अमेरिका के साथ व्यापार समझौते को लेकर भारत सतर्क है, क्योंकि जापान के साथ हुए हालिया समझौते में बाधा आई है। जापान और अमेरिका के बीच समझौते की शर्तों को लेकर विवाद है, और इंडोनेशिया व वियतनाम के साथ घोषित सौदों को पूरा करने में भी चुनौतियां हैं।
दरअसल, डील को लेकर जापान की व्याख्या ट्रंप प्रशासन से अलग है। जापानी अधिकारियों का कहना है कि अभी तक कोई लिखित समझौता नहीं हुआ है। वहीं, अमेरिकी अधिकारियों का दावा है कि टोक्यो ने अमेरिका में निवेश करने का वादा किया है। इससे स्थानीय करदाताओं को लाभ का नौवां-दसवां हिस्सा मिलेगा।
डील पर क्या कह रहा जापान?
पिछले सप्ताह एक जापानी अधिकारी ने एक बयान में कहा कि उन्हें उम्मीद है कि 550 अरब डॉलर के निवेश पैकेज की शर्तों के तहत, दोनों देशों के बीच मुनाफे का बंटवारा योगदान की मात्रा के आधार पर होगा। यह ट्रंप के इस दावे के विपरीत है कि जापान निवेश का पूरा बोझ खुद उठाएगा और 90% मुनाफ़ा अमेरिका को मिलेगा।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने शनिवार को कहा कि अमेरिका और ओमान के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत अग्रिम चरण में है। उन्होंने यह भी कहा कि वार्ता को आगे बढ़ाने के लिए अमेरिका से वार्ताकारों का एक दल अगस्त के दूसरे पखवाड़े में भारत आएगा।
राष्ट्रीय हित की कीमत पर जल्दबाजी नहीं
मंत्री ने कहा कि व्यापार वार्ता के मामले में भारत समय-सीमा से बंधा नहीं होगा। उन्होंने संकेत दिया कि सरकार राष्ट्रीय हित की कीमत पर किसी समझौते में जल्दबाजी नहीं करेगी। राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो के साथ बातचीत के बाद ट्रंप ने इंडोनेशिया के साथ एकतरफा व्यापार समझौते की घोषणा की, लेकिन इस समझौते पर अभी तक हस्ताक्षर नहीं हुए हैं।
22 जुलाई को, इंडोनेशिया के मुख्य वार्ताकार और आर्थिक मामलों के समन्वय मंत्री, एयरलांगा हार्टार्ट ने अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि जेमीसन ग्रीर के साथ एक संयुक्त बयान जारी किया था। इसमें समझौते की रूपरेखा और आयात कर दरों को स्पष्ट किया गया। बयान में गैर-शुल्क उपायों और वाणिज्यिक समझौतों पर अतिरिक्त जानकारी शामिल थी। दोनों पक्ष समझौते को अंतिम रूप देने के लिए बातचीत जारी रखने पर सहमत हुए।
सिंगापुर के एस राजारत्नम स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज (आरएसआईएस) में इंडोनेशिया पर विशेषज्ञता रखने वाले विजिटिंग सीनियर फेलो आईस गिन्दरसा की टिप्पणी के अनुसार यदि राजनीतिक समझौते को कानूनी रूप नहीं दिया जाता है, तो नीतिगत असफलता का रिस्क अधिक बना रहेगा।
वियतनाम के साथ टैरिफ दरों की आधिकारिक पुष्टि नहीं
इस बीच, पता चला है कि वियतनाम ने अभी तक ट्रंप की तरफ से द्विपक्षीय समझौते के तहत घोषित टैरिफ दरों की आधिकारिक पुष्टि नहीं की है। हनोई को डर है कि अगर ट्रंप की तरफ से घोषित हाई टैरिफ लागू होते हैं, तो अमेरिका को उसके निर्यात में एक तिहाई की गिरावट आ सकती है।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल वियतनाम का अमेरिका को कुल निर्यात 120 अरब डॉलर का था। ब्लूमबर्ग की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि 20% से 40% के टैरिफ से एक्सपोर्ट रेवेन्यू में 37 अरब डॉलर तक की कमी आएगी। इससे वियतनाम के अधिकांश प्रमुख उद्योगों, जिनमें इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी, परिधान, जूते और फर्नीचर पर असर पड़ेगा।