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क्‍या न्‍याय में देरी इंसाफ है? सुप्रीम कोर्ट ने जांच एजेंसी को फटकारा; अदालतों के हस्‍तक्षेप से खुले घूम रहे अपराधी!

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Sep 16, 2024


डिजिटल डेस्‍क, नई दिल्‍ली। कानूनी कहावत है कि न्याय में देरी न्याय से वंचित करने के समान है। हाल में मनीष सिसोदिया की जमानत पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल में देरी को लेकर जांच एजेंसी पर कड़ी टिप्पणी करते हुए इस आधार पर जमानत दे दी कि 17 महीने बाद भी मामले में ट्रायल शुरू नहीं हुआ है।

सच्चाई यह है कि सभी मामलों में ट्रायल में देरी के लिए सिर्फ जांच एजेंसियों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। बड़ी संख्या में ऐसे मामले भी हैं, जिनमें हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के कारण वर्षों तक ट्रायल शुरू नहीं हो पाया और आरोपी जमानत पर घूमता रहा। कई मामले राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण अदालती प्रक्रिया के बीच में ही दम तोड़ देते हैं।

आइए अदालतों में लंबित ऐसे मामलों पर नजर डालते हैं, जिनमें वर्षों बीत जाने के बावजूद अब तक ट्रायल शुरू नहीं हुआ है…

नेशनल हेराल्ड मामला

साल 2012 में सुब्रह्मण्यम स्वामी द्वारा अदालत में दाखिल केस में ट्रायल अभी तक शुरू नहीं हुआ है। 2015 से सोनिया गांधी और राहुल गांधी जमानत पर हैं। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों को निजी तौर पर अदालत में सुनवाई के दौरान मौजूद रहने से छूट दे रखी है। ईडी ने मनी लांड्रिंग मामले में 2023 में नेशनल हेराल्ड की 752 करोड़ की संपत्ति जब्त कर ली थी।

2जी घोटाला

साल 2009 में सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की। 2011 में आरोपपत्र दाखिल। 2017 में सभी आरोपी बरी। सीबीआई और ईडी दोनों ने हाई कोर्ट में अपील की। छह साल के इंतजार के बाद हाई कोर्ट ने 2024 में कहा कि ईडी और सीबीआई की अपील सुनवाई योग्य है। अभी तक सुनवाई शुरू नहीं हो पाई है।

बीकानेर जमीन घोटाला

2016 में बीकानेर जमीन घोटाले में स्थानीय पुलिस की एफआईआर के बाद ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया। 2019 में रॉबर्ट वाड्रा और उनकी मां से ईडी की पूछताछ के बाद एक अन्य आरोपित महेश नागर ने राजस्थान हाई कोर्ट में ईडी की जांच रोकने की याचिका दाखिल की।

हाई कोर्ट ने ईडी पर आरोपियों के खिलाफ किसी भी कार्रवाई पर रोक लगा दी। 2022 में हाई कोर्ट ने ईडी की जांच रोकने से इनकार कर दिया, लेकिन रॉबर्ट वाड्रा समेत अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी पर रोक जारी रखी। हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील लंबित है।

IRCTC घोटाले में लंबे समय तक लटका रहा ट्रायल

साल 2016 में सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की और 2018 में लालू यादव, तेजस्वी यादव समेत अन्य आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। लेकिन रेल मंत्रालय के तीन आरोपी अधिकारियों ने दिल्ली हाई कोर्ट में तकनीकी आधार पर चार्जशीट को चुनौती दी और हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट पर चार्जशीट का संज्ञान लेने पर रोक लगा दी।  

पांच साल बाद हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को सीबीआई की चार्जशीट को संज्ञान में लेते हुए मामले की सुनवाई शुरू करने की इजाजत दी, तब जाकर ट्रायल शुरू हो सका। ऐसे भी खत्म हो जाते हैं केस: कई चर्चित मामलों में जांच एजेंसियों ने एफआईआर दर्ज करके जांच शुरू की, लेकिन अदालतों में यह मामले टिक नहीं पाए।

लालू यादव के खिलाफ मामला  

1998 में सीबीआई ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का केस दर्ज किया और 2000 में चार्जशीट दाखिल की। 2006 में लालू यादव को ट्रायल कोर्ट ने बरी कर दिया। तत्कालीन संप्रग सरकार में रेल मंत्री के रूप में शामिल लालू यादव के मामले में ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की इजाजत नहीं मिली।

