भारतीय न्यायालयों में 5.29 करोड़ मामले लंबित हैं जिनमें से अधिकांश जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में हैं। उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में भी बड़ी संख्या में मामले लंबित हैं। लंबित मामलों को कम करने के लिए उच्च न्यायालयों और जिला न्यायालयों में बकाया समितियां बनाई गई हैं। सरकार न्यायाधीशों की नियुक्ति और फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना जैसे कदम उठा रही है।
आईएएनएस, नई दिल्ली। भारतीय न्यायालयों पर 5.29 करोड़ लंबित मामलों का भारी बोझ है, जो 21 जुलाई तक के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड (एनजेडीजी) पर उपलब्ध है।
इनमें से 4.65 करोड़ मामले जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में लंबित हैं, जबकि उच्च न्यायालयों में 63.30 लाख मामले और सर्वोच्च न्यायालय में 86,742 मामले लंबित हैं।
लंबित मामलों के बढ़ते बोझ के अलावा जिला और अधीनस्थ न्यायालयों को पूर्ण क्षमता से काम करने में भी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। न्याय और कानून मंत्रालय के अनुसार, 21 जुलाई, 2015 तक स्वीकृत 25,843 न्यायिक अधिकारियों की संख्या के मुकाबले निचले न्यायालयों में केवल 21,122 अधिकारी कार्यरत हैं।
बनाई गई समितियां
बैकलाग को कम करने के उपाय के रूप में सभी 25 उच्च न्यायालयों में पांच साल से अधिक समय से लंबित मामलों को निपटाने के लिए बकाया समितियां बनाई गई हैं। ऐसी बकाया समितियां अब जिला न्यायालयों के तहत भी स्थापित की गई हैं।
कानून और न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल ने हाल ही में संसद में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में रिक्तियों को भरने के लिए उठाए गए सरकारी कदमों की जानकारी साझा की।
मेघवाल का बयान
मेघवाल ने कहा, ”एक मई 2014 से 21 जुलाई 2025 तक सर्वोच्च न्यायालय में 70 न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई है। इसी अवधि में 1,058 नए न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई और 794 अतिरिक्त न्यायाधीशों को उच्च न्यायालयों में स्थायी बनाया। उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या मई 2014 में 906 से बढ़कर वर्तमान में 1,122 हो गई है।”
सांसदों व विधायकों के मामले निपटाने को 10 विशेष अदालतें
नौ राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में 10 विशेष न्यायालय हैं जो सांसदों और विधायकों जैसे निर्वाचित प्रतिनिधियों से संबंधित आपराधिक मामलों को तेजी से निपटाने के लिए स्थापित किए गए हैं।
ये न्यायालय 2017 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सांसदों/विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के लिए विशेष न्यायालय स्थापित करने के निर्देश के बाद बनाए गए थे, जो फास्ट ट्रैक कोर्ट (एफटीसी) के समान हैं।
कितने फास्ट ट्रैक कोर्ट हैं कार्यरत
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्टों को इन मामलों की प्रगति की निगरानी के लिए स्वत: संज्ञान में मामला दर्ज करने का निर्देश दिया। मृत्युदंड या आजीवन कारावास वाले दंडनीय आपराधिक मामले सूची में सबसे ऊपर होने चाहिए। इसके बाद पांच वर्ष या उससे अधिक की सजा वाले आपराधिक मामले और अन्य मामले आते हैं। जून 2025 तक देशभर में कुल 865 फास्ट ट्रैक कोर्ट कार्यरत हैं।