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संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन उपराष्ट्रपति के पद से जगदीप धनखड़ के इस्तीफ़े ने राजनीतिक हलकों में चर्चा शुरू कर दी है.
धनखड़ के इस्तीफ़े के फ़ैसले की टाइमिंग पर सवाल उठ रहे हैं.
उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को भेजे अपने इस्तीफ़े में अपनी ‘ख़राब सेहत’ का हवाला दिया था.
ये इस्तीफ़ा मानसून सत्र के पहले दिन दिया गया है और सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि मानसून सत्र के पहले दिन धनखड़ पूरी तरह सक्रिय दिखे.
उन्होंने मंगलवार के लिए राज्यसभा की बिजनेस एडवाइजरी कमेटी की मीटिंग का टाइम भी तय किया. फिर अचानक क्या हुआ कि उन्होंने इस्तीफ़े का एलान कर दिया.
सोमवार की रात को इस्तीफ़ा देने से पहले उन्होंने राज्यसभा की कार्यवाही की अध्यक्षता की.
पांच नए सांसदों को शपथ दिलाई और विपक्ष के उन सांसदों से भी मुलाक़ात की जो इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस यशवंत वर्मा के ख़िलाफ़ महाभियोग नोटिस जमा करने आए थे.
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कांग्रेस नेता जयराम रमेश का कहना है कि शाम पांच बजे तक वह उनके साथ थे और साढ़े सात बजे उनकी उनसे फोन पर बात हुई. उनका अचानक इस्तीफ़ा सिर्फ स्वास्थ्य कारणों तक सीमित नहीं लगता.
जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा, ”कल दोपहर साढ़े बारह बजे जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा की कार्य मंत्रणा समिति की अध्यक्षता की. इस बैठक में सदन के नेता जेपी नड्डा और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू समेत ज्यादातर सदस्य मौजूद थे. थोड़ी देर की चर्चा के बाद तय हुआ कि समिति की अगली बैठक शाम साढ़े चार बजे फिर से होगी. धनखड़ की अध्यक्षता में समिति के सदस्य दोबारा बैठक के लिए इकट्ठा हुए. सभी नड्डा और रिजिजू का इंतजार करते रहे, लेकिन वे नहीं आए.”
उन्होंने आगे लिखा, ”सबसे हैरानी की बात यह थी कि धनखड़ को व्यक्तिगत रूप से यह नहीं बताया गया कि दोनों मंत्री बैठक में नहीं आएंगे. स्वाभाविक रूप से उन्हें इस बात का बुरा लगा.”
जयराम ने लिखा, ”इससे साफ़ है कि कल दोपहर एक बजे से लेकर शाम साढ़े चार बजे के बीच जरूर कुछ गंभीर बात हुई है, जिसकी वजह से जेपी नड्डा और किरेन रिजिजू ने जानबूझकर शाम की बैठक में हिस्सा नहीं लिया.”
कुछ विपक्षी नेताओं का दावा है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस यशवंत वर्मा के ख़िलाफ़ महाभियोग नोटिस को मंजूर कर लेने की वजह से बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व उनसे नाराज़ था.
कांग्रेस के सांसद विवेक तन्खा ने न्यूज़ एजेंसी पीटीआई से बातचीत में कहा है, ”उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफ़ा वाकई चौंकाने वाला है.उन्होंने कल राज्यसभा की अध्यक्षता करते हुए अपना सामान्य खुशमिजाज व्यवहार ही दिखाया था. क्या उन्होंने जज यादव और वर्मा के ख़िलाफ़ दो महाभियोग प्रस्तावों को जिस सक्रियता से संभाला, वही आख़िरी वजह बन गया?”
जयराम रमेश ने सदन चलाने में धनखड़ की काबिलियत का ज़िक्र करते हुए कहा कि उन्होंने मौजूदा सरकार के दौर में भी जहां तक संभव हो सका, विपक्ष को जगह देने की कोशिश की तो शिवसेना (यूबीटी) की नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि, “यही वो उपराष्ट्रपति थे जिनके ख़िलाफ़ विपक्ष को पक्षपात करने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाना पड़ा था.”
राजनीतिक विश्लेषक क्या कहते हैं?
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वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अदिति फडणीस कहती हैं, ”दरअसल धनखड़ इन दिनों काफी मुखर होकर बोल रहे थे. हाल के दिनों में उन्होंने न्यायपालिका को लेकर जो कहा वो सरकार को रास नहीं आया. इसके अलावा भी कई और मुद्दे थे जिन पर सरकार और उनमें सहमति नहीं थी. लेकिन वो अपनी असहमति को लगातार सार्वजनिक तौर पर जाहिर कर रहे थे. सरकार को यह पसंद नहीं आया.”
इस साल अप्रैल में धनखड़ ने संविधान के अनुच्छेद 142 का हवाला देते हुए न्यायपालिका के बारे में सख़्त टिप्पणी की थी. उन्होंने कहा कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं.
सुप्रीम कोर्ट ने विधेयकों को मंज़ूरी देने के लिए राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए समय सीमा तय करने को कहा था. धनखड़ ने इसी संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के अधिकारों पर टिप्पणी की थी.
फडणीस कहती हैं, ”हाल में उन्होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस यशवंत वर्मा के बारे में भी खुलकर बोला वो भी सरकार को ठीक नहीं लगा.”
इस साल 14 मार्च की रात दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास के स्टोर रूम में आग लगी थी. वहां कथित तौर पर करोड़ो के नोट जले पाए गए. इसके बाद जस्टिस वर्मा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जाने लगे थे.
अदिति फडणीस कहती हैं कि भले ही धनखड़ का रवैया सरकार समर्थक का रहा हो लेकिन उन्होंने कई मौकों पर कुछ ऐसा कहा कि नाराजगी बढ़ती गई. उन्होंने पिछले दिनों कोटा और वहां की कोचिंग इंडस्ट्री के बारे में काफी कुछ कहा था. जबकि ये मालूम होना चाहिए कि कोटा लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला की संसदीय सीट है.
फडणीस कहती हैं, ”और भी कई छोटी-छोटी वजहें हैं. उनके कार्यकाल में जितने सांसदों का निलंबन हुआ उतना किसी के कार्यकाल में नहीं हुआ. किसानों के आंदोलन को मुद्दों पर भी उन्होंने खुद को जाट का बेटा बताते हुआ जो बातें कहीं वो कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को बिल्कुल रास नहीं आईं.”
फडणीस कहती हैं कि एक बिंदु ऐसा आया होगा जब धनखड़ सरकार की बात सुनने को तैयार नहीं हुए होंगे और यहीं पर उन्होंने इस्तीफ़ा देने का मन बना लिया होगा.
सदन चलाने के तरीके से मतभेद?
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कुछ लोगों का ये भी कहना है कि सरकार इन दिनों इस बात से नाराज थी कि धनखड़ सदन को ठीक तरीके से नहीं चला पा रहे हैं. उनके रहते विपक्ष सरकार पर लगातार हावी रहा है.
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक नीरजा चौधरी ने बीबीसी हिंदी से कहा,” हालांकि यह भी सही है कि वह एक पोलाराइज़िंग फ़िगर बन गए थे और खुलकर सनातन और संविधान की बात करते थे. उपराष्ट्रपति के तौर पर उनका कार्यकाल विपक्ष के साथ बहुत अच्छा नहीं रहा. संभव है कि मौजूदा हालात में सदन चलाने के उनके तरीक़े को लेकर सत्ता पक्ष के शीर्ष नेतृत्व से भी उनका मतभेद हुआ हो.”
वहीं वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई का कहना है कि अगर सेहत की वजह से ही इस्तीफ़ा देना था तो संसद का सत्र शुरू होने से एक-दो दिन पहले ही इस्तीफ़ा हो जाता. वो अचानक हुए इस इस्तीफ़े को संघ और बीजेपी के संबंधों साथ ही नए अध्यक्ष को लेकर चल रहे घटनाक्रम से जोड़ते हैं.
वो कहते हैं, “धनखड़ साहब की तबीयत ख़राब हो सकती है और उनकी इस निजता का सम्मान भी किया जाना चाहिए. लेकिन राजनीति में ऐसे मुद्दों पर कयास लगाए जाते हैं. बीजेपी में लंबे समय से कोई नया अध्यक्ष नहीं बना है. ऐसे में क्या उनके इस्तीफ़े का इससे कोई संबंध हो सकता है?”
रशीद किदवई कहते हैं, “क्या यह किसी को उपराष्ट्रपति बनाकर संतुलन बनाने की कोशिश है, क्योंकि यह एक बड़ा पद होता है. हालांकि यह सब जेपी नड्डा के लिए नहीं किया गया होगा. लेकिन घटनाक्रम जिस तेज़ी से बदले हैं, कुछ बात तो ज़रूर है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित