रावधान हैं?
सरकार ने बताया कि इस बिल के तहत किसी भी व्यक्ति या समूह द्वारा धर्म, जाति, भाषा, जन्मस्थान, लिंग या समुदाय के आधार पर नफरती भाषण देने वालों पर रोक लगाई जाएगी। नफरती भाषण में किसी भी प्रकार की भावनात्मक, मानसिक, शारीरिक, सामाजिक या आर्थिक हानि पहुंचाने की नीयत से उकसाना भी शामिल है। नफरती भाषण का प्रसारण, प्रकाशन और प्रचार करना भी अपराध माना जाएगा। अगर नफरती भाषण कोई जिम्मेदारी वाले पद पर बैठा व्यक्ति दे, तो उसके संगठन या संस्था के खिलाफ भी मामला दर्ज किया जा सकता है।
सरकार ने स्पष्ट किया कि यह बिल किसी खास राजनीतिक दल या समुदाय को निशाना नहीं बनाता है। बल्कि राज्य में सामाजिक सामंजस्य बनाए रखने और नफरत फैलने से रोकने के लिए है। यह कानून भविष्य में किसी भी सरकार के आने पर लागू होगा। सरकार ने नेताओं, संगठन प्रमुखों और हर व्यक्ति को मंचों और सोशल मीडिया पर बोलते समय सावधान रहने की चेतावनी दी है। इस विधेयक के तहत नफरती भाषण देने वालों को एक से सात साल तक जेल की सजा दी जाएगी। यदि वही अपराध दोबारा किया गया, तो उन्हें दो साल से 10 साल तक जेल और 50 हजार रुपये से एक लाख रुपये तक जुर्माना लगेगा। सरकार ने कहा कि ऐसे कृत्य गैर-जमानती अपराध माने जाएंगे।