हालांकि, बिहार सरकार ने हाई कोर्ट में अपील की, लेकिन सीबीआई लालू यादव के बचाव में सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने अपील का अधिकार सिर्फ जांच एजेंसी का बताते हुए बिहार सरकार की हाई कोर्ट में अपील को खारिज कर दिया। वैसे 2020 में सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य बेंच ने स्वीकार किया कि 2010 के फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है।

झारखंड मुक्ति मोर्चा घूसकांड

1993 में पैसे लेकर नरसिम्हा राव सरकार को समर्थन देने के मामले में 1996 में सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की। सीबीआई ने पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव समेत सभी आरोपियों के खिलाफ 1997 में चार्जशीट दाखिल कर दी। ट्रायल कोर्ट ने उसका संज्ञान भी ले लिया।

दिल्ली हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के संज्ञान लेने को सही ठहराया। लेकिन 1998 सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने संसदीय विशेषाधिकार का हवाला देकर आरोपियों के खिलाफ केस चलाने की अनुमति देने से इन्कार कर दिया।

वैसे 26 साल बाद सुप्रीम कोर्ट को अपनी गलती का अहसास हुआ और 2024 में नई संविधान पीठ ने पुराने फैसले को पलट दिया। लेकिन इससे जेएमएम घूसकांड को संजीवनी नहीं मिल सकी। इस बीच घोटाले के एक मुख्य आरोपित कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरप्पा मोइली केंद्र में कानून मंत्री भी बने और प्रशासनिक सुधार आयोग के अध्यक्ष भी।

बोफोर्स घोटाला

1986 में हुए बोफोर्स घोटाले में 1996 में सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की और 1999 में चार्जशीट दाखिल की। दिल्ली हाई कोर्ट ने 2004 में राजीव गांधी और 2005 में हिंदुजा बंधुओं को केस से बरी कर दिया। इसके बाद सीबीआई ने 2009 में क्वात्रोची के खिलाफ केस वापस लेने की अर्जी लगाई और 2011 में इसे अदालत ने स्वीकार कर लिया।

राजीव गांधी और हिंदुजा बंधुओं को बरी किए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई ने 12 वर्ष तक अपील नहीं की। 2017 में सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की, लेकिन इतने लंबे समय बाद दाखिल अपील को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।

आईएएस टॉपर ललित वर्मा फर्जी जन्मतिथि मामला

1984 बैच के आईएएस टॉपर  ललित वर्मा पर आईएएस बनने के बाद यूपीएससी में जाकर अपने दस्तावेजों में जन्म की तारीख बदलने का आरोप था। सीबीआई ने इस मामले में जांच कर ललित वर्मा के खिलाफ 2006 में दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में चार्जशीट दाखिल किया। लेकिन ललित वर्मा ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच से सीबीआई की चार्जशीट को ही निरस्त करा लिया, जबकि दिल्ली का तीस हजारी कोर्ट इलाहाबाद हाई कोर्ट के क्षेत्राधिकार में आता ही नहीं है।

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 सीबीआई ने क्षेत्राधिकार का उल्लंघन कर दिए गए हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देना चाहा, लेकिन तत्कालीन सरकार से अनुमति नहीं मिली। इस मामले में ललित वर्मा का बच निकलना सिस्टम के लिए केस स्टडी का विषय हो सकता है।

ताज कॉरिडोर घोटाले में एफआईआर को अवैध बताया गया

2003 में ताज कॉरिडोर घोटाले में सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की। सीबीआई ने 2007 में आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। तत्कालीन राज्यपाल टीवी राजेश्वर ने सीबीआई को मायावती और नसीमुद्दीन सिद्दीकी समेत तीन आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं दी।

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ताज कॉरिडोर घोटाले के दौरान ही सीबीआई ने तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया और सुप्रीम कोर्ट को लगातार इसकी जांच की प्रगति रिपोर्ट देती रही। लेकिन 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने मायावती के खिलाफ दर्ज आय से अधिक संपत्ति मामले की एफआईआर को अवैध करार दे दिया।

भूषण स्टील बैंक धोखाधड़ी केस

2019 में बैंकों से 56 हजार करोड़ रुपये के धोखाधड़ी के मामले में सीबीआई और ईडी ने केस दर्ज किया। अदालती पेंच में फंसकर चार वर्ष तक जांच रुकी रही। 2023 में ईडी ने भूषण स्टील के प्रमोटर नीरज सिंघल और 2024 में कंपनी के पांच अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को गिरफ्तार किया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल में देरी का हवाला देते हुए नीरज सिंघल को जमानत दे दी।

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