वामपंथी झुकाव वाले अनुरा कुमारा दिसानायके श्रीलंका के राष्ट्रपति चुने गए हैं. उन्होंने ये जीत साल 2022 में अर्थव्यवस्था के धराशाई होने के बाद हुए चुनावों में हासिल की है.
दिसानायके ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी सजित प्रेमदासा को दूसरे राउंड की गिनती के बाद हराकर ये जीत दर्ज की है. पहले राउंड में किसी भी उम्मीदवार को जीत के लिए ज़रूरी 50% से अधिक नहीं मिले थे.
इसके बाद चुनाव अधिकारियों ने मतदान के दौरान वोटरों की दूसरी प्राथमिकता के मत गिने. इसके बाद दिसानायके को विजेता घोषित किया गया. मौजूदा राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे तीसरे स्थान पर रहे हैं.
साल 2019 में हुए चुनावों में महज़ 3% मत पाने वाले दिसानायके के लिए ये एक अप्रत्याशित जीत है. इन चुनावों में दिसानायके नेशनल पीपल्स पावर (एनपीपी) गठबंधन के उम्मीदवार थे.
हाल के वर्षों में उनके भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अभियान और ग़रीबों की हिमायत करने वाली नीतियों ने उन्हें काफ़ी लोकप्रिय बना दिया था.
उनकी बढ़ती लोकप्रियता ऐसे दौर में आई जब श्रीलंका अपने सबसे भयंकर आर्थिक संकट का सामना कर रहा था. आर्थिक मंदी का वो दौर अब भी जारी है.
वो एक ऐसे देश की सत्ता संभालेंगे जो अब भी संकट के साये से निकलने का प्रयास कर रही है. लोग भी परिवर्तन के लिए बेताब दिख रहे हैं.
तो राष्ट्रपति पद के लिए चुने गए अनुरा कुमारा दिसानायके हैं कौन?
छात्र राजनीति से शुरूआत और ‘हिंसा के लिए माफ़ी’
दिसानायके का जन्म 24 नवंबर 1968 को गालेवेला में हुआ था. ये सेंट्रल श्रीलंका का एक बहु-सांस्कृतिक और बहु-धार्मिक शहर है.
मिडिल क्लास में पले-बढ़े दिसानायके की सरकारी स्कूल में पढ़ाई लिखाई हुई और उनके पास फ़िज़िक्स की डिग्री है. साल 1987 में जब इंडो-श्रीलंका समझौता हुआ तब उन्होंने छात्र राजनीति में क़दम रखा. ये वही समय था जब श्रीलंका का सबसे बड़ा ख़ूनी दौर शुरू हुआ था.
1987 से 1989 के दौरान मार्क्सवादी राजनीतिक पार्टी जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) ने श्रीलंका सरकार के ख़िलाफ़ हथियार उठा लिए. इसी पार्टी के साथ दिसानायके बेहद क़रीबी से जुड़े रहे थे.
ग्रामीण क्षेत्र के निम्न और मध्यम वर्गीय युवाओं के बीच असंतोष और विद्रोही अभियान की वजह से एक संघर्ष का अभियान शुरू हुआ, जिसकी वजह से राजनीतिक विरोधियों के बीच छापेमारी, हत्याओं का दौर चला. इसमें हज़ारों लोगों की जानें गईं.
साल 1997 में जेवीपी की सेंट्रल कमिटी के लिए दिसानायके चुने गए और 2008 में वो इसके नेता बने. इसके बाद उन्होंने इस संगठन की ओर से किए गए हिंसा के लिए माफ़ी मांगी थी.
साल 2014 में बीबीसी को दिए गए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, “सशस्त्र विद्रोह के दौरान बहुत कुछ हुआ था जो कि नहीं होना चाहिए था.”
“हम अभी भी सदमे में हैं और धक्का इस बात का लगा है कि ये सबकुछ हमारे हाथों से हुआ जो कि नहीं होना चाहिए था. हम हमेशा इस बात से दुखी और स्तब्ध रहते हैं.”
जेवीपी के केवल तीन सांसद संसद में हैं और ये एनपीपी गठबंधन का हिस्सा है जिसके दिसानायके प्रमुख हैं.
एक ‘अलग’ नेता
राष्ट्रपति चुनावों के दौरान प्रचार करते समय दिसानायके ने श्रीलंका के इतिहास के एक दूसरी ख़ूनी हिंसा का ज़िक्र किया. उन्होंने साल 2019 में ईस्टर के दिन हुए धमाकों की बात की थी.
21 अप्रैल 2019 को राजधानी कोलंबो के चर्चों और अंतरराष्ट्रीय होटलों में हुए सीरियल बम धमाकों में कम से कम 290 लोगों की मौत हुई थी और सैकड़ों लोग घायल हुए थे. ये श्रीलंका के इतिहास का सबसे भयानक हमला था.
पांच साल बाद भी लंबी जांचों के बाद इन सवालों के जवाब नहीं मिल पाए हैं कि ये सिलसिलेवार ब्लास्ट कैसे हुए और कहां सुरक्षा में नाकामी हुई
कई लोगों ने गोटाबाया राजपक्षे की पिछली सरकार पर आरोप लगाए हैं कि उसने जांच में बाधा डाली थी.
बीबीसी की सिंहला सेवा को दिए हालिया इंटरव्यू में दिसानायके ने वादा किया है कि वो राष्ट्रपति बनने के बाद इस मामले की जांच कराएंगे. उनका कहना था कि एजेंसियां ऐसा करने से बच रही थीं क्योंकि उन्हें ‘अपनी ज़िम्मेदारी’ की पोल खुलने का डर है.
उन्होंने कहा कि यह उन अधूरे वादों में से एक है जो श्रीलंका का राजनीतिक अभिजात वर्ग करता आ रहा है.
उन्होंने कहा, “ये सिर्फ़ एक जांच नहीं है. वो राजनेता जो वादा करते थे कि भ्रष्टाचार रोकेंगे वो भ्रष्टाचार में शामिल रहे, जो श्रीलंका को क़र्ज़ मुक्त करने का वादा करते थे उन्होंने क़र्ज़ को और बढ़ा दिया, जो क़ानून को मज़बूत बनाने का वादा करते थे उन्होंने ही क़ानून तोड़ा.”
“सिर्फ़ इसी वजह से देश के लोग एक अलग राजनीति चाहते हैं. हम ही उनमें से एक हैं जो ये दे सकते हैं.”
एक उम्मीदवार का बदलाव का वादा
शनिवार को हुए चुनाव में दिसानायके को एक मज़बूत उम्मीदवार के तौर पर देखा जा रहा था. राष्ट्रव्यापी रूप से बढ़ रहे असंतोष के ख़िलाफ़ उन्होंने ख़ुद को एक बदलाव देने वाले उम्मीदवार के तौर पर पेश किया.
आर्थिक संकट के ख़िलाफ़ साल 2022 में हुए जन आंदोलन के बाद पूर्व राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को देश छोड़कर भागना पड़ा.
सालों तक कम टैक्स, कमज़ोर निर्यात, बड़ी नीतिगत ख़ामियों और आख़िर में कोविड-19 महामारी की वजह से देश का विदेशी मुद्रा भंडार ख़त्म हो गया. देश पर क़र्ज़ 83 अरब डॉलर से भी अधिक हो गया और महंगाई 70 फ़ीसदी तक बढ़ गई.
राजपक्षे और उनकी सरकार को इस संकट के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाता है. राष्ट्रपति विक्रमसिंघे ने आर्थिक सुधार लागू किए जिसके बाद महंगाई कम हुई और श्रीलंका रुपया मज़बूत हुआ. हालांकि लोग फिर भी वैसा ही महसूस कर रहे थे.
साल 2022 के आर्थिक संकट के साथ-साथ भ्रष्टाचार और क़ानून की अवहेलना जैसी परिस्थितियों के मद्देनज़र एक अलग तरह के राजनीतिक नेतृत्व की मांग उठी. दिसानायके ने उस मांग का लाभ उठाया.
उन्होंने जो यथास्थिति बन चुकी है उसको तोड़ने वाले नेता के तौर पर ख़ुद को पेश किया है क्योंकि आलोचक कहते हैं कि देश में भ्रष्टाचार और राजनीतिक अभिजात वर्ग में भाई-भतीजावाद काफ़ी बढ़ा हुआ है.
दिसानायके लगातार कहते रहे हैं कि सत्ता में आने के बाद उनकी योजना संसद भंग करने की है ताकि उनकी नीतियों को बनाने के लिए एक जनादेश मिले. चुनाव से पहले बीबीसी सिंहला को दिए इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि वो चुने जाने के बाद कुछ दिनों के अंदर ही ये करेंगे.
उन्होंने कहा था, “उस संसद के साथ चलने का कोई तुक नहीं है जो जनता के हितों के रास्ते पर नहीं है.”
ग़रीबों की वकालत
दिसानायके ने वादा किया है कि वो भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ सख़्त क़दम उठाएंगे, कल्याणकारी योजनाएं शुरू करेंगे और करों में कटौती करेंगे.
मौजूदा श्रीलंका सरकार ने ख़र्चों में कटौती और आमदनी बढ़ाने के लिए टैक्स में वृद्धि और कल्याणकारी योजनाओं में कटौती की थी. सरकार देश को आर्थिक संकट से निकालना चाहती थी लेकिन इन क़दमों के कारण और लोग मुसीबत में फंसते गए.
दिसानायके के वादों ने उनके प्रति समर्थन को और बढ़ाया है. चुनाव से पहले कई विश्लेषक कह रहे थे कि लोगों के मतदान को आर्थिक चिंताएं सबसे अधिक प्रभावित करेंगी.
ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउडेंशन में एसोसिएट फ़ैलो सोम्या भौमिक कहते हैं, “देश की आसमान छूती महंगाई, रोज़मर्रा की ज़रूरतों की बढ़ती क़ीमतें और ग़रीबी के कारण मतदाता अपना जीवन बेहतर करने के लिए इन सब मुसीबतों का हल चाहते थे.”
“श्रीलंका आर्थिक संकट से उभरने की कोशिश कर रहा है. ये चुनाव श्रीलंका की आर्थिक रिकवरी और देश-विदेश में उसके गवर्नेंस पर भरोसा कायम करने की दिशा में एक अहम लम्हा है.”
दिसानायके का करों को कम करने और कल्याणकारी योजनाएं शुरू करने का वादा वोटरों को ख़ूब भाया.
लेकिन कुछ निवेशक इस बात से चिंतित हैं कि दिसानायके आर्थिक नीतियां श्रीलंका को आर्थिक रिकवरी के रास्ते से भटका सकती हैं.
लेकिन अपने चुनाव अभियान के दौरान दिसानायके ये कहते रहे हैं कि श्रीलंका के क़र्ज़ की अदायगी के लिए प्रतिबद्ध हैं.
वह ये भी कहते रहे हैं कि देश के आर्थिक मोर्चे पर कोई भी परिवर्तन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) की सलाह के बिना नहीं किया जाएगा. आर्थिक मंदी झेल रहे श्रीलंका को आईएमएफ़ ने ही क़र्ज़ दिया हुआ है.
कई विश्लेषक मानते हैं कि नए राष्ट्रपति का मुख्य काम श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना होगा.
अतुलसिरी समाराकून ओपन यूनिवर्सिटी ऑफ़ श्रीलंका में राजनीति शास्त्र पढ़ाते हैं.
उन्होंने बीबीसी को बताया, “उनके सामने सबसे गंभीर चुनौती अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना है. इसमें सरकार के खर्चों में कमी और राजस्व में बढ़ोतरी करना शामिल होगा. और भविष्य की किसी भी सरकार को आईएमएफ़ के साथ मिलकर काम करना होगा.”
ज़बरदस्त जीत
श्रीलंका के अधिकारियों के मुताबिक़ शनिवार को देश के क़रीब 17 लाख वोटरों ने 76% मतदान किया.
रविवार दोपहर तक उन्हें दो अन्य प्रत्याशियों, रानिल विक्रमसिंघे और साजित प्रेमदासा के समर्थकों के बधाई संदेश आने लगे थे.
विदेश मंत्री अली साबरी ने एक्स पर लिखा कि शुरुआती नतीजों से लगता है कि दिसानायके जीत रहे हैं.
साबरी ने लिखा, “मैंने राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के लिए जमकर प्रचार किया पर श्रीलंका के लोगों ने अपना फ़ैसला सुना दिया है और मैं अनुरा कुमारा दिसानायके को मिले जनमत का पूरी तरह से सम्मान करता हूँ”
प्रेमदासा के समर्थक और सांसद हर्षा डि सिल्वा ने दिसानायके को फ़ोन करके बधाई दी.
उन्होंने एक्स पर लिखा, “सजित प्रेमदासा हमने आपके लिए मेहनत से प्रचार किया लेकिन ये काम नहीं आया. अब ये साफ़ है कि अनुरा दिसानायके श्रीलंका के अगले राष्ट्रपति होंगे.”
डि सिल्वा राजधानी कोलंबो से सांसद हैं.
प्रेमदासा के एक अन्य समर्थक और तमिल नेशनल अलायंस के प्रवक्ता एमए सुमंततिरन ने कहा कि दिसानायके ने धार्मिक और नस्लीय मुद्दे उठाए बिना एक बढ़िया जीत हासिल की है.
बीबीसी सिंहला की अतिरिक्त रिपोर्टिंग के साथ
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित