इमेज कैप्शन, ग़ज़ा पट्टी के केंद्रीय हिस्से में राहत सामग्री लेकर जाते लोग….में
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि ग़ज़ा में 20 लाख से ज़्यादा फ़लस्तीनी भुखमरी के संकट का सामना कर रहे हैं और यहां कुपोषण से होने वाली मौतें हर दिन बढ़ रही हैं.
ग़ज़ा ह्यूमेनिटेरियन फ़ाउंडेशन (जीएचएफ़), इस साल मई के आख़िरी हफ़्ते से ग़ज़ा में राहत सामग्री बांटने का काम कर रहा है. इस संगठन को इसराइल और अमेरिका का समर्थन है. जीएचएफ़ का कहना है कि उसने अब तक 9 करोड़ 10 लाख मील्स बांटे हैं, जो ज़्यादातर फ़ूड बॉक्स के रूप में दिए गए हैं.
बीबीसी को इन डिब्बों को सीधे तौर पर देखने का मौक़ा नहीं मिला क्योंकि इसराइल ने अंतरराष्ट्रीय पत्रकारों को ग़ज़ा में जाने की अनुमति नहीं दी है.
हालांकि बीबीसी वेरिफ़ाई ने जीएचएफ़ की तरफ़ से साझा की गई तस्वीरों और जानकारी को देखा है और मदद के क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों से बात की है, जिन्होंने इन डिब्बों में मौजूद भोजन की पौष्टिकता को लेकर चिंता जताई है.
फ़ूड बॉक्स में क्या-क्या होता है?
ऑनलाइन कई वीडियो सामने आए हैं जिनमें फ़लस्तीनी लोग इन डिब्बों को खोलकर दिखा रहे हैं कि इनके अंदर क्या-क्या है. हालांकि, जीएचएफ़ ने इनकी कुछ तस्वीरें सिर्फ़ इस हफ़्ते जारी की हैं.
सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट की गई इन फ़ूड पैकेट्स की दो तस्वीरों में ज़्यादातर सूखी चीज़ें नज़र आती हैं, जिन्हें पकाने के लिए पानी और ईंधन की ज़रूरत होती है. इनमें पास्ता, चना, दाल और आटा शामिल हैं. इनके अलावा खाना पकाने का तेल, नमक और ताहिनी (तिल का पेस्ट) भी होता है.
जीएचएफ़ का कहना है कि फ़ूड बॉक्स में कुछ ऐसी चीज़ें भी होती हैं जिन्हें बिना पकाए सीधे खाया जा सकता है, जैसे हलवा बार. ये एक स्नैक है जो ताहिनी यानी तिल के पेस्ट और चीनी को मिलाकर तैयार किया जाता है.
इमेज कैप्शन, तस्वीर में दो फ़ूड बॉक्स खुले हुए दिख रहे हैं, और सामान बाहर निकालकर रखा गया है
संगठन ने एक लिस्ट भी साझा की है, जिसे वह हर बॉक्स के लिए एक ”बेंचमार्क” बताता है. इसमें खाने के पैकेट्स के साथ-साथ कैलोरी का भी पूरा हिसाब दिया गया है.
इस लिस्ट के हिसाब से, एक सामान्य डिब्बे में 42,500 कैलोरी होती है और “एक डिब्बा औसतन 5.5 लोगों के लिए साढ़े तीन दिन का खाना” माना जाता है.
कभी-कभी इसमें दूसरी चीज़ें भी रखी जाती हैं, जैसे चाय, बिस्कुट और चॉकलेट. इसके अलावा आलू और प्याज़ भी बांटे जाते हैं, लेकिन जीएचएफ़ का कहना है कि इनका हिसाब पौष्टिकता वाले आंकड़ों में शामिल नहीं है.
‘गंभीर कमियां’
लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स के इंटरनेशनल ऐड डेवलपमेंट के प्रोफ़ेसर स्टुअर्ट गॉर्डन ने जीएचएफ़ की दी हुई लिस्ट का विश्लेषण करके बीबीसी वेरिफ़ाई को बताया कि इससे ज़रूरी कैलोरी तो मिल सकती है ताकि लोग ज़िंदा रह सकें, लेकिन इसमें “गंभीर कमियां” हैं.
प्रोफ़ेसर स्टुअर्ट गॉर्डन का कहना है, “ये राशन पेट तो भर देता है, लेकिन पोषण नहीं देता. सबसे बड़ी कमी वो चीज़ें हैं जो इसमें नहीं हैं… यह दरअसल एक तरह का ‘फ़र्स्ट एड’ फ़ूड बॉक्स है, जो सिर्फ़ भुखमरी के असर को कुछ समय के लिए रोकने के लिए बनाया गया है.”
उन्होंने कहा, “ऐसा खाना अगर कई हफ़्तों तक चलता रहा तो शरीर में पोषण की कमी बढ़ती जाएगी और इससे एनीमिया (ख़ून की कमी) और स्कर्वी जैसी बीमारियों का ख़तरा बढ़ जाएगा.”
वहीं यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के अंतरराष्ट्रीय पोषण विशेषज्ञ और एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ. एंड्रयू सील का कहना है कि इन खाने के डिब्बों में कैल्शियम, आयरन, ज़िंक और विटामिन सी, डी, बी12 और के की भारी कमी है. उन्होंने यह भी बताया कि छोटे बच्चों के लिए उपयुक्त खाना इसमें मौजूद नहीं है.
उनके शब्दों में, “अगर लंबे समय तक केवल यही चीज़ें ही खाई जाती रहीं, भले ही ये पर्याप्त मात्रा में मिल रही हों, व्यक्ति को कई तरह की पोषण संबंधी कमी और गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो जाएंगी.”
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इमेज कैप्शन, ग़ज़ा के लोगों ने उन्हें मिले फ़ूड बॉक्स के वीडियो सोशल मीडिया पर साझा किए
प्रोफ़ेसर डॉ. एंड्रयू सील ने कहा कि जीएचएफ़ के मुक़ाबले संयुक्त राष्ट्र जैसी एजेंसियां आम तौर पर राशन बड़े पैमाने पर बांटती हैं और इसके साथ कमज़ोर और ज़रूरतमंद लोगों के लिए अलग से पौष्टिक चीज़ें देती हैं.
वर्ल्ड फ़ूड प्रोग्राम (डब्ल्यूएफ़पी) का कहना है कि उसका मक़सद छोटे बच्चों और गर्भवती महिलाओं तक आपातकालीन मदद पहुंचाना भी है.
बीबीसी वेरिफ़ाई ने जब जीएचएफ़ से पूछा कि क्या उनके इन खाने के डिब्बों में मौजूद पौष्टिक तत्वों पर किसी ने सलाह दी थी और क्या वे विशेषज्ञों की ओर से उठाई गई चिंताओं को दूर करने के लिए कोई कदम उठाएंगे, तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.
जिन लोगों को ये डिब्बे मिल भी जाते हैं, उन्हें इन चीज़ों को पकाने के लिए फिर भी पानी और ईंधन की ज़रूरत पड़ती है. लेकिन ग़ज़ा पहले से ही पानी की भारी कमी और ईंधन की किल्लत से जूझ रहा है.
यूनाइटेड नेशंस ऑफ़िस फ़ॉर द कोऑर्डिनेशन ऑफ़ ह्यूमेनिटेरियन अफ़ेयर्स (ओसीएचए) ने इस हफ़्ते चेतावनी दी है कि ग़ज़ा में पानी का संकट तेज़ी से बिगड़ रहा है. एजेंसी का कहना है कि परिवारों को असुरक्षित तरीक़ों से खाना पकाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है, जैसे कचरे या बचे-खुचे सामान को जलाकर खाना बनाना.
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डब्ल्यूएफ़पी ने मई में बताया था कि आधिकारिक तौर पर खाना पकाने वाली गैस की सप्लाई बंद हो गई है और अब यह गैस काले बाज़ार में पहले की तुलना में 4000 प्रतिशत ज़्यादा कीमत पर बिक रही है.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इस हफ़्ते कहा कि ग़ज़ा के लोग ज़रूरी सामान की गंभीर कमी का सामना कर रहे हैं और कुपोषण “तेज़ी से बढ़ रहा है”.
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य सहायता कार्यक्रम ने चेतावनी दी है कि ग़ज़ा में हर तीन में से लगभग एक व्यक्ति कई-कई दिन तक बिना खाए रह रहा है.
डब्ल्यूएफ़पी ने शुक्रवार को कहा, “कुपोषण लगातार बढ़ रहा है और 90,000 महिलाओं और बच्चों को तुरंत इलाज की ज़रूरत है.”
अतिरिक्त रिपोर्टिंग: मैट मर्फ़ी
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित