संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। नदियां किसी भी शहर की जीवन रेखा होती हैं, लेकिन इसे देश की राजधानी का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि यहां की जीवन रेखा खुद ही डायलिसिस पर है। ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व वाली यमुना नदी खुद अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही है।
इसके जल का आचमन करना तो दूर की बात, दिल्ली में यमुना कहीं स्नान करने लायक भी नहीं है। हालांकि राजनीतिक दलों के एजेंडे में यमुना की सफाई प्राथमिकता पर होती है, लेकिन हर बार कागजों- भाषणों तक ही सिमट जाती है। आखिर कैसे मिले इस पवित्र नदी को पुनर्जीवन?
इस सवाल का जवाब ढूंढने में लगे हुए हैं भारतीय नदी परिषद के अध्यक्ष रमन कांत। गंगा-यमुना दोआब में मेरठ जनपद के पूठी गांव में जन्मे रमन कांत वर्ष 2001 से ही नदी पुनर्जीवन के कार्य में लगे हैं। उन्होंने हिंडन, काली, नीम और करवन जैसी दर्जनों नदियों के तकनीकी अध्ययन किए हैं तथा उनके उद्गम खोजे हैं।
नीम नदी उद्गम पुनर्जीवन के कार्य को प्रधानमंत्री द्वारा अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में भी शामिल किया गया था। रमन लगातर देश की छोटी नदियों को जानने-समझने, विलुप्त नदियों को खोजने तथा नदियों को पुनर्जीवित करने के कार्य में लगे हैं।
रमन ने देश में नदियों के पुनर्जीवन के कार्य को सामूहिक रूप से आगे बढ़ाने के लिए ‘भारतीय नदी परिषद’ का गठन किया। भारतीय नदी परिषद के माध्यम से ‘उत्तर प्रदेश का नदी नीति प्रारूप’ विकसित कर उत्तर प्रदेश सरकार को सौंपा है। नदी पुनर्जीवन कार्यों के लिए इन्हें भारत सरकार का राष्ट्रीय जल पुरस्कार तथा अमेरिका का प्रतिष्ठित ‘टैरी बेकर’ पुरस्कार भी प्राप्त हो चुका है। वह ‘रिवरमैन आफ इंडिया’ के नाम से भी ख्यात हैं।
अगर बरसात के कुछ दिनों को छोड़ दें तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि यमुना इस समय गंदे नाले में ही तब्दील हो चुकी है। नदी के पानी में कोई जीवन नहीं बचा है। वर्तमान में यमुना केवल घरेलू बहिस्राव लेकर बहने वाली एक धारा बन चुकी है। यह कहना गलत नहीं होगा कि यमुना नदी इस समय बहुत कठिन दौर से गुजर रही है। इस सब के पीछे सीधे तौर पर हम सभी कसूरवार हैं। हम सब इसलिए क्योंकि वो लोग हम में से ही हैं जो यमुना के प्रदूषण का कारण हैं और वो भी हम ही हैं, जो कि यह सब होते देख रहे हैं।
यमुना को स्वच्छ बनाने के लिए केंद्र और दिल्ली सरकार बार-बार प्रतिबद्धता जताती रही हैं, लेकिन स्थिति नहीं बदलती, बाधा क्या है?किसी बात के समाधान के विषय में कह देना और कही हुई बात को अमल करना दोनों अलग विषय हैं। हमें यह देखना चाहिए कि जो प्रतिबद्धता जताई गई है उसमें गंभीरता कितनी है। क्योंकि अगर हम वास्तव में किसी समस्या को लेकर गंभीर हैं तो कोई कारण नहीं कि उस समस्या का समाधान न हो सके। राजनीति में कुछ बातें कहने के लिए कह दी जाती हैं, लेकिन उन विषयों को प्राथमिकता पर नहीं रखा जाता है। जिस दिन यमुना नदी के विषय को गंभीरता से लेकर प्राथमिकता पर लिया जाएगा उस दिन से समाधान की दिशा में सकारात्मक कदम बढ़ेगा। बाक़ी तो बातें हैं बातों का क्या।
यमुना नदी की सफाई के लिए क्या कार्ययोजना होनी चाहिए?पानी की कमी, प्रदूषण और अतिक्रमण ये तीन प्रमुख यमुना नदी की समस्याएं हैं। तीनों समस्याओं के पीछे अलग-अलग कारण हैं। इन कारकों को समझ कर उनके लिए शीघ्र एवं दूरगामी दोनों प्रकार की योजनाओं को बनाकर उनको अमल में लाना होगा। इसमें विषय विशेषज्ञों व समाज की भागीदारी आवश्यक है। सरकारी तंत्र में मन के हारे हुए, निराश व नकारात्मक लोगों को इस काम से दूर रखना होगा।
यमुना नदी सबसे अधिक प्रदूषित कहां और क्यों होती हैं? इसमें दिल्ली की कितनी भागीदारी है?यमुना नदी में पानी की कमी लगातार गंभीर चिंता पैदा कर रही है। यमुना जब दिल्ली की सीमा में प्रवेश करती है तो इसमें पानी की मात्रा बहुत कम हो जाती है। यहां से आगे दिल्ली की लगभग दो करोड़ आबादी का मलमूत्र इसमें मिलता है जो कि यमुना नदी को एक गंदे नाले में बदल देता है। दिल्ली के अंदर यमुना में जो प्रदूषण दिखता है वह सब दिल्ली वालों का है और दिल्ली वाले ही दिल्ली में यमुना को प्रदूषित करने के लिए कसूरवार भी हैं। ऐसा नहीं है कि दुनिया के और देशों में इतनी बड़ी मात्रा में घरेलू कचरा नहीं निकलता है, लेकिन वे उसको बेहतर तरीके से शोधित करके अपनी नदियों में डालते हैं। ऐसी व्यवस्थाएं यहां भी हैं, लेकिन उनका संचालन व्यवस्थित नहीं है। यही वजह है कि यमुना दिन ब दिन प्रदूषित होती जा रही है।
भारतीय नदी परिषद के अध्यक्ष रमन कांत।यमुना को साफ करने से ज्यादा जरूरी उसमें गंदगी गिरने से रोकना है। आप इसे किस तरह से देखते हैं?हम सभी ने देखा है कि कोविड के दौरान देश की नदियों का अलग ही स्वरूप निखर कर आया। तमाम नदियों की निर्मलता लौटने लगी। यह सब देखकर पूरा देश हतप्रभ था। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि नदियों के पास मानव का दखल कम हुआ। बस यही सूत्र है, हम अगर अपनी यमुना की बेहतरी के लिए कुछ नहीं कर सकते हैं तो कम से कम उसको बिगाड़ने से बचें। हमें यमुना के जीवन में अपना कम करना होगा। नदी के संभरण क्षेत्र में जीतने भी प्रतिष्ठान हैं उनको अपना आंकलन करना चाहिए कि उनका तरल व ठोस कचरा कहां जाता है।
यमुना नदी स्वच्छ होने से दिल्ली में वायु प्रदूषण को कम करने में कितनी मदद मिलेगी?इसका सर्वाधिक उपयुक्त जवाब यमुना किनारे बसे लोगों से पूछना चाहिए। यमुना नदी किनारे के घरों में लगे बिजली से चलने वाले उपकरण अधिक नहीं चल पाते हैं। यमुना से उठने वाली बदबू लोगों की सांसों को दूषित कर रही है जिस कारण विभिन्न प्रकार की बीमारियां भी होती हैं। यमुना नदी से उठने वाली बदबू से यमुना ही नहीं, उसके आस-पास भी प्रदूषित माहौल बन जाता है।
यमुना की यह दुर्दशा क्या दिल्ली के पर्यावरण को भी प्रभावित कर रही है?किसी भी नदी की अपनी प्रकृति होती है। नदी के इस व्यवहार को समझना होगा। कोई भी नदी केवल एक धारा नहीं होती है। नदी का अपना एक आभामंडल भी होता है जिसको संभरण क्षेत्र या बेसिन कहते हैं। अगर नदी के संभरण क्षेत्र को ही कब्जा लिया जाएगा तो नदी बहुत दिन तक जीवित नहीं बनी रहती है। नदी बरसात में अपने संभरण क्षेत्र व भूजल को समृद्ध करती है और बरसात के बाद वही भूजल व उसका संभरण क्षेत्र नदी की धारा को समृद्ध करता है। ऐसे में जब नदी के संभरण क्षेत्र को कब्जा करके उसको नहर बन दिया जाएगा तो नदी की प्रकृति ही नष्ट जो जाएगी। दिल्ली में यमुना नदी के साथ यही हो रहा है। नदी की स्मृति बहुत तेज होती है, जब विगत वर्ष बरसात के दौरान यमुना का पानी लाल किले से मिलकर बह रहा था तो यमुना ने बता दिया कि मेरी हद यहां तक है।यमुना की इस दुर्दशा से दिल्लीवासियों का जनजीवन कैसे प्रभावित हो रहा है?जब दिल्ली बसी थी तो यमुना नदी उसकी शान थी। वह यमुना नदी ही थी जोकि यहां के वसियों की पानी की सभी जरूरतें पूरा करती थी। कभी इस यमुना किनारे ही समृद्ध पर्यटन था। मजनूं का टीला हो या नदी किनारे के अखाड़े सब यमुना से ही सौंदर्य पाते थे। वर्तमान में यमुना नदी के हालात देखकर कोई भी दिल्लीवासी नहीं चाहता है कि वो इसके किनारे भ्रमण करे। नदी पूरी जैवविविधता होती है। दिल्ली के अंदर यमुना में कोई जीवन नहीं है। जिस नदी के किनारे सुकून व आनंद मिलता था, आज उस नदी किनारे कोई खड़ा होने को तैयार नहीं है।इस नदी की सफाई पर शायद हजारों करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन हाल बद से बदतर ही हुए हैं। क्यों?जब हम किसी भी काम को केवल तुरंत प्रभाव के लिए करेंगे तो जाहिर है कि उसका असर भी कुछ समय के लिया ही होगा। इसका एक आंकलन तो होना चाहिए कि यमुना नदी सुधार हेतु जिस-जिस कार्य में पैसा खर्च हुआ उन कार्यों को जिनके कहने पर किया गया था? कहीं ऐसा तो नहीं कि वे लोग अभी भी ग़लत सलाह सरकार को दे रहे हों। दूसरा पहलू यह है कि यमुना नदी सुधार के कार्य को अगर स्थायी बनाना है तो उसमें जहां समाज की भूमिका सुनिश्चित करनी होगी वहीं समाधानों के लिए केवल वैज्ञानिक तरीके पर भी निर्भरता घटानी होगी। जब सीवरेज शोधन के लिए बनाए जाने वाले शोधन संयंत्र पूरी तरह से कामयाब नहीं हैं और उन पर खर्च भी अधिक हो रहा है तो ऐसे में इस कार्य को विकेंद्रित तरीके से करने तथा शोधन के इन सी टू वेटलैंड जैसे प्राकृतिक विकल्प तलाशने होंगे।इन सी टू वेटलैंड क्या है?जी हां, यह प्रयोग सफल रहा है। इन सी टू वेटलैंड नदी व नालों के अंदर बनाया जाता है। यह पानी को साफ करने का पूरी तरह से प्राकृतिक तरीका है। इस पद्धति में नदी के अंदर 500 मीटर या एक किलोमीटर का स्ट्रक्चर बनाया जाता है। इसमें पांच से छह ब्लाक बनाए जाते हैं। इनमें से प्रत्येक का काम अलग-अलग होता है। पहले ठोस कचरे को रोकना। फिर गाद को स्टेनलेस करना और प्राकृतिक तरीके से पानी को कुछ खास पौधों की जड़ों से बहाना। अंत में पानी साफ होकर बाहर निकलता है।एक इन सी टू वेटलैंड को बनाने की लागत करीब चार से पांच करोड़ रुपये है। नमामि गंगे द्वारा हमारी पहल पर गंगा की सहायक पूर्वी काली नदी में इसका परीक्षण भी किया जा रहा है। नामामि गंगे द्वारा यह काम उत्तर प्रदेश प्रोजेक्ट कारपोरेशन लिमिटेड को सौंपा गया है। इसमें दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध वनस्पतिशास्त्री डा सी आर बाबू की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह भविष्य की तकनीक है।क्या यमुना की सफाई में तकनीकी और प्रशासनिक अड़चनें भी हैं?जैसा मैंने पहले भी कहा कि जब कोई तकनीक किसी भी कारण से कामयाब नहीं हो रही है तो ऐसे में या तो उन कारणों को खोजकर उनका समाधान किया जाए या फिर दूसरे विकल्पों की तरफ़ मुडना चाहिए। जहां तक प्रशासनिक अड़चनों की बात है तो हमें किसी एक विभाग को संपूर्ण जिम्मेदारी देकर कार्य को आगे बढ़ाना चाहिए। इस कार्य में कई विभागों की संलिप्तता से अवश्य कार्य पर असर होता है। एक सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि जब से प्रदूषण नियंत्रण विभाग बना है तब से नदियों में प्रदूषण घटने के बजाय बढ़ा है। प्रदूषण नियंत्रण विभाग पंगु क्यों है, इसके लिए या तो उसको अधिक शक्तियां दी जाएं या फिर उसका विकल्प तलाशा जाना चाहिए।आपके हिसाब से यमुना को इसके मूल रूप में वापस लाने का कारगर और व्यवहारिक उपाय क्या है?सबसे पहले नदी से जुड़े सभी हितधारकों को प्रभावशाली व्यक्ति साथ बैठाया जाए तथा सभी से विफलता के कारणों पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जा। इसके बाद एक-एक समस्या के वैज्ञानिक व प्राकृतिक तरीकों के स्थायित्व को ध्यान में रखते हुए विचार कर अंतिम निर्णय लिया जाना चाहिए। जब योजनाओं को जमीन पर उतारना हो तब समाज की भी भूमिका उसमें तय होनी चाहिए। यमुना नदी के सुधार का कार्य कठिन है, लेकिन नामुमकिन कतई नहीं। ऐसे सामूहिक प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए ही हमने भारतीय नदी परिषद का गठन किया है। इसके माध्यम से हम नदी पुनर्जीवन के संकल्प आगे बढ़ा रहे हैं। हमारा लक्ष्य भारत सरकार के जल विजन 2048 में अपनी भूमिका तय करते हुए भारत की नदियों को निर्मल व अविरल बनाना है।