दोनों पक्षों ने फैसले को चुनौती दी थी । पति पूरी तरह से गुजारा भत्ता रद्द करना चाहता था, जबकि पत्नी इसे बढ़ाकर 20000 रुपये करने की मांग कर रही थी । अदालत ने पति की याचिका को स्वीकार कर लिया और पत्नी की याचिका को खारिज कर दिया ।
पति के छोटे भाई से पत्नी का संबंध
पति के वकील ने अदालत में कहा कि पत्नी गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं है । क्योंकि उसका संबंध पति के छोटे भाई के साथ है । वकील ने बताया कि पारिवारिक अदालत ने 8 सितंबर 2023 को तलाक का फैसला सुनाते हुए इस बात को माना था । वकील ने कहा कि पारिवारिक अदालत ने इस महत्वपूर्ण सबूत को अनदेखा किया । साथ ही सीआरपीसी की धारा 125(4) को भी नजरअंदाज किया । यह धारा स्पष्ट रूप से उस पत्नी को गुजारा भत्ता देने से रोकती है जो व्यभिचार में जी रही है या बिना किसी उचित कारण के अपने वैवाहिक घर को छोड़ देती है ।
पत्नी के वकील का कहना
पत्नी के वकील ने व्यभिचार के दावे का विरोध किया । उन्होंने कहा कि कोई भी पुराना विवाहेतर संबंध ‘निरंतर कार्य’ नहीं था । वकील ने जोर देकर कहा कि “व्यभिचार में रहने” के लिए एक जारी अवैध संबंध की आवश्यकता होती है । उन्होंने दावा किया कि ऐसा नहीं था क्योंकि पत्नी उस समय अपने भाई और भाभी के साथ रह रही थी । उन्होंने तर्क दिया कि 4000 रुपये का गुजारा भत्ता पर्याप्त नहीं था । क्योंकि पत्नी की कोई स्वतंत्र आय नहीं है और पति के कई आय स्रोत हैं ।
पति के पक्ष में फैसला
हाई कोर्ट ने कहा कि तलाक का फैसला जो पत्नी के व्यभिचार के आधार पर दिया गया था सीआरपीसी की धारा 125(4) के तहत उसकी अयोग्यता का कानूनी प्रमाण है । हाई कोर्ट ने पति की पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार कर लिया और पारिवारिक अदालत के गुजारा भत्ता आदेश को रद्द कर दिया । पत्नी की गुजारा भत्ता बढ़ाने की याचिका खारिज कर दी गई । अदालत ने माना कि पत्नी का विवाहेतर संबंध साबित हो गया है । इसलिए वह गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं है । अदालत ने सीआरपीसी की धारा 125(4) के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए यह फैसला सुनाया । इस धारा के अनुसार, यदि कोई पत्नी व्यभिचार में जी रही है, तो वह गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं होगी ।