डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अगर कोई मरीज अस्थमा (दमा) या सीओपीडी (सांस की पुरानी बीमारी) के उपचार के लिए इन्हेलर (दमा पंप) इस्तेमाल करता है, तो उसे इसके उपयोग के तरीके को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। एम्स भोपाल ने एक अध्ययन में पाया है कि लगभग 70 प्रतिशत मरीज इन्हेलर गलत तरीके से इस्तेमाल कर रहे हैं।
इन्हेलर उपयोग की यह छोटी गलती बीमारी को बड़ी या अधिक गंभीर बना रही है। सीओपीडी यानी “क्रोनिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज” पर एम्स का यह अध्ययन पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के डॉ. अल्केश कुमार खुराना के नेतृत्व में हुआ है।
86 प्रतिशत मरीज नहीं लगा रहे स्पेसर
विशेषज्ञों ने पाया कि इन्हेलर के उपयोग में मरीज दो बड़ी गलतियां कर रहे थे, जिससे दवा फेफड़ों तक पहुंचने के बजाय गले में ही जमा हो रही थी।
पहला मीटर डोज इन्हेलर (एमडीआइ) यानी पंप वाला इन्हेलर इस्तेमाल करने वाले 86 प्रतिशत मरीज स्पेसर (एक प्लास्टिक का डब्बा जो पंप के आगे लगाया जाता है) नहीं लगा रहे थे। स्पेसर न लगाने से दवा तेजी से निकलती है और गले में ही अटक जाती है।
सही तरीके से इन्हेलर से सुधार दिखा
दूसरा ड्राइ पाउडर इन्हेलर (डीपीआइ) यानी पाउडर वाला इन्हेलर इस्तेमाल करने वाले 60 प्रतिशत मरीज गहरी और जोरदार सांस नहीं खींच रहे थे।
पाउडर वाली दवा को फेफड़ों के अंदर तक खींचने के लिए जोर से सांस लेना बहुत जरूरी होता है। हल्की सांस लेने से दवा मुंह या गले में ही रह जाती है।
तरीका बदलते ही दिखा सुधार
अध्ययन के दौरान दमा के 45 और सीओपीडी के 38 मरीजों पर चार हफ्तों तक यह अध्ययन किया गया।इस दौरान उनकी दवा में कोई बदलाव नहीं किया गया, बस उन्हें इन्हेलर उपयोग करने का सही तरीका सिखाया गया। इसके बाद बदलाव भी दिखा।
चार हफ्तों में दमा के मरीजों के फेफड़ों की कार्यक्षमता (एफईवी-वन) में सुधार हुआ। उनकी परेशानी घटी। (एसीटी स्कोर) 18.0 से बढ़कर 20.75 रहा। सीओपीडी के मरीजों में भी बीमारी के लक्षण कम हुए (सीएटी स्कोर 21.86 से घटकर 19.83), और वे पहले से बेहतर महसूस करने लगे।