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थम नहीं रही सड़क हादसे में मौत की रफ्तार, कैशलेस इलाज में नियमों के ‘ब्रेकर’ से देशवासी परेशान

Byadmin

Jul 6, 2025


सरकार के प्रयासों के बावजूद भारत में सड़क दुर्घटनाएँ और मृत्यु दर बढ़ रही है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सड़क परिवहन मंत्रालय ने घायलों के लिए कैशलेस इलाज योजना शुरू की है जिसके तहत भर्ती होने के दिन से सात दिनों तक 1.5 लाख रुपये तक का इलाज मुफ्त होगा। कानूनी जानकारों का मानना है कि बीमा कंपनियों को शामिल करने से योजना और अधिक प्रभावी होगी।

जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली: विडंबना है कि सरकार के तमाम प्रयासों या कहें कि दावों के बावजूद देश में सड़क हादसों और उनमें होने वाली मौतों का आंकड़ा घटने की बजाए बढ़ता ही जा रहा है।

इस बीच सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने सड़क हादसों के घायलों के इलाज के लिए कैशलेस योजना लागू कर दी है। यह सराहनीय है कि बड़ी संख्या में घायलों को गोल्डन आवर में कैशलेस उपचार उपलब्ध होगा।

मगर, इसमें कुछ नियमों और खामियों के ऐसे ब्रेकर भी हैं, जो गंभीर गरीब मरीजों के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं। इस योजना के लिए कानूनी तौर पर संघर्ष करने वाले मानते हैं कि जब तक बीमा कंपनियों को कैशलेस इलाज की योजना में शामिल नहीं किया जाएगा, तब तक योजना का पूरा लाभ नहीं मिल सकता।

घायलों का कराया जाएगा कैशलेस इलाज

केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने मई, 2025 में योजना लागू की है कि देश की किसी भी श्रेणी की सड़क पर हादसा होने पर उसके घायलों को कैशलेस इलाज उपलब्ध कराया जाएगा। यह इलाज घायल के भर्ती होने के दिन से अधिकतम सात दिन में डेढ़ लाख रुपये तक उपलब्ध कराया जाएगा। योजना किस तरह से लागू होगी, इसे लेकर विस्तृत गाइडलाइन्स जारी की गई हैं।

उसी में कहा गया है कि सात दिन या डेढ़ लाख रुपये की सीमा पार होने के बाद मरीज के इलाज के खर्च की भरपाई बीमित वाहन से हादसे की परिस्थितियों में बीमा कंपनी द्वारा की जाएगी। यही बिंदु, प्रश्न खड़े करता है, क्योंकि वर्तमान में बीमा कंपनियां कैशलेस इलाज के लिए तुरंत भुगतान नहीं करती हैं। वे केवल तभी खर्च चुकाती हैं, जब मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के समक्ष दावा दाखिल किया जाए।

देश में बढ़ रही है हादसे में जान गंवाने वालों की संख्या

इसकी प्रक्रिया काफी लंबी और जटिल है, जिसमें कई बार वर्षों लग जाते हैं। ऐसे में गंभीर मरीज यदि गरीब है और सरकार की किसी अन्य योजना का पात्र नहीं है तो क्या वह बीमा कंपनी से भुगतान के लिए क्लेम की प्रतीक्षा करने की स्थिति में होगा? यह समस्या इसलिए भी बड़ी मानी जा रही है, क्योंकि देश में सड़क हादसों में जान गंवाने वालों की संख्या काफी बड़ी है। मंत्रालय का ताजा आंकड़ा वर्ष में पांच लाख सड़क हादसों का है, जिसमें करीब एक लाख 80 हजार लोगों की मौत हुई है।

इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हादसों में घायल मरीजों में गंभीर कितने होते होंगे। सुप्रीम कोर्ट में कैशलेस इलाज से जुड़ी अंतरिम याचिका दाखिल करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता केसी जैन का कहना है कि इस गंभीर स्थिति को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन प्रस्तुत किया गया है, जिसमें केंद्र सरकार को मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 162(1) के अंतर्गत बीमा कंपनियों द्वारा कैशलेस इलाज की योजना तैयार करने के लिए निर्देश देने का आग्रह किया गया है।

घायलों को मिल सकेगा कैशलेस इलाज

इस उपधारा के अनुसार, सरकार को यह अधिकार प्राप्त है कि वह सड़क दुर्घटना पीड़ितों के उपचार के लिए आवश्यक योजनाएं बनाए।

उनका कहना है कि यदि केंद्र सरकार बीमा कंपनियों को शामिल करते हुए एक स्पष्ट और बाध्यकारी योजना बनाती है तो न केवल 1,50,000 रुपये से अधिक राशि का उपचार संभव हो पाएगा, बल्कि दुर्घटना की तिथि से सात दिन के बाद भी घायलों को कैशलेस इलाज मिल सकेगा। केसी जैन ने बताया कि अगस्त, 2025 के अंत में सरकार को सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा भी दाखिल करना है, जिसमें यह बताना होगा कि योजना का कार्यान्वयन कैसे किया गया है।

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