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पंजाब पुलिस ने भारतीय मूल के ब्रिटिश नागरिक, मशहूर धावक फौजा सिंह को टक्कर मारने वाली गाड़ी की पहचान कर ड्राइवर को गिरफ़्तार कर लिया है.
परिवार के अनुसार, 114 साल के फौजा सिंह सोमवार को जालंधर-पठानकोट राष्ट्रीय राजमार्ग के दूसरी ओर एक ढाबे की ओर जा रहे थे, तभी एक वाहन ने उन्हें टक्कर मार दी.
परिवार ने बताया, “फौजा सिंह को अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन कुछ समय बाद ही उनकी मौत हो गई.”
पुलिस ने इस संबध में एक एफ़आईआर दर्ज कर पड़ताल शुरू की थी.
पुलिस ने बताया कि इस संबंध में 26 साल के अमृतपाल सिंह ढिल्लों को गिरफ़्तार किया गया है और उनकी गाड़ी को ज़ब्त कर लिया है. अमृतपाल जालंधर के दासूपुर गांव के रहने वाले हैं.
पुलिस के अनुसार, अमृतपाल सिंह ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि घटना के समय वह भोगपुर से किशनगढ़ जा रहे थे और उस समय गाड़ी में अकेले थे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान समेत कई नेताओं ने फौजा सिंह के निधन पर दुख व्यक्त किया है.
पीएम मोदी ने एक्स पर लिखा, “फौजा सिंह असाधारण व्यक्ति थे, जिन्होंने अपने विशिष्ट व्यक्तित्व से और फ़िटनेस जैसे अहम विषय पर भारत के युवाओं को प्रेरित किया…मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और दुनिया भर में उनके अनगिनत प्रशंसकों के साथ हैं.”
दुनिया के सबसे बुज़ुर्ग धावक
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उम्र की कई श्रेणियों में मैराथन दौड़ कर कई रिकॉर्ड बनाने वाले फौजा सिंह एक ग्लोबल आइकन थे. 2000 से 2013 के बीच उन्होंने कई मैराथन प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया.
उनके रनिंग क्लब और स्वयंसेवी संस्था ‘सिख्स इन द सिटी’ ने कहा कि ईस्ट लंदन में वो अपने अगले कार्यक्रम को फौजा सिंह के जीवन और उपलब्धियों के लिए समर्पित करेगी. फौजा सिंह यहां 1992 से ही रह रहे थे.
बीते जून में जब बीबीसी पंजाबी ने फौजा सिंह के पैतृक गांव में उनसे मुलाक़ात की थी, वह काफ़ी बुज़ुर्ग लग रहे थे लेकिन सक्रिय थे और हर दिन कई किलोमीटर पैदल चलते थे.
तब उन्होंने कहा था, “अपने पैरों को मजबूत बनाए रखने के लिए मैं पूरे गांव का चक्कर लगाता हूं. व्यक्ति को अपने शरीर का ख़्याल खुद रखना होता है.”
2012 लंदन ओलंपिक के टॉर्च बियरर रहे फौजा सिंह ने अपने करियर में कई उपलब्धियां हासिल की थीं.
साल 2011 में टोरंटो में हुई मैराथन को पूरा करने वाले 100 साल की उम्र के वे दुनिया के पहले धावक थे.
हालांकि दुनिया के सबसे बुज़ुर्ग धावक होने के उनके दावे को गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने स्वीकार नहीं किया क्योंकि वह साल 1911 का जन्म प्रमाणपत्र नहीं दे सके थे.
उस समय बीबीसी ने रिपोर्ट किया था कि उनके ब्रिटिश पासपोर्ट में उनकी जन्मतिथि एक अप्रैल 1911 लिखी है, साथ ही उनके 100वें जन्मदिन पर उन्हें क्वीन की ओर से बधाई पत्र भी मिला था.
उनके कोच रहे हरमंदर सिंह ने कहा कि ‘जब फौजा सिंह पैदा हुआ थे, उस समय भारत में जन्म प्रमाण पत्र नहीं बनाया जाता था.’
गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के अधिकारियों ने कहा कि रिकॉर्ड उनके नाम करने से उन्हें कोई आपत्ति नहीं है लेकिन यह तभी हो सकता है जब उस साल का जन्म प्रमाणपत्र जमा कराया जाए.
खेतों से मैराथन तक का सफ़र
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बचपन में फौजा सिंह के पैर बहुत कमज़ोर थे और वो ठीक से चल नहीं पाते थे. तब गांव के लोग उनका मज़ाक उड़ाते थे. उम्र के 40 साल के पड़ाव तक वह गांव में खेती किसानी करते थे. उन्होंने दोनों विश्वयुद्ध के उतार चढ़ाव और विभाजन के दंगें देखे थे.
फौजा सिंह ने बीबीसी पंजाबी को बताया था, “नौजवानी के समय मुझे मैराथन के बारे में बिल्कुल पता नहीं था. मैं कभी स्कूल नहीं गया, ना ही बचपन में किसी खेल में शामिल रहा. मैं एक किसान था और ज़्यादातर अपना समय खेतों पर बिताता था.”
फौजा सिंह ने दुख से ध्यान हटाने के लिए दौड़ना शुरू किया.
1990 के दशक में पत्नी ज्ञान कौर के देहांत के बाद वह अपने बड़े बेटे सुखजिंदर के साथ रहने के लिए लंदन चले गए. लेकिन वह भारत लौटे उसी दौरान उनके छोटे बेटे कुलदीप की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई और इस घटना से वह टूट गए.
इसका उन्हें ऐसा सदमा लगा कि जहां बेटे का अंतिम संस्कार हुआ था, वहां वो घंटों बैठे रहते थे. चिंतित परिजनों ने उनके परिवार से उन्हें लंदन ले जाने की सलाह दी.
लंदन के इलफ़ोर्ड में रहते हुए फौजा सिंह को एक बार गुरुद्वारे में कुछ बुज़ुर्ग लोग मिले जो एक साथ दौड़ने जाया करते थे. उनकी मुलाक़ात हरमंदर सिंह से भी हुई जो बाद में चलकर उनके कोच बने.
जून में फौजा सिंह ने बीबीसी पंजाबी को बताया था, “अगर मैं हरमंदर सिंह से न मिला होता तो मैं मैराथन में हिस्सा नहीं ले पाता.”
फौजा सिंह ने 89 साल की उम्र में साल 2000 में लंदन में पहली बार मैराथन में हिस्सा लिया.
उन्होंने गोल्डन बॉन्ड के ज़रिए हिस्सा लिया. ये एक ऐसा सिस्टम है जिसमें स्वयंसेवी संस्थाएं फ़ीस देकर पहले ही कुछ स्थान ख़रीद लेती हैं.
शिशुओं की मदद करने वाली एक संस्था ‘ब्लिस’ की ओर से फौजा सिंह दौड़े. इसका शीर्षक दिया गया, “सबसे युवा लोगों के लिए दौड़ता सबसे बुज़ुर्ग! वे भी उतनी ही लंबी उम्र जिएं जितना वो जिए.”
धावक के रूप में एक नई ज़िंदगी
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फौजा सिंह ने बताया कि दौड़ से पहले आयोजकों ने उनसे कहा था कि वह पगड़ी की बजाय सिर्फ पटका पहन सकते हैं. हालांकि बाद में आयोजक पगड़ी की इजाज़त देने को तैयार हो गए.
यह दौड़ उन्होंने छह घंटे 54 मिनट में पूरी की. धावक के रूप में यह उनकी नई ज़िंदगी की शुरुआत थी. लंदन मैराथन में लगातार तीसरी बार दौड़ते हुए उन्होंने पहले के मुकाबले नौ मिनट बचाए.
लेकिन साल 2003 में टोरंटो वॉटरफ़्रंट मैराथन में उन्होंने चौंकाते हुए यह दौड़ पांच घंटा 40 मिनट में पूरी कर ली.
उन्होंने बताया, “लंदन में रहते हुए मुझे चढ़ाई पर दौड़ना होता था और इसी वजह से सुधार होता गया. लंदन में ट्रेनिंग सेशन के बाद हर बार मैं गुरुद्वारा जाता था जहां मुझे लोग प्रोत्साहित करते थे और मेरी खुराक का ख्याल रखते थे.”
फौजा सिंह साल 2004 तब सुर्खियों में आए जब एडिडास ने उन्हें अपने विज्ञापन ‘इम्पॉसिबल इज नथिंग’ के लिए साइन किया. इसमें मशहूर बॉक्सर मोहम्मद अली भी थे.
साल 2005 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने लाहौर मैराथन के उद्घाटन के लिए फौजा सिंह को आमंत्रित किया. साल 2006 में क्वीन एलिज़ाबेथ द्वितीय ने उन्हें बकिंघम पैलस में विशेष न्योता दिया.
पंजाब में उनके पैतृक गांव के घर में लगे बहुत मेडल्स और सर्टिफ़िकेट में क्वीन के साथ लगी तस्वीर भी है.
लंबी उम्र का राज़
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100 साल की उम्र में मैराथन में हिस्सा लेने के बाद उनकी प्रसिद्धि ‘टर्बंड टोर्नैडो’ के रूप में हो गई. विज्ञापनों से मिला अधिकांश पैसा उनकी स्वयंसेवी संस्था को जाता था.
उन्होंने बताया था, “दौड़ की दुनिया में प्रवेश करने से पहले मैं वही फौजा सिंह था, लेकिन दौड़ ने मुझे ज़िंदगी का एक मिशन दिया और दुनिया में एक पहचान दी.”
साल 2013 में उन्होंने हांग कांग में हुई लंबी दौड़ की प्रतियोगिता में अंतिम बार हिस्सा लिया, जिसमें उन्होंने 10 किलोमीटर की दूरी एक घंटा, 32 मिनट और 28 सेकेंड में पूरी की.
उन्होंने सामान्य दिनचर्या और अनुशासित खुराक़ को अपनी सेहत और लंबी उम्र का राज़ बताया था.
उन्होंने कहा था, “कम खाना, अधिक दौड़ना और ख़ुश रहना- मेरी लंबी उम्र का यही राज़ है. सबको यही मेरा संदेश है.”
उम्र के आखिरी पड़ाव में वह भारत और ब्रिटेन दोनों जगह रहने लगे थे. जून में बीबीसी से मुलाक़ात के दौरान वह लंदन जाने की सोच रहे थे.
(अतिरिक्त रिपोर्टिंग प्रदीप शर्मा)
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित