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बिहार के पूर्णिया में ‘डायन’ बताकर एक ही परिवार की तीन महिलाओं और दो पुरुषों को ज़िंदा जलाकर मार देने का मामला सामने आया है.
ये घटना पूर्णिया के राज रानीगंज पंचायत के टेटगामा टोले में सोमवार की सुबह हुई. मंगलवार दोपहर जब बीबीसी की टीम वहां पहुंची तो टोले में वीरानी पसरी थी.
टेटगामा टोले में घुसते ही कच्ची-पक्की सड़क के दाईं तरफ एक ख़ाली जगह को मीडिया के कैमरे और यूट्यूबर्स के मोबाइल कैप्चर कर रहे थे.
यहां जली हुई लाल साड़ी और इंसानी बाल दिखाई दिए जो रविवार छह जुलाई की रात और सोमवार तड़के इस टोले में हुए अमानवीय कृत्य की गवाही दे रहे थे.
टोले में पुलिस की एक गाड़ी और दो सिपाही भी दिखाई देते हैं, जो हर आने जाने वाले की निगरानी कर रहे हैं.
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क़रीब 60 घरों वाले इस टोले में अब सिर्फ़ मृतक परिवार के परिजन बचे हैं और बाक़ी सभी टोले में रहने वाले फ़रार हैं.
इसकी वजह यह है कि इस पूरे टोले पर ही पांच लोगों को मारने और जलाने को लेकर एफ़आईआर दर्ज हुई है.
इस मामले में तीन दिन बीतने के बाद भी महज़ तीन गिरफ़्तारियां हुई हैं जबकि इस केस में 23 नामज़द अभियुक्तों पर और 150-200 अज्ञात लोगों पर एफ़आईआर दर्ज हुई है.
इस घटना के बाद अंधविश्वास से इतर बड़ा सवाल यह भी है कि पूर्णिया ज़िला मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर इस टोले में रातभर पांच लोगों के साथ मारपीट हुई, उन्हें जला दिया गया, लेकिन पुलिस को कोई ख़बर नहीं हुई.
इस मामले में पूर्णिया के ज़िलाधिकारी अंशुल कुमार और पुलिस अधीक्षक स्वीटी सहरावत, दोनों ने ही बीबीसी से बात करने से इनकार कर दिया.
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क्या है पूरा मामला?
‘डायन’ के नाम पर बीते रविवार को पूर्णिया के 75 साल की कातो, 65 साल के बाबू लाल उरांव, 60 साल की सीता देवी, 25 साल के मंजीत उरांव और 22 साल की रेखा देवी को कथित तौर पर ज़िंदा जलाकर मार दिया गया.
बाबू लाल उरांव और सीता देवी पति-पत्नी थे जबकि कातो, बाबू लाल उरांव की मां थीं. वहीं मंजीत उरांव बाबू लाल उरांव के बेटे थे, और रेखा देवी मंजीत की पत्नी थीं. ये सब एक ही परिवार के सदस्य थे और एक ही घर में रह रहे थे.
वैसे कातो के पांच बेटे थे – जगदीश उरांव, बाबू लाल उरांव, खूब लाल उरांव, अर्जुन उरांव और जितेन्द्र उरांव. बाबू लाल उरांव के अन्य भाई और उनका परिवार टोले में अलग-अलग घर में रहते हैं.
कातो, अपने बेटे-बहू बाबू लाल उरांव और सीता देवी के साथ रहती थीं. बाबू लाल-सीता देवी के भी चार बेटे हैं. लेकिन वे मंजीत उरांव और एक नाबालिग बेटे के साथ ही टोले में रहते थे. बाक़ी दो बेटे प्रवासी मज़दूर हैं. कातो के पति की मौत कई साल पहले हो चुकी है.
अब तक इस घटना की वजह कुछ दिन पहले हुई एक बच्चे की मौत के तौर पर सामने आई है.
पिछले दिनों टोले के ही रामदेव उरांव नाम के एक व्यक्ति के बच्चे की मौत हो गई थी. बच्चे की मौत के बाद रामदेव उरांव के भांजे की भी तबीयत बिगड़ी, जिसको ठीक करने का दबाव बाबू लाल उरांव के परिवार पर बनाया जा रहा था.
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टोले के लोगों को शक था कि बाबू लाल उरांव के परिवार ख़ासतौर पर उनकी मां कातो और पत्नी सीता देवी ने जादू-टोना किया है.
रिपोर्ट के मुताबिक़ इसी को लेकर रविवार देर शाम पहले, बाबू लाल उरांव के घर से कुछ दूरी पर स्थित बांस पट्टी (बांस के पेड़ों का समूह) में टोले और आसपास बसे उरांव जनजाति के लोगों की पंचायत हुई. इस पंचायत के बाद ही सैकड़ों की संख्या में लोगों ने बाबू लाल उरांव के घर पर हथियार, लाठी-डंडे लेकर हमला कर दिया.
घटना के बारे में बाबू लाल उरांव के भाई अर्जुन उरांव ने बीबीसी को बताया, ” रविवार को हम पूर्णिया से मज़दूरी करके साइकिल से लौटे तो देखा कि बाबू लाल के घर के पास सैकड़ों की संख्या में आदमी–औरत जुटे थे. उनके पास धारदार हथियार और लाठी डंडे थे. वे सब पीट रहे थे और बार बार ‘डायनिया’ कह रहे थे. हमने आकर मना किया तो उन लोगों ने हमको कहा कि तुम दूर हटो, वरना तुमको भी मार देंगे.”
“उन लोगों ने मुझको और मेरे अन्य भाई के परिवारों को हथियार के बल पर बंधक बना लिया था. उन लोगों ने मेरी मां और भाई के साथ मारपीट की और फिर घर से थोड़ी दूर ले जाकर पेट्रोल छिड़क कर आग लगा दी. बाक़ी घरवालों के साथ भी यही किया.”
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पुलिस को घटना की सूचना नाबालिग़ ने दी
इस घटना के बाद मृतक परिवार के परिजनों में डर इस क़दर था कि किसी ने भी पुलिस को सूचना नहीं दी.
इसकी वजह पूछने पर कातो के बेटे खूब लाल उरांव बताते हैं, “हम लोग बस अपने मां और भाई के परिवार को पिटता हुआ देख रहे थे. इन लोगों ने हमारे पीछे भी आदमी लगा दिया था और हम पुलिस को फ़ोन करने के लिए उठते थे तो ये लोग मार देने की धमकी देते थे. हम लोग क्या कर सकते थे?”
बीते रविवार–सोमवार की दरमियानी रात को हुई इस घटना की सूचना पुलिस को मिली बाबू लाल उरांव के नाबालिग़ बेटे से. 17 साल का ये लड़का, रविवार रात घर पर हुए हमले से किसी तरह बच गया था.
कातो की बहू रिंकी देवी बीबीसी को बताती हैं, “(बाबू लाल उरांव के नाबालिग़) बेटे को जब सब मारने लगे तो कुछ लोगों ने कहा कि ये बच्चा है, इसे छोड़ दो. वह अपनी जान बचाकर भागा तो हम लोगों ने उसे एक कमरे में बंद कर दिया. बाद में वह अपनी नानी के यहां गया और फिर थाने में सूचना दी. उसकी सूचना के बाद पुलिस यहां आई.”
सोमवार को बाबू लाल उरांव के नाबालिग़ बेटे ने अपने माता-पिता, भाई–भाभी और दादी की गुमशुदगी की सूचना थाने में दी, जिसके बाद डॉग स्क्वाड ने पांचों मृतकों के जले हुए शव पोखर से बरामद किए.
इस बीच इतनी संख्या बल में प्रशासनिक टीम और पुलिस को देखने के बाद टोले के साथ-साथ मृतकों के परिजन भी डर कर भाग गए. बाबू लाल के भाई अर्जुन उरांव कहते हैं, ” यहां हमारे पशु हैं तो आज (मंगलवार को) देखने आए हैं. हम लोग भी जब सोमवार को पुलिस आई तो डर कर भाग गए थे. पत्नी और बच्चों को बाहर भेज दिया है. यहां अभी डर लग रहा है.”
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‘बीमार हुए तो ओझा के पास ले जाते हैं’
क़रीब 60 घरवाले इस टोले में उरांव जनजाति के लोग रहते हैं. इनमें से ज़्यादातर अशिक्षित हैं. ये लोग अपना गुज़ारा मज़दूरी और खेती करके करते हैं. टोले में इक्के-दुक्के घर ही पक्के मकान हैं.
पूर्णिया शहर से महज़ 12 किलोमीटर की दूरी पर ये टोला है लेकिन यहां लोग आज भी बीमार पड़ने पर सबसे पहले ओझा का दरवाज़ा खटखटाते हैं. जबकि टोले से तक़रीबन ढाई किलोमीटर दूर ही रानी पतरा नाम की जगह पर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र है. इसके बाद पूर्णिया में सरकारी अस्पताल की सुविधाएं हैं.
बीमार होने पर क्या करते हैं? इस सवाल पर कातो देवी की बहू रिंकी देवी कहती हैं, ” सबसे पहले ओझा के पास लेकर जाते हैं और उसके बाद केस बिगड़ने पर अस्पताल जाते हैं.”
इस मामले में गिरफ़्तार मुख्य अभियुक्तों में से एक नकुल उरांव टेटगामा टोले में ही रहता है. वह मिट्टी काटने और ईंट भट्ठों को मिट्टी सप्लाई करने का काम करता है. घटना के बाद उसके घर पर भी ताला लटका हुआ है.
आर्थिक तौर पर संपन्न नकुल ओझा का भी काम करता है. नकुल से परिचित और आदिवासी एक्टिविस्ट विजय उरांव बताते हैं, “नकुल ओझा का काम करता था. कुछ दिन पहले जब टोले में रामदेव उरांव का बच्चा बीमार पड़ा तो उसने झाड़-फूंक किया लेकिन बच्चा मर गया. अब दूसरा बच्चा बीमार पड़ा तो उसने बाबू लाल के परिवार को डायन घोषित कर दिया. ऐसा नहीं है कि वह ये काम पैसे के लिए करता था, बल्कि वह ये काम अपना प्रभाव जमाने के लिए करता था.”
इस घटना के बाद पूर्णिया पुलिस की ओर से जारी बयान के मुताबिक़, “घटना के दिन मृतकों के साथ मारपीट की गई और उन्हें जलाकर, उनके शवों को ट्रैक्टर पर लादकर गांव से तीन किलोमीटर दूर पोखर में डाल दिया गया. इस मामले में दो मोबाइल, घटना में इस्तेमाल एक ट्रैक्टर, घटनास्थल से गैलन और पांच बोरे बरामद किए गए हैं. इस मामले में टोले के नकुल उरांव, छोटू उरांव और ट्रैक्टर के मालिक सनाउल को गिरफ़्तार कर लिया गया है. साथ ही एसआईटी का गठन किया गया है.”
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पूरा टोला फ़रार, परिजन डर के साए में
बीते सोमवार को टोले में पुलिस के आने के बाद से ही पूरा टोला ख़ाली पड़ा है.
कुछ घरों के दरवाजों में ताला लगा है लेकिन ज़्यादातर घरों में लोग दरवाज़ा खुला छोड़कर ही भाग गए हैं. टोले के लोग अपने जानवरों को भी साथ ले गए हैं.
फ़िलहाल सिर्फ़ पीड़ित परिवार के परिजनों के जानवर ही टोले में दिखते हैं. पीड़ित परिवार के परिजनों के अलावा गांव में सिर्फ़ दो बूढ़ी औरतें हैं. ये औरतें बात करने में हिचकिचाती हैं, लेकिन इनके घरवाले भी इन्हें अकेले ही इस टोले में छोड़कर चले गए हैं.
इनमें से एक रीना देवी कहती हैं, “हम लोगों को घटना के बारे में कुछ नहीं मालूम है. हम लोग बूढ़े आदमी हैं. खाना खाकर सो गए थे.”
लेकिन सारे टोले वाले कहां चले गए, इस सवाल पर वह हामी भरते हुए कहती हैं, “मेरी बहू भी चली गई है. बाक़ी हमको भी कुछ नहीं मालूम.”
इस घटना के बाद से ही पीड़ित परिवार के परिजन भी डर के साए में हैं. हालांकि टोले में सुरक्षा के नाम पर पुलिस की एक गाड़ी और दो जवान ही दिखे.
बाबू लाल उरांव के भाई खूब लाल उरांव कहते हैं, “दोपहर में तो यहां मीडिया का आना जाना लगा रहता है. लेकिन रात होने पर डर लगता है. हमारी दुश्मनी अब सारे गांव से हो गई है. वे लोग कह रहे हैं कि गवाही दोगे तो मार डाले जाओगे.”
इस टोले से बाहर निकलते ही लोग इस घटना पर बात करने से बचते हैं. इस रानीगंज पंचायत की पतली सड़कों पर बूढ़े-बुज़ुर्ग और बच्चे ही दिख रहे हैं जो कैमरा देखते ही बचने की कोशिश करते हैं.
घटना के बाद बाबू लाल उरांव के जीवित बचे बेटे की सुरक्षा भी अहम हो गई है.
पूर्णिया ज़िलाधिकारी अंशुल कुमार ने इस बारे में मीडिया के सामने कहा है, ” घटना की सूचना के बाद सोमवार को हम लोगों ने बॉडी रिकवर करके मेडिकल बोर्ड के सामने वीडियोग्राफ़ी करके पोस्टमार्टम करवाया है. परिजनों के सामने दाह संस्कार किया गया है. तीन की गिरफ़्तारी हुई है और बाक़ी सभी अभियुक्तों की गिरफ़्तारी के लिए छापेमारी की जा रही है. इस मामले में टोले के लोग ही संलिप्त थे, वे सभी फ़रार हैं. पीड़ित परिवार के नाबालिग़ बेटे को अभी प्रशासनिक सुरक्षा में रखा गया है.”
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‘डायन’ कहकर ऐसा क्यों किया गया?
क्या इस परिवार को पहले भी इस तरह से ‘डायन’ कहकर परेशान किया गया है? इसका कोई बहुत पुष्ट जवाब नहीं मिलता.
लेकिन बीबीसी से बातचीत में कातो देवी की बहू रिंकी देवी और बेटा अर्जुन उरांव कहते हैं, “क़रीब दस साल पहले ऐसा हुआ था. हम लोग कहते थे कि अगर कोई ऐसी बात है तो ओझा से चेक करा लो. ओझा से चेक कराया गया लेकिन कुछ नहीं निकला. अब दस साल बाद फिर से टोले वाले कहने लगे कि डायन है. लेकिन हम लोगों को कुछ मालूम नहीं.”
यहां ये भी अहम सवाल है कि आमतौर पर डायन कुप्रथा में सिर्फ़ महिलाओं को ही नुक़सान पहुंचाया जाता है. लेकिन इस मामले में परिवार के अधिकतर लोगों की हत्या कर दी गई.
क्या किसी तरह का कोई विवाद था, इस सवाल पर बाबू लाल उरांव के भाई अर्जुन उरांव कहते हैं, “हम लोगों का कोई विवाद नहीं था. क्यों इस तरह का प्लान बनाया, इसका हमें मालूम नहीं.”
डायन कुप्रथा पर काम कर रहीं संतोष शर्मा कहती हैं, “ये हम सभी ग्राउंड पर काम करने वालों के लिए अहम सवाल है कि पूरे परिवार को टारगेट क्यों किया गया. डायन कुप्रथा के मामलों में कई सामाजिक-आर्थिक या संपत्ति वजह होती है लेकिन इस मामले में अभी तक कोई ठोस वजह सामने नहीं आ पाई है, साथ ही पूरे परिवार को जला देने की वजह समझ से परे है.”
पिंकी रानी हंसदा पूर्णिया में एससी/एसटी कर्मचारी संघ की संयुक्त सचिव हैं. वह कहती हैं, “अशिक्षा के कारण आदिवासी बीमार होने पर ओझा के पास चले जाते है. शिक्षा ही उन्हें सही रास्ते पर ला सकती है.”
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भारत में डायन कुप्रथा
भारत के कई राज्यों में महिलाओं को ‘डायन’ बताकर उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है. महिलाओं को ज़िंदा जलाने, मल खिलाने, बाल काटने और कपड़े उतारकर घुमाने जैसी भयावह घटनाएं रिपोर्ट होती रहती हैं.
झारखंड, असम, राजस्थान, ओडिशा, छत्तीसगढ़, बिहार सहित कई राज्यों में ये कुप्रथा प्रचलित है. बिहार देश का पहला राज्य है जहां 1999 में डायन कुप्रथा को लेकर क़ानून था.
साल 2023 में निरंतर नाम की संस्था ने बिहार के 10 ज़िलों में 118 गांव की 145 सर्वाइवर महिलाओं के बीच सर्वे किया था. इनमें से 97 फ़ीसदी सर्वाइवर महिलाएं पिछड़ी, अति पिछड़ी और दलित समुदाय की थीं.
बिहार में महिलाओं के बीच काम करने वाले संगठन बिहार महिला समाज ने इस मामले के सामने आने के बाद कहा है कि संगठन अपना एक जांच दल 10 जुलाई को पूर्णिया भेजेगा और इस मामले के ख़िलाफ़ पूरे बिहार में आंदोलन करेगा.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक़ देश भर में 85 लोगों की हत्याएं डायन कुप्रथा की वजह से हुई हैं.
वहीं झारखंड में डायन कुप्रथा के ख़िलाफ़ काम कर रही संस्था एसोसिएशन फॉर सोशल एंड ह्यूमन अवेयरनेस के संस्थापक अजय कुमार जायसवाल बताते हैं, ” बीते 26 साल में झारखंड में 1800 महिलाएं मार दी गईं जिनमें 90 फ़ीसदी आदिवासी हैं. डायन कुप्रथा के ज़्यादातर मामलों में एक-दो व्यक्ति को पुलिस पकड़ती है और एक बड़ा समूह बचकर निकल जाता है. इन मामलों में क़ानून तभी प्रभावी होगा, जब सभी उत्तरदायी लोगों को सज़ा मिलेगी.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.