आंध्र प्रदेश के तिरुपति में पवित्र भगवान वेंकटेश्वर मंदिर में प्रसिद्ध लड्डू प्रसादम अपने अनोखे स्वाद के लिए फेमस है। ये लड्डू मंदिर की रसोई में तैयार किए जाते हैं। इन्हें पोटू के नाम से जाना जाता है। अपने लंबे इतिहास में इन लड्डुओं की रेसिपी को सिर्फ छह बार बदला गया है। मूल रूप से इसे बेसन (चने का आटा) और गुड़ की चाशनी से तैयार किया जाता है। इनका टेस्ट और पोषण बढ़ाने के लिए बाद में इनमें ड्राई फ्रूट्स जैसे बादाम, काजू और किशमिश मिलाए गए।
रोजाना 3 लाख लड्डुओं की बिक्री
तिरुमाला में रोजाना लगभग 3 लाख लड्डू बनाए और बांटे जाते हैं। हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार इन लड्डुओं की बिक्री से लगभग 500 करोड़ रुपये की सालाना कमाई होती है। प्रत्येक लड्डू का वजन 175 ग्राम होता है।
300 वर्षों से ज्यादा पुराना है इतिहास
तिरुपति लड्डुओं क इतिहास 300 वर्षों से ज्यादा पुराना है। इनकी शुरुआता साल 1715 से हुई थी। साल 2014 में तिरुपति लड्डू को भौगोलिक संकेत (GI) का दर्जा दिया गया। लड्डुओं क्वालिटी बनाए रखने के लिए एक फूड लैबोरेट्री है। लड्डुओं में मिलाए जाने वाले काजू, चीनी और इलायची जैसी चीजों की सही मात्रा के लिए हर बैच का सावधानीपूर्वक निरीक्षण किया जाता है।
क्या है पूरा मामला?
गुरुवार को आंध्र प्रदेश की मौजूदा सरकार ने पिछली सरकार के कार्यकाल के दौरान तिरुपति के लड्डू के अंदर जानवरों की चर्बी होने की बात कही थी। इस दावे के लिए नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड की रिपोर्ट भी दिखाई गई। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रसाद के लड्डू बनाने के लिए 400-500 किलो देसी घी, 750 किलो काजू, 500 किलो किशमिश, 200 किलो इलायची और साथ में बेसन, चीनी आदि इस्तेमाल किए जाते हैं। रिपोर्ट दावा करती है कि इस रेसिपी में जो देसी घी इस्तेमाल किया जा रहा था, उसमें 3 जानवरों की चर्बी की मिलावट थी। लड्डू के स्वाद में बदलाव के बारे में शिकायत किए जाने के बाद 23 जुलाई को ये टेस्ट किए गए।