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बिहार में लगातार हो रही अपराध की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं. बीती 4 जुलाई को पटना के बिजनेसमैन गोपाल खेमका की हत्या के बाद गुरुवार सुबह पटना के पारस अस्पताल में इलाज करा रहे एक क़ैदी की हत्या कर दी गई.
अकेले पटना शहर में 4 जुलाई से 17 जुलाई के बीच बालू कारोबारी, स्कूल संचालक और वकील की हत्या हुई है. इस बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी कह चुके हैं कि बिहार ‘क्राइम कैपिटल’ बनता जा रहा है.
पारस अस्पताल में हुई हत्या को बिहार पुलिस ‘दुर्दांत अपराधी की गैंगवार में हत्या’ कहकर ख़ुद का बचाव कर रही है. वहीं केंद्रीय मंत्री और जेडीयू सांसद ललन सिंह ने इसे ‘आपसी विवाद में हुई हत्या’ बताया.
बिहार में हाल के समय में हुई हत्याओं की चर्चा पटना के चौक चौराहों पर हो रही है.
इसकी बड़ी वजह है कि पारस हाई सेक्युरिटी अस्पताल है. यहां भर्ती मरीजों से मिलने के लिए परिजनों और दोस्तों को भी तय और कड़ी प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है.
क्या हुआ पारस अस्पताल में?
पटना के बड़े अस्पतालों में से एक पारस अस्पताल का कमरा नंबर 209 गुरुवार सुबह तक़रीबन 7.15 बजे गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा.
पांच अपराधी पिस्टल लहराते हुए इस कमरे में घुसे और बहुत आराम से चंदन मिश्रा नाम के शख्स को गोली मारकर चलते बने. सज़ायाफ़्ता चंदन का ताल्लुक मूल रूप से बिहार के बक्सर से था.
अस्पताल में हुई घटना के सीसीटीवी फुटेज़ में अपराधियों के चेहरे पर कोई मास्क नहीं है. वो कमरे के बाहर पहुंचकर अपनी अपनी कमर से पिस्टल निकालते है, कमरे में घुसकर गोली मारते है और बिना किसी जल्दबाज़ी या घबराहट के चले जाते हैं.
इस घटना के बाद पटना एसएसपी कार्तिकेय शर्मा ने बताया, “चंदन मिश्रा सज़ायाफ़्ता क़ैदी है. वो पैरोल पर बाहर था. ऐसा लग रहा है कि बक्सर के गैंगवार या आपसी रंजिश में ये हत्या की गई है. पुलिस ने घटना में शामिल अपराधियों की पहचान कर ली है.”
पुलिस ने इस घटना के बाद अपराधियों को पकड़ने के लिए पटना शहर से सटे फुलवारीशरीफ़ के कई मोहल्लों और बक्सर में छापेमारी की है.
कौन है चंदन मिश्रा?
चंदन मिश्रा, बिहार के बक्सर ज़िले के सोनवर्षा के रहने वाले थे. बक्सर में उनका आतंक था.
बक्सर के ही रहने वाले आशुतोष कुमार बताते हैं, “ये 16 साल की उम्र में ही अपराधी बन गया था. चंदन और उसके दोस्त शेरू का गैंग ही चंदनशेरू गैंग कहलाया, लेकिन बाद में चंदन और शेरू में खटपट हो गई.”
बक्सर सदर के एसडीपीओ धीरज कुमार बताते हैं, ” चंदन का आपराधिक इतिहास था. बक्सर और आरा के थाने में उस पर 25 मामले दर्ज थे. जिसमें 7 मामले हत्या और आर्म्स एक्ट से जुड़े थे.”
साल 2011 में बक्सर के एक व्यापारी राजेन्द्र कुमार की हत्या के मामले में चंदन मिश्रा पटना के बेउर जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे थे.
इस घटना के बाद पारस अस्पताल पहुंचे चंदन मिश्रा के पिता श्रीकांत मिश्रा ने पुलिस सुरक्षा की मांग करते हुए बीबीसी से कहा, ” मुझे डर है कि मेरे इकलौते बेटे को मारा गया, मुझे भी मारा जा सकता है. प्रशासन अपराधी को पकड़े, इसी में हमें सुकून मिलेगा.”
पहले भी हुई है पटना के अस्पताल में हत्या
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चंदन मिश्रा हत्याकांड ने बिहार की राबड़ी देवी सरकार में मंत्री ब्रज बिहारी प्रसाद की हत्या की याद दिला दी है. उनकी पटना के आईजीआईएमएस हॉस्पिटल में हत्या कर दी गई थी.
साल 1998 में वो न्यायिक हिरासत में थे और आईजीआईएमएस में इलाज के लिए भर्ती हुए थे. इस हत्या का आरोप गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला पर था जिसकी बाद में यूपी एसटीएफ के साथ एक मुठभेड़ में मौत हो गई थी.
दरअसल 1990 के दशक में कई बाहुबली नेता भी राजनीति के मैदान में दिख रहे थे.
इस दौर में बिहार की कमान लालू प्रसाद यादव के हाथ में थी और विपक्षी दल आज भी लालू प्रसाद यादव पर आरोप लगाते हैं कि उन्होंने बिहार में अपराध पर नियंत्रण नहीं रखा.
अब यही आरोप लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और अन्य विपक्षी दल बीजेपी-जेडीयू गठबंधन और नीतीश कुमार पर लगा रहे हैं.
बिहार में हाल के दिनों में हुई बड़ी आपराधिक घटनाएं
बीती 4 जुलाई से 17 जुलाई के बीच बात करें तो केवल राजधानी पटना में ही बिजनेसमैन गोपाल खेमका, बालू कारोबारी रमाकांत, वकील जितेन्द्र महतो, स्कूल संचालक अजीत कुमार की हत्या हो गई.
स्थानीय ख़बरों के मुताबिक़ राज्य में बीते 15 दिनों में कम से कम 50 हत्याएं हुई हैं.
जबकि अकेले पटना में एक जुलाई से 16 जुलाई के बीच 14 हत्याएं हुई हैं.
बिहार में लगातार हो रही आपराधिक घटनाओं पर विपक्ष हमलावर है.
इस बीच राज्य में हो रहे अपराधों पर एडीजी (मुख्यालय) कुंदन कृष्णन का एक बयान काफ़ी चर्चा में है.
उन्होंने 16 जुलाई को एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा था, “अप्रैल, मई, जून में हत्याएं होती आई है. जब तक बरसात नहीं होती, हत्याओं का सिलसिला जारी रहता है क्योंकि किसानों को कोई काम नहीं होता. बरसात के बाद किसान व्यस्त हो जाते हैं. मीडिया के द्वारा हत्या पर हत्या चलाया जा रहा है और इस वक्त चुनाव भी हैं.”
एनडीए के साझेदार चिराग पासवान ने कुंदन कृष्णन के बयान को ‘निंदनीय और दुर्भाग्यपूर्ण’ बताते हुए बिहार की गिरती कानून व्यवस्था को ‘गंभीर चिंता’ का विषय बताया है.
वहीं तेजस्वी यादव ने कहा, “पूरा लॉ एंड आर्डर का डिसआर्डर हो गया है. बिहार पुलिस छुट्टी ले ले, जो कहती है कि मौसम के हिसाब से अपराध होते हैं.”
इन सबके बीच आंकड़ों के आईने में देखें तो राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की साल 2022 में अंतिम प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक़, साल 2006 से 2022 तक के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में 53,057 हत्याएं हुई.
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव कुछ दिनों पहले तक बिहार का क्राइम बुलेटिन जारी करते रहे हैं, उनका दावा है कि नीतीश कुमार के बीस वर्षों के शासन काल में 60 हज़ार हत्याएं और 25 हज़ार से ज्यादा बलात्कार हुए हैं.
तेजस्वी के इन दावों पर जेडीयू प्रवक्ता पूजा पैट्रिक ने बीबीसी से कहा, “हमारे वक़्त में अपराध की दर घटी है. जब लालू जी का शासनकाल था तो आबादी उतनी नहीं थी, अब आबादी बढ़ी है. उनके वक्त क्राइम रेट ज्यादा था लेकिन अब वो घटा है.”
‘आंकड़ों से ज्यादा परसेप्शन महत्वपूर्ण’
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आंकड़ों के इस खेल के बीच बिहार के पूर्व डीजीपी अभ्यानंद बीबीसी से कहते हैं, “मैंने अपने पूरे पुलिसिंग करियर में आंकड़ों को बहुत महत्व नहीं दिया. मुझे लगता है कि पब्लिक परसेप्शन सबसे महत्वपूर्ण चीज है. अगर एक आम बिहारी को लगता है कि वो सुरक्षित है तो कानून व्यवस्था ठीक है. अगर ऐसा नहीं लगता तो ठीक इसके उलट कानून व्यवस्था ख़राब है”
साल 2005 में जब नीतीश कुमार ने सत्ता संभाली तो आर्म्स एक्ट, स्पीडी ट्रायल के जरिए अपराध खासतौर पर संगठित अपराध पर नियंत्रण पाया था.
किताब ‘पटना डायरी’ की लेखिका और सीपीआई से जुड़ी वरिष्ठ नेता निवेदिता झा कहती हैं, “अस्पताल में घुसकर इस तरह किसी को मारा जाना भयावह है. ये दिखाता है कि अपराधियों के हौसले बढ़े हुए हैं और हमारी सरकार – पुलिस व्यवस्था सब फेल है.”
बिहार पुलिस ने ‘कांट्रैक्ट किलर’ सेल बनाने की घोषणा की है, ताकि बढ़ती कांट्रैक्ट किलिंग या सुपारी किलिंग पर काबू पाया जा सके.
तलाश पत्रिका की संपादक और पटना हाईकोर्ट की डिप्टी रजिस्ट्रार रही मीरा दत्त कहती हैं, “राज्य में अपराध की संस्कृति बढ़ी है. बेरोजगारी, प्रशासनिक भ्रष्टाचार और कोर्ट में लंबे समय तक मामले लंबित रहने की वजह से अपराध बढ़ा है. चूंकि हमारे नेता ही छोटे अपराधियों को शह देते हैं जिससे पॉलिटिकल एक्सेपटेंस भी बढ़ा है. हम लोगों को देखना चाहिए कि शूटर्स की जाति क्या है?”
स्पष्ट है कि फ़िलहाल बिहार में जाति, राजनीति, राजनीति में अपराध और अपराध के महीन धागे बहुत उलझे हुए नज़र आ रहे हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित