आम आदमी पार्टी की अतिशी ने शनिवार को दिल्ली की सबसे युवा महिला मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली है. सुषमा स्वराज और शीला दीक्षित के बाद वो दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री हैं.
उनके साथ गोपाल राय, कैलाश गहलोत, सौरभ भारद्वाज, इमरान हुसैन और मुकेश अहलावत ने भी मंत्री पद की शपथ ली.
दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज और ब्रिटेन की ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई पूरी करने वाली 43 साल की आतिशी दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री बनी हैं.
आतिशी 2013 में आम आदमी पार्टी में शामिल हुई थीं. अरविंद केजरीवाल और पंजाब के सीएम भगवंत सिंह मान के बाद वो पार्टी की तीसरी मुख्यमंत्री हैं.
दिल्ली में बतौर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के 11 साल के कार्यकाल के बाद अब आतिशी ने कमान संभाली है.
ऐसे में ये सवाल उठ रहा है कि क्या आतिशी, अरविंद केजरीवाल की मौजूदगी में अपने लिए अलग जगह बना पाएंगी और संकट का सामना कर रही आम आदमी पार्टी में नई जान डाल पाएंगी.
पार्टी में अहम ज़िम्मेदारियां निभा चुकी हैं आतिशी
दिसंबर 2013 में जब अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने थे तब वो 45 साल के थे और राजनीति में नए थे. आतिशी भले ही उनसे युवा हैं, लेकिन सीएम पद तक पहुंचने से पहले उन्होंने राजनीति में लंबा अनुभव हासिल किया है.
एक कार्यकर्ता के रूप में पार्टी में शामिल हुई आतिशी ने लंबे समय तक पूर्व उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के साथ मिलकर काम किया. उन्होंने दिल्ली की शिक्षा नीति के अलावा पार्टी का मेनिफ़ेस्टो निर्धारित करने में भी अहम भूमिका निभाई.
दो साल पहले जब कथित शराब घोटाले में आम आदमी पार्टी घिरी और एक के बाद एक पार्टी नेता जेल गए, तब अरविंद केजरीवाल ने सरकार चलाने के लिए आतिशी पर ही भरोसा किया.
मनीष सिसोदिया की ग़ैर-मौजूदगी में उन्होंने शिक्षा मंत्रालय संभाला. इसके अलावा उनके पास चौदह और मंत्रालय और विभाग थे.
आतिशी अब तक विवादों से दूर रही हैं और उनकी छवि एक साफ़ नेता की है. उन पर कोई सीधा आरोप भी नहीं हैं.
हालांकि, आतिशी भले ही मुख्यमंत्री बन गई हैं लेकिन वो अरविंद केजरीवाल की परछाईं में ही काम करेंगी.
मुख्यमंत्री बनने के बाद आतिशी ने अपने पहले बयान में पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल की ईमानदारी के कसीदे पढ़े.
उन्होंने कहा, “अरविंद केजरीवाल ने देश की राजनीति में ईमानदारी और नैतिकता की मिसाल कायम करते हुए अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया. उन्होंने कहा कि सिर्फ अदालत का फ़ैसला काफ़ी नहीं है, मैं जनता की अदालत में जाऊंगा और जब तक जनता मेरी ईमानदारी पर मुहर नहीं लगाएगी, मैं पद पर वापस नहीं लौटूंगा.”
मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने पहले संबोधन में आतिशी ने कहा, “इस देश के इतिहास में, बल्कि इस दुनिया की राजनीति के इतिहास में ईमानदारी और नैतिकता की जो मिसाल अरविंद केजरीवाल ने पेश की है, वो शायद ही किसी और ने पेश की हो.”
आम आदमी पार्टी ने अक्तूबर-नवंबर में चुनाव कराने की मांग की है लेकिन अपने पहले बयान में आतिशी ने संकेत दिए कि उनकी सरकार फ़रवरी तक का अपना कार्यकाल पूरा करेगी.
आतिशी ने कहा, “अरविंद केजरीवाल को फिर से फरवरी में होने वाले चुनाव में मुख्यमंत्री बनाना है.”
आतिशी और पार्टी के बाक़ी नेताओं के बयानों से ये बिलकुल स्पष्ट है कि भले ही सीएम के पद पर आतिशी बैठें, दिल्ली में सरकार अरविंद केजरीवाल के ही इशारों पर चलेगी.
आतिशी ने दिल्ली की जनता को आम आदमी पार्टी सरकार के काम भी याद दिलाये और ये डर भी दिखाया कि अगर फिर से उनकी पार्टी की सरकार नहीं आई तो लोगों को मिलने वाली सुविधाएं बंद हो सकती हैं.
आतिशी ने कहा, “जो फ्री बिजली आज दिल्लीवालों को मिल रही है, बीजेपी उसे ख़त्म कर देगी. जो सरकारी स्कूल अरविंद केजरीवाल ने सुधारे हैं, वो फिर से बदहाल हो जाएंगे, महिलाओं की फ्री बस यात्रा बंद हो जाएगी, अस्पतालों में फ्री इलाज बंद हो जाएगा.”
अगर आतिशी फ़रवरी तक दिल्ली सरकार चलाती हैं तो उनके पास क़रीब पांच महीने का कार्यकाल होगा. यानी उनके पास काम करने के लिए बहुत लंबा वक़्त नहीं हैं.
पार्टी की छवि पर कैसे पड़ेगा असर
एक सवाल ये भी है कि आतिशी का मुख्यमंत्री बनना आम आदमी पार्टी को किस तरह से प्रभावित कर सकता है.
एक महिला चेहरे के रूप में आतिशी पार्टी में नई जान डाल सकती हैं. आतिशी को मुख्यमंत्री बनाने को अरविंद केजरीवाल के एक रणनीतिक क़दम के रूप में भी देखा जा रहा है.
विश्लेषकों का मानना है कि आतिशी को आगे लाने का एक मक़सद पार्टी की छवि को सुधारना भी हो सकता है. आम आदमी पार्टी इस समय कथित शराब नीति घोटाले में फंसी हैं.
भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आंदोलन से राजनीति में आए अरविंद केजरीवाल और पार्टी के कई और संस्थापक नेता कथित भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जा चुके हैं. ऐसे में पार्टी के वो मूल सिद्धांत या आधार स्तंभ ही सवालों में घिर गए हैं जिन पर पार्टी टिकी है.
विश्लेषक मानते हैं कि आतिशी को लाने का मक़सद पार्टी की छवि को फिर से सुधारना भी हो सकता है.
आतिशी अभी तक बेदाग़ हैं. उनकी छवि एक पढ़ी लिखी नेता की है.
वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता कहते हैं, “आतिशी की साफ़ और बेदाग़ छवि से पार्टी उस नकारात्मक प्रचार का जवाब देने की कोशिश कर रही है जिसमें हाल के सालों में पार्टी घिर गई है.”
विश्लेषक ये भी मान रहे हैं कि आतिशी को महिला होने की वजह से भी मुख्यमंत्री बनाया गया है और वो महिलाओं को पार्टी की तरफ़ खींचने में कारगर साबित हो सकती हैं.
शरद गुप्ता कहते हैं, “आतिशी अपनी क्षमता को साबित कर चुकी हैं, दिल्ली में शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में जो काम हुआ है उसका ज़मीनी काम आतिशी ने ही किया था. एक महिला होने के नाते वो आधी आबादी को पार्टी की तरफ़ आकर्षित कर सकती हैं.”
आतिशी दिल्ली में ही पली-बढ़ी हैं जबकि पार्टी के कई बड़े नेता दिल्ली के बाहर पैदा हुए और फिर उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी को अपनी कर्मभूमि बनाया.
शरद गुप्ता कहते हैं, “आतिशी का बचपन दिल्ली में ही बीता है, उनके परिजन यहीं शिक्षण कार्य करते थे, वो बाक़ी नेताओं के मुक़ाबले दिल्ली को और बेहतर समझती हैं.”
क्या अगली पंक्ति के नेताओं पर ज़ोर दे रही है पार्टी?
हालांकि, ये भी सच है कि मुख्यमंत्री के तौर पर आतिशी के पास बेहद छोटा कार्यकाल है और विश्लेषक ये भी मानते हैं कि आतिशी के लिए अपनी क्षमताओं को साबित करने के लिए ये वक्त शायद पर्याप्त न हो.
2018 में जब सुषमा स्वराज दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं थीं, तब दिल्ली प्याज़ की बढ़ती क़ीमतों के संकट से जूझ रही थी. जब चुनाव हुए तो बीजेपी बुरी तरह से चुनाव हार गई.
आतिशी के सामने भी ऐसी ही स्थिति है, उसका कार्यकाल बहुत छोटा है. लेकिन विश्लेषक ये मानते हैं कि अब दिल्ली की परिस्थिति पुराने हालात से बेहद अलग है.
शरद गुप्ता कहते हैं, “मौजूदा समय में आम आदमी पार्टी का कोई बड़ा विरोध नहीं हो रहा है और न ही ऐसा कोई मुद्दा है जिससे जनता सीधे तौर पर प्रभावित हो रही हो. ऐसे में, आतिशी के सामने जितना भी समय है, ये काम करके ख़ुद को साबित करने का एक अच्छा मौक़ा भी हो सकता है.”
शरद गुप्ता कहते हैं, “आतिशी के पास आम आदमी पार्टी की छवि को फिर से स्थापित करने का भी मौक़ा है, भले ही वो केजरीवाल के साये में काम करें लेकिन वो पार्टी और सरकार पर अपनी अलग छाप छोड़ सकती हैं.”
अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह और पार्टी के बाक़ी नेता कथित शराब घोटाला मामले में इस समय ज़मानत पर बाहर हैं. ये मुक़दमा, यदि आगे और जटिल होता है तो पार्टी में नेतृत्व का संकट पैदा हो सकता है.
ऐसे में आतिशी को सीएम बनाया जाना इस बात का भी संकेत है कि आम आदमी पार्टी दूसरी पंक्ति के नेताओं के हाथ में कमान दे रही है, ताकि यदि कोई विषम परिस्थिति आती है तो पार्टी को आगे बढ़ाया जा सके.
शरद गुप्ता कहते हैं, “अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह और पार्टी के बाक़ी शीर्ष नेता लगभग एक ही आयु वर्ग के हैं लेकिन आतिशी, सौरभ भारद्वाज, दिलीप पांडेय, राघव चड्ढा और अन्य युवा नेता इनसे छोटे हैं और दूसरी पंक्ति में हैं. ऐसे में आतिशी को कमान देना ये भी स्पष्ट करता है कि पार्टी आगे के लिए नेता तैयार कर रही है.”
शरद गुप्ता कहते हैं, “आतिशी के मुख्यमंत्री बनने का आम आदमी पार्टी पर एक असर यह भी होगा कि अब पार्टी में युवा चेहरों को प्राथमिकता मिलेगी, उनके मंत्रीमंडल में सौरभ भारद्वाज और मुकेश अहलावत पार्टी की अगली पंक्ति के नेताओं का ही प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.”
हालांकि, आतिशी का कार्यकाल अभी शुरू ही हुआ है और विपक्ष ने उन्हें ‘डमी सीएम’ कहना शुरू कर दिया है.
आतिशी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि वो अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में अपनी अलग जगह और पहचान बना पाएं.
आम आदमी पार्टी अरविंद केजरीवाल के व्यक्तित्व के इर्द-गिर्द ही घूमती है. शरद गुप्ता कहते हैं, “आम आदमी पार्टी में अरविंद केजरीवाल ही सर्वेसर्वा हैं, होता वही है जो वो तय करते हैं.
ऐसे में ये सवाल भी है कि क्या आतिशी को सीएम बनाकर पार्टी अपनी छवि बदलने की कोशिश भी कर रही है. इसका जवाब अगले कुछ महीनों में ही मिल सकेगा.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित