तिरुपति मंदिर के प्रसाद में जानवरों की चर्बी के होने के आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के बयान ने लोगों को सकते में डाल दिया है.
तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) के कार्यकारी अधिकारी श्यामला राव ने इसकी पुष्टि की है. तिरुमला में प्रसाद के लिए घी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है.
हालांकि पहले केवल वनस्पति घी की मिलावट बताने वाले श्यामला राव ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि उसमें जानवरों की चर्बी भी मौजूद है.
आंध्र प्रदेश में जब नई सरकार बनी तो श्यामला राव को टीटीडी का कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया गया था.
उन्होंने मीडिया से कहा, “कार्यभार संभालने के बाद मैं मुख्यमंत्री से मिला तो उन्होंने प्रसाद की गुणवत्ता के बारे में मुझे बताया. इसीलिए मैंने इस पर ध्यान दिया. उस समय पांच कंपनियां घी की आपूर्ति करती थीं, लेकिन जब मैंने गुणवत्ता को लेकर चेतावनी दी तो उन्होंने अपना रवैया बदल दिया. लेकिन एक कंपनी ने बदलाव नहीं किया. इसलिए हमने उसे ब्लैकलिस्ट करने की प्रक्रिया शुरू कर दी.”
बीती 23 जुलाई को एक प्रेस कांफ़्रेंस में श्यामला राव ने कहा था कि घी में वनस्पति तेल की मिलावट हुई है लेकिन गुरुवार को मीडिया के सामने कहा कि उसमें एनिमल फ़ैट की भी मौजूदगी है.
उन्होंने सफ़ाई देते हुए कहा कि लैब रिपोर्ट और एक्सपर्ट से बात करने में समय लगा.
उन्होंने कहा कि जब तमिलनाडु की एआर डेयरी फ़ूड्स कंपनी से घी के 10 टैंकर आए तो उसमें छह टैंकरों का घी इस्तेमाल किया जा चुका था जबकि चार टैंकरों के नमूनों को वापस भेजा गया और उनकी रिपोर्ट में मिलावट की बात पता चली.
श्यामला राव ने कहा कि कंपनी पर क़ानूनी कार्रवाई करने पर भी विचार किया जा रहा है.
हालांकि एआर डेयरी फ़ूड्स ने अपने बयान में कहा, “जुलाई में हमने टीटीडी को 16 टन घी की आपूर्ति की थी. हमने बिना मिलावट के शुद्ध घी दिया था.”
टेंडर 12 मार्च 2024 को जारी किया गया, जिसे 8 मई तक अंतिम रूप दिया गया और 15 मई को आपूर्ति शुरू की गई. कंपनी 319 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से गाय के घी की आपूर्ति करने पर सहमत हुई.
रिपोर्ट में क्या है?
टीटीडी ने घी के नमूनों की जांच के लिए गुजरात की नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) की काफ़ लैब (सेंटर फॉर एनॉलिसिस एंड लर्निंग इन लाइवस्टॉक एंड फ़ूड) को भेजा था.
रिपोर्ट में कहा गया है कि 17 जुलाई को नमूने मिले और 23 जुलाई को जांच पूरी की गई.
यह रिपोर्ट वॉटर एंड फ़ूड एनॉलिसिस लैबोरेटरी, टीटीडी के नाम से बाहर आई. इसमें संलग्नक 1 ही विवाद का केंद्र है.
इसमें कहा गया है, “घी में ‘एस वैल्यू’ कभी कभी ऊपर या नीचे होती है. अगर ऐसा है तो माना जाना चाहिए कि घी में बाहरी चर्बी मिलाई गई है.”
लैब रिपोर्ट के अनुसार, ‘एस वैल्यू’ के आधार पर नमूने सभी पांच पैमाने पर असफल रहे.
हालांकि रिपोर्ट में वनस्पति तेल और जानवरों की चर्बी दोनों की मिलावट की बात कही गई है.
पहला पैमाना था- सोयाबीन, सूरजमुखी, रेपसीड, जैतून, कॉटन सीड, मछली के तेल आदि की मिलावट.
दूसरा पैमाना था- नारियल और पाम के बीज के फ़ैट की मिलावट.
तीसरा पैमाना बीफ़ फ़ैट (गाय की चर्बी) और पॉम ऑयल की मिलावट को लेकर है.
जबकि चौथे पैमाने में पोर्क टैलो (सूअर की चर्बी) की मिलावट की जांच शामिल थी. इसके अलावा समग्र रूप से मिलावट की जांच भी की गई.
ये स्पष्ट नहीं है कि मिलावट की रिपोर्ट पॉम ऑयल की वजह से है या बीफ़ फ़ैट की वजह से.
