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दलित लेखन की मौजूदा चुनौतियां और हिंदी साहित्य में उसका संघर्ष

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Jul 6, 2025


दलित साहित्य

इमेज स्रोत, Getty Images

इमेज कैप्शन, दलित साहित्य को बाज़ारवाद के साथ ही कई अन्य चुनौतियों का सामना करना पड़ता है (सांकेतिक तस्वीर)

भारतीय साहित्य में बहुत कम आंदोलन ऐसे रहे हैं जो दलित साहित्य जितने तीव्र, प्रभावशाली और ऐतिहासिक रूप से ज़रूरी साबित हुए हों.

दलित साहित्य की ख़ासियत यह है कि यह जातिगत अत्याचार झेलने वाले लोगों के अपने अनुभवों से उपजता है, इसलिए यह बेहद निजी और मौलिक होता है.

जहां मुख्यधारा का भारतीय साहित्य अक्सर ब्राह्मणवादी परंपराओं को अपनाता है, वहीं दलित साहित्य इन परंपराओं को चुनौती देता है. वह एक ऐसी विरोधाभासी कथा सामने लाता है जिसके केंद्र में वंचित समुदायों की ज़िंदगी और संघर्ष होते हैं.

भीतरी संघर्षों के साथ ही बाहरी उपेक्षाओं की दोहरी चुनौतियों से जूझता हुआ, आज हिंदी दलित साहित्य एक नाज़ुक मोड़ पर खड़ा है.

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