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कौन थे लेफ्टिनेंट कर्नल रणजीत राय? जिनके एक फैसले से कश्मीर बन गया भारत का हिस्सा

Byadmin

Jul 30, 2025


Bharat Raksha Parv Lt Col Ranjit Rai Story कर्नल रणजीत राय के एक फैसले ने कश्मीर की तकदीर बदल दी। पाकिस्तान ने घुसपैठियों को कश्मीर में भेज दिया। कर्नल राय को सिक्ख बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर के तौर पर घुसपैठियों को रोकने की जिम्मेदारी दी गई। कर्नल राय ने कहा कि हमारी जान से बड़ा देश है। उन्होंने खुशी-खुशी देश के लिए जान दी।

लेफ्टिनेंट जनरल शौकीन चौहान: भारतीय सेना में यह हमारी तीसरी पीढ़ी है। मुझे अभी भी मेरे पिता की कहानियां याद हैं। जब देश आजाद हुआ तो वो डोगरा रेजिमेंट में लेफ्टिनेंट थे। उनकी आवाज में खुशी भी थी और गम भी। 1947 का साल था। आजादी के बाद भारत का नया जन्म हुआ था। बंटवारे की टीस लोगों के जेहन में जिंदा थी।

पाकिस्तान की नापाक हरकत

कश्मीर तब भी बेहद खूबसूरत था, लेकिन वहां की वादियों में एक हलचल सी थी। अंग्रेज भारत छोड़कर जा चुके थे। सरहद पूरी तरह से लहूलुहान थी। रजवाड़ों को तय करना था कि वो भारत के साथ रहेंगे या पाकिस्तान के साथ। कश्मीर के महाराजा स्वतंत्र रहने की कोशिश कर रहे थे। पाकिस्तान ने इसी मौके का फायदा उठाकर घुसपैठियों को हथियार दिया और कश्मीर में भेज दिया।

श्रीनगर पर कब्जे का मकसद

पाकिस्तान का एकमात्र मकसद यही था कि इससे पहले कश्मीर भारत का हिस्सा बने इसपर जबरन अधिकार कर लिया जाए। घुसपैठियों ने कश्मीर में जमकर कत्ल-ए-आम मचाया। महिलाओं और बच्चों के साथ इंसानियत की सारे हदें पार कर दी गईं। मुजफ्फराबाद पहले से सुलग रहा था। उनका अगला निशाना बारामूला और श्रीनगर था। घाटी तेजी से भारत के हाथों से फिसल रही थी।

कर्नल रणजीत का एक अहम फैसला

भारत को आजाद हुए 10 महीने भी नहीं बीते थे कि कश्मीर में कत्ल-ए-आम शुरू हो गया था। इस दौरान लफ्टिनेंट रणजीत राय के एक फैसले ने कश्मीर की तकदीर बदलकर रख दी। लफ्टिनेंट रणजीत राय कुछ समय पहले ही सिक्ख बटालियन की कमान संभाली थी। तब उनकी उम्र 35 साल थी। उन्हें ‘स्वॉर्ड ऑफ ऑनर’ मिल चुका था। उन्हें खबर मिली कि पाकिस्तान ने कश्मीर में घुसपैठिये भेजे हैं। उन्होंने मुजफ्फराबाद पर कब्जा कर लिया है और वो बारामूला-श्रीनगर की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं।

कर्नल रणजीत ने संभाली कमान

यह खबर सुनकर भारत सरकार भी हिल गई। हवाई मार्ग से श्रीनगर में सैनिक भेजे गए। लेफ्टिनेंट कर्नल रणजीत राय को सिक्ख बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर के तौर पर जल्द से जल्द घुसपैठियों को रोकने की जिम्मेदारी दी गई। किसी को नहीं पता था कि आगे क्या होगा?

बटालियन को दिया आदेश

कर्नल राय अपनी बटालियन के साथ 27 अक्तूबर 1947 को श्रीनगर पहुंचे। उनके पास वक्त बेहद कम था। घुसपैठिये आम नागरिकों को मारते हुए और गांव फूंकते हुए श्रीनगर की तरफ तेजी से आगे बढ़ रहे थे। कर्नल राय ने बटालियन को आदेश दिया कि सीमा पर डटे रहना है।

नहीं मानी हार

कर्नल राय की बटालियन के पास ज्यादा हथियार नहीं थे। महज कुछ मुट्ठी भर सैनिक, न कोई आर्टिलरी और न किसी का समर्थन…इसके बावजूद कर्नल राय डटे रहे। उन्होंने हार नहीं मानी। उनकी बटालियन बारामूला की तरफ बढ़ने लगी। उन्होंने सख्त लहजे में बटालियन को आदेश दिया-

सड्डे जीवन तों वड्डा देश है। अस्सी पैल्लां मरेंगें, पर कश्मीर नहीं दिंदे (हमारी जान से बड़ा देश है। हम पहले मरेंगे, लेकिन कश्मीर नहीं देंगे)

बटालियन के आगे चले

कर्नल राय अपनी सेना के साथ लगातार आगे बढ़ते रहे। उन्होंने पीछे चलने से भी साफ इनकार कर दिया। सेना की अगवाई करते हुए वो सैनिकों के साथ खाते थे और उन्हीं के साथ सोते थे। मुश्किल की इस घड़ी में भी वो बेहद शांत थे। सेना को आदेश देने से पहले वो पहाड़ पर चढ़कर स्थिति का जायजा लेते और फिर सेना को आगे बढ़ने के लिए कहते थे।

इस मिशन में शामिल एक राइफलमैन ने दशकों बाद कर्नल राय पर बात करते हुए कहा-

साहब सामने गए। गोली चली। पर पीछे मुड़कर नहीं देखा। उस दिन हमें सवा लाख की ताकत महसूस हुई।

दुश्मन को दिया चकमा

बारामूला में सिक्ख बटालियन को भारी गोलीबारी का सामना करना पड़ा। कर्नल राय ने बटालियन को रोका और खुद आगे बढ़ने का फैसला किया। वो पहाड़ पर चढ़ने लगे। दुश्मन की गोलियों ने उन्हें छलनी कर दिया और वो पहाड़ी से नीचे गिर गए। दुश्मन को लगा शायद उनके पीछे कोई बड़ी बटालियन आ रही है। ऐसे में दुश्मन डर के मारे वहीं रुक गए और बटालियन का इंतजार करने लगे।

दुश्मन के मसूबों पर फेरा पानी

दुश्मन लगभग 48 घंटे तक उस पहाड़ी पर बटालियन के इंतजार में बैठे रहे और इससे भारत को अधिक समय मिला और सेना की बाकी टुकड़ियां भी वहां पहुंच गईं। कर्नल राय के एक फैसले ने न सिर्फ कई सैनिकों की जान बचा ली बल्कि उनके कश्मीर पर कब्जे के मंसूबों को भी मिट्टी में मिला दिया। श्रीनगर आज भी कश्मीर की खूबसूरती में हीरा बनकर चमक रहा है।

महावीर चक्र से सम्मानित

कर्नल राय को उनकी बहादुरी के लिए देश के दूसरे सबसे बड़े गैलेंट्री अवॉर्ड महावीर चक्र से नवाजा गया था। उनकी वीरता के किस्से आज भी देश में मशहूर है। खासकर सिक्ख रेजिमेंट में उनकी कहानियां काफी आम है।

कर्नल राय का आखिरी खत

कई सालों बाद कर्नल राय के जंग लगे आर्मी ट्रंक में उनकी बेटी को एक खत मिला। इस खत में उन्होंने लिखा था-

शायद मैं आखिरी बार लिख रहा हूं, लेकिन याद रहे मेरी मौत निराशा में नहीं हुई। मैंने खुशी-खुशी देश के लिए जान दी है, क्योंकि मुझे यकीन है मेरा देश खून के हर कतरे से कहीं ज्यादा बढ़कर है। एक दिन आप इस खत को शांति के समय पढ़ोगे और यह शांति राजनीति के द्वारा नहीं बल्कि उन लोगों के द्वारा बहाल की जाएगी, जो सीमा पर डट कर खड़े रहे।

भारत के सिर का ‘ताज’ बना कश्मीर

जाहिर है, कश्मीर सिर्फ एक कागज के टुकड़े पर हस्ताक्षर करके भारत का हिस्सा नहीं बना है। इसे भारत में लाने के लिए कर्नल राय जैसे कई बहादुर जवानों ने अपने जीवन की कुर्बानी दी है। यह लड़ाई महज जमीन के एक टुकड़े की नहीं है बल्कि देश को एक धागे में पिरोए रखने की है। कर्नल राय और उनके जैसे कई जवानों के कारण कश्मीर आज भी भारत का मुकुट बनकर चमक रहा है। देश के जवानों के इस बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है।

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