एनडीडीबी के एक अधिकारी ने बीबीसी को बताया, “हमें मिले नमूनों की जानकारी गोपनीय है. भेजने वाले की जानकारी और शहर का नाम नहीं है. हमें केवल नमूने मिले. लेकिन जांच के नतीजों पर हम कुछ नहीं कहेंगे. कोई नहीं जानता कि नमूने कहां से आए.”
एक्सपर्ट क्या कहते हैं?
दूसरी तरफ़ लैब रिपोर्ट को देखने वाले दो एक्सपर्ट्स से बीबीसी ने बात की, जिनका डेयरी और फ़ूड सेफ़्टी के क्षेत्र में अनुभव है.
उनमें से एक ने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर कहा, “घी में मिलावट एक तथ्य है. लेकिन सिर्फ इस रिपोर्ट के आधार पर ये नहीं कहा जा सकता कि मिलावट वनस्पति तेल का है या जानवरों की चर्बी का.”
“आमतौर पर गाय के छह लाख लीटर दूध से 15 टन घी बनता है. मेरे हिसाब से आपूर्ति करने वाली कंपनी के पास इतने बड़े पैमाने पर गाय का दूध इकट्ठा करने का कोई सिस्टम नहीं है. इसके अलावा इसकी क़ीमत बहुत कम है. इसलिए मिलावट तो ज़रूर हुई होगी. लेकिन ये नहीं कहा जा सकता कि मिलावट किस चीज़ की है.”
उन्होंने कहा, “मैं जानता हूं कि सार्वजनिक क्षेत्र की एक डेयरी कंपनी के प्रतिनिधि ने टीटीडी से घी की आपूर्ति करने के लिए सम्पर्क किया था और उस समय के टीटीडी के चेयरमैन से मौजूदा कंपनियों के दाम पर आपूर्ति करना असंभव बताया था. लेकिन उन्होंने उनकी बात नहीं सुनी.”
दूसरे एक्सपर्ट ने बीबीसी से कहा, “सिर्फ एक रिपोर्ट के आधार पर हम ये नहीं कह सकते कि एनिमल फ़ैट की मिलावट हुई है या नहीं. आमतौर पर भारत में घी में मिलावट के लिए पाम ऑयल की मिलावट होती है. लेकिन टीटीडी के मामले में क्या हुआ है मैं ठीक से नहीं कह सकता.”
उन्होंने बताया, “कई कारणों से रिपोर्ट में ये चीज़ें मिल सकती हैं. उदाहरण के लिए अगर एक भी गाय को पाम ऑयल, कपास के तेल, रेपसीड ऑयल मिला चारा दिया जाता है तो उसके दूध में ये तत्व पाए जा सकते हैं. अगर गाय को अधिक पोषण वाला चारा दिया जाता है या कोई गाय कुपोषित है तो भी उसके दूध में ये तत्व हो सकते हैं. इसके अलावा जन्म देने के तुरंत बाद गाय के गाढ़े दूध को मिलाया जाए तो उसमें भी ये तत्व मिल सकते हैं.”
अगर कुछ ख़ास तरीक़े से दूध से कोलेस्ट्रॉल निकाला जाए तो भी ऐसा हो सकता है.
रिपोर्ट में भी लिखा है कि ये नतीजे ग़लत भी हो सकते हैं.
पहले भी घी के कई टैंकर वापस भेजे गए
इससे पहले भी घी के कई टैंकरों को टीडीडी ने वापस भेजे हैं. हालांकि इसके कोई आंकड़े मौजूद नहीं हैं.
लेकिन टीटीडी गवर्निंग काउंसिल के कई सदस्यों और प्रेसिडेंट ने कहा है कि वाईसीपी और टीडीपी (तेलुगू देशम पार्टी) सरकारों के दौरान ख़राब गुणवत्ता के चलते दसियों घी टैंकर वापस भेजे गए हैं.
हालांकि, वर्तमान कार्यकारी अधिकारी श्यामला राव ने कहा कि टीटीडी के पास घी की जांच के लिए कोई लैब नहीं हैं, लेकिन ये पता नहीं है कि किस तरह इनकी जांच की गई और किस आधार पर इन्हें वापस भेजा गया.
चार सितम्बर से टीटीडी ने कर्नाटक मिल्क फ़ेडरेशन से घी मंगाना शुरू कर दिया है.
कार्यकारी अधिकारी ने उसी दिन अपने प्रेस बयान में मिलावट की बात कही थी लेकिन एनिमल फ़ैट का नाम नहीं लिया था.
उन्होंने कहा था कि नए टेंडर में कई और शर्तें जोड़ी गईं और यह टेंडर अभी जारी है.
कम क़ीमतें मूल वजह हैं?
पिछली सरकार में जब टेंडर जारी किए गए थे तो कंपनी 319 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से गाय के घी की आपूर्ति करने पर सहमत हुई थी.
हालांकि कई एक्सपर्ट्स ने कहा है कि इस क़ीमत पर गाय का घी मुहैया कराना संभव नहीं है.
अब उसी चीज़ को टीटीडी ने मान लिया है. मौजूदा समय में नंदिनी कंपनी 475 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से घी की आपूर्ति कर रही है. इसके अलावा अन्य कंपनियों से भी घी मंगाया जा रहा है.
प्रसाद पर पॉलिटिक्स
एक तरफ़ प्रसाद की गुणवत्ता को लेकर श्रद्धालुओं की भावनाएं आहत हुई हैं तो दूसरी तरफ़ इसे लेकर राजनीति भी शुरू हो गई है.
तिरुमला के ट्रेड यूनियन नेता सैद मुरली ने कहा, “अगर घी की गुणवत्ता ठीक नहीं था, तो पहले भी उन्होंने उसे वापस कर दिया है. लेकिन विरोधियों को निशाना बनाने के लिए इसका इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. अगर पाया जाता है कि वाक़ई ग़लती की गई है तो बिना भेदभाव के कार्रवाई होनी चाहिए.”
तेलुगू देशम पार्टी के नेता ओवी रमन ने बीबीसी को बताया, “कर्नाटक को छोड़कर किसी भी राज्य के पास इतनी संख्या में गाएं नहीं हैं. दूरी की वजह से पंजाब से भी घी मंगाना मुश्किल है. लेकिन समस्या तब शुरू हुई जब कर्नाटक डेयरी (नंदिनी) से घी लेना बंद कर निजी कंपनियों से कम दाम पर ख़रीदारी की गई.”
निजी कंपनियां विदेश से मंगाए गए बटर ऑयल की मिलावट करती हैं. असल में टीटीडी का टेंडर पाने के लिए ढाई लाख लीटर दूध को प्रोसेस करने की क्षमता होनी चाहिए.
टेंडर देते समय इन बातों का ध्यान हीं रखा गया. अभी भी मांग का 35 प्रतिशत नंदिनी से ही मंगाया जाता है. बाकी निजी कंपनियों से आता है.
अतीत में भी घी के नमूने लिए गए थे. रमन ने उन सबकी जांच की मांग की है.
मौजूदा कार्यकारी अधिकारी श्यामला राव ने मीडिया को बताया कि तिरुमला के पास अपना कोई टेस्टिंग लैब नहीं है और उन्हें नहीं पता कि 75 लाख रुपये लागत से बनने वाले लैब को क्यों नहीं बनाया गया.
उन्होंने कहा कि गुजरात एनडीडीबी टीटीडी को लैब के उपकरण देने को राज़ी है और जल्द ही इसे स्थापित किया जाएगा.
श्यामला राव ने कहा कि इस समय मैसूर के सीएफ़टीआरआई में जांच की जा रही है.
जगनमोहन रेड्डी ने पूछे सवाल
पूर्व मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने शुक्रवार को कहा कि ‘चंद्रबाबू नायडू का 100 दिन का शासन अच्छा नहीं रहा और इससे ध्यान भटकाने के लिए उन्होंने ये मुद्दा उठाया है.’
जगन ने पूछा, “घी इकट्ठा करने का टीटीडी का अपना स्थापित तरीक़ा है. ख़राब घी को वो वापस कर देता है. टीटीडी में तीन जांच के बाद ही घी का इस्तेमाल किया जाता है. अतीत में भी चंद्रबाबू के कार्यकाल में 14-15 टैंकर घी और हमारे कार्यकाल में 18 टैंकर घी को हमने वापस किया है. यह एक सामान्य प्रक्रिया है.”
“लेकिन 23 जुलाई की रिपोर्ट को लाने में दो महीने की देरी क्यों की गई? इसके अलावा यह रिपोर्ट टीटीडी की बजाय तेलुगू देशम पार्टी ऑफ़िस से जारी की गई?”
उन्होंने कहा कि पूर्व टीटीडी कार्यकारी अधिकारी ‘वाईवी सुब्बारेड्डी 45 बार के अय्यप्पामाला रहे हैं, उनसे बढ़िया व्यक्ति कौन हो सकता है.’
अय्यप्पामाला एक धार्मिक अनुष्ठान होता है जिसे पुजारी साल में 40 दिन के लिए घर से अलग रह कर पूजा पाठ करते हैं.
हालांकि बीजेपी, जनसेना, कांग्रेस और अन्य प्रमुख नेताओं ने घी के मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए व्यापक जांच की मांग की है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित