अंडमान के समुद्री क्षेत्र में तेल और गैस की खोज से भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने की उम्मीदें बढ़ गई हैं। पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने इसे भारत के पेट्रोलियम सेक्टर के लिए गेम-चेंजर बताया है। ओएनजीसी और ऑयल इंडिया लिमिटेड पिछले दस वर्षों से यहां खोज कर रही हैं और सकारात्मक संकेत मिले हैं।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। अस्सी के दशक में मुंबई हाई में कच्चे तेल की खोज तो 21वीं सदी की शुरुआत में कृष्णा गोदावरी (केजी) बेसिन में प्राकृतिक गैस की खोज ने यह उम्मीद जताई थी कि ऊर्जा जरूरतों के लिए विदेशों पर भारत की निर्भरता कम हो जाएगी।
देश की बढ़ती मांग और इन फील्डों में उम्मीद से काफी कम तेल व गैस उत्खनन ने इन उम्मीदों पर पानी फेर दिया। ऐसे में भारत के पेट्रोलियम मानचित्र में एक नया क्षेत्र नई संभावनाओं के साथ उभर कर सामने आ रहा है, जिसको लेकर समूचा हाइड्रोकार्बन क्षेत्र में उत्साह है।
यह क्षेत्र अंडमान का समुद्री क्षेत्र है जिसके बारे में हाल ही में पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा था कि जिस तरह से कैरिबयन सागर में स्थित देश गुयाना में नये तेल भंडारों की खोज ने पूरी तस्वीर बदल दी है, वैसा ही अंडमान क्षेत्र में होने वाला है जो भारत के पेट्रोलियम सेक्टर को पूरी तरह से बदल देगा।
अंडमान में हो रही खोज
दैनिक जागरण ने इस बारे में पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रालय और देश की सबसे बड़ी तेल खोज व उत्खनन कंपनी ओएनजीसी के वरिष्ठ अधिकारियों से बात की और सभी पेट्रोलियम मंत्री पुरी की भविष्यवाणी को वाजिब मानते हैं।
पेट्रोलियम मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है, “अंडमान में कुछ खोज हो चुकी है और हमें पुरा भरोसा है कि भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने और आयात पर निर्भरता कम करने में गेम-चेंजर साबित होने वाला है।”
अंडमान बेसिन बंगाल की खाड़ी के दक्षिण पूर्वी क्षेत्र में स्थित अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में 2.49 लाख वर्ग किलोमीटर के विशाल तलछटी बेसिन का हिस्सा है। पेट्रोलियम मंत्रालय इस समूचे बेसिन के 87 फीसद हिस्से में पेट्रोलियम उत्पादों की खोज के लिए इस्तेमाल करने जा रही है, जो अभी तक का रिकार्ड है।
10 सालों से हो रही खोज
सरकारी क्षेत्र की ओएनजीसी और ऑयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल) अंडमान सागर में पिछले दस वर्षों से गहन खोज कार्य कर रहे हैं और इनके अभी तक के अनुभव को देख कर ही इस क्षेत्र को लेकर उम्मीदें बढ़ी हैं।
इन कंपनियों का अध्ययन रिकार्ड बताता है कि मध्य व दक्षिणी अंडमान के बाराटांग क्षेत्र में तेल व गैस के बहुत ही विशाल भंडार हो सकते हैं। इन कंपनियों की तरफ से हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय (डीजीएच) को सौंपी गई रिपोर्टें बताती हैं कि यहां वाणिज्यिक उत्पादन की मजबूत संभावना है।
ओएनजीसी की तरफ से बताया गया है कि उसने ओपन एकरेज लाइसेंसिंग पॉलिसी (ओएएलपी) के छठे दौर में इस क्षेत्र में जो ब्लॉक मिला था उसकी बहुत ही गहराई में ड्रिलिंग की जा रही है।
कितनी गहरी है ड्रिलिंग
वहीं ओआइएल को उथले पानी में जो दो ब्लॉक मिले थे, उसको लेकर भी वह काफी आशान्वित है। वहां कंपनी ने जो पहली ड्रिलिंग की उससे मिले सकारात्मक संकेत को देखते हुए अब तीन और ड्रिलिंग करने की योजना है। ज्यादातर ड्रिलिंग 2300 मीटर से ज्यादा गहरी है।
ओएनजीसी के अधिकारियों ने बताया कि कुछ संभावना स्थल पर 5000 मीटर से ज्यादा गहरी ड्रिलिंग हो रही है। ओएनजीसी ने फ्रांस की टोटल एनर्जी के साथ गठबंधन वर्ष 2023 में किया था और अब दोनों मिल कर अंडमान बेसिन के गहरे इलाकों में खोज करने की तैयारी कर रही हैं।
अभी सार्वजनिक तौर पर कुछ इसलिए नहीं बताया जा रहा है कि ओएनजीसी इस क्षेत्र में वर्ष 2013-14 में बड़ा धोखा खा चुकी है। तब छह कुओं में वाणिज्यिक स्तर पर ड्रिलिंग करने के बावजूद कोई सफलता नहीं मिली थी।
लगातार बढ़ रही ईंधन की मांग
कंपनियों के लिए अंडमान में पेट्रोलियम उत्पादों की खोज करना काफी महंगा सौदा भी है। समुद्री इलाको में एक तेल कुआं खोदने की लागत 10 करोड़ डॉलर से ज्यादा की आती है जबकि जमीन पर यह लागत सिर्फ 40 लाख डॉलर है।
सनद रहे कि भारत का कच्चा तेल उत्पादन स्थिर है, जो 2024-25 में 28.7 मिलियन मीट्रिक टन रहा, जबकि ईंधन की मांग लगातार बढ़ रही है। पिछले एक दशक में पेट्रोलियम उत्पादों के आयात पर भारत की निर्भरता 75 फीसद से बढ़ कर 86 फीसद हो चुकी है।