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भोपाल के कोलार इलाक़े में एक ज़मीन को लेकर विवाद गहरा होता जा रहा है.
सरकारी रिकॉर्ड में इसके क़ब्रिस्तान की ज़मीन होने का दावा किया गया है, लेकिन बीते दिनों इस ज़मीन पर गोशाला बनाने की कोशिश की गई.
22 जून को इसके लिए भोपाल निवासी अश्वनी श्रीवास्तव ने बीजेपी विधायक रामेश्वर शर्मा को बुलाकर गोशाला निर्माण के लिए भूमि पूजन का आयोजन भी कराया.
इसके बाद मुस्लिम समुदाय ने गोशाला निर्माण और भूमि पूजन का विरोध जताते हुए वक़्फ़ संपत्ति पर कब्ज़े का आरोप लगाया है.
कोलार के एसडीएम आदित्य जैन ने बीबीसी से कहा, “एक भूमि पर गोशाला का निर्माण किया जा रहा था. इसी पर दूसरा पक्ष यह क्लेम कर रहा था कि इस पर क़ब्रिस्तान है. फ़िलहाल हमने हर तरह के काम पर रोक लगाकर एक जाँच समिति बनाई है. रेवेन्यू रिकॉर्ड्स की जाँच की जाएगी कि यह ज़मीन क़ब्रिस्तान कब दर्ज हुई और उसका क्या इतिहास रहा है. इसके बाद जो भी रिपोर्ट आएगी, उसके हिसाब से काम किया जाएगा.”
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क्या यह ज़मीन क़ब्रिस्तान की ही है और अगर ऐसा है, तो भोपाल में इस ज़मीन पर गोशाला क्यों बनवाई जा रही है और इस मुहिम के पीछे कौन है?
बीबीसी की टीम इन सवालों के जवाब तलाशने के लिए जब ग्राउंड पर पहुँची, तो सबसे पहले मुलाक़ात हुई कोलार क़ब्रिस्तान समिति के अध्यक्ष मोहम्मद हनीफ़ से.
क़ब्रिस्तान समिति का क्या कहना है?
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भोपाल का कोलार इलाक़ा अब छह लेन सड़कों और ऊँची इमारतों के साथ शहर की रफ़्तार में शामिल हो चुका है. इसके एक कोने में है अकबरपुर, जो पहले एक गाँव हुआ करता था.
घरों की इस कतार के ठीक सामने एक पतली सड़क है. नीली टीन की चादरों से एक तरफ से ढँकी इस सड़क के अंत में वह जगह है, जिसे मुस्लिम पक्ष क़ब्रिस्तान बता रहा है.
जबकि हिंदू पक्ष वहाँ गोशाला बनाना चाहता है.
मोहम्मद हनीफ़ ने बीबीसी से बातचीत में कहा, “यह अकबरपुर क़ब्रिस्तान का विवाद है, जो साल 2015 से चल रहा है. उस साल शासन ने हमें नापकर वह जगह दी थी. इसके बाद जब भी हमने उसके इर्द-गिर्द बाउंड्री वॉल बनाने की कोशिश की, वहाँ विवाद की स्थिति बन गई.”
“साल 1959 के रिकॉर्ड में वह क़ब्रिस्तान दर्ज है और 2011 तक वहाँ लोगों को दफ़न किया गया है. आख़िरी क़ब्र अकबरपुर के ही रहने वाले बद्दू दादा की थी. इसके बाद वहाँ किसी को दफ़न नहीं करने दिया गया.”
हनीफ़ ने 2013 में एक आवेदन देकर इस ज़मीन को मध्य प्रदेश वक़्फ़ बोर्ड में रजिस्टर कराया था.
उनका कहना है, “वक़्फ़ बोर्ड ने इसी जगह को अश्विनी श्रीवास्तव को किराए पर दे दिया था. हालाँकि साल 2019 में उस किरायेदारी को निरस्त कर दिया गया. काग़ज़ों में यह ज़मीन क़ब्रिस्तान है. यह अलग बात है कि सियासत के दम पर उसमें कोई हेरफेर कर दी जाए.”
जाँच समिति के सामने मुश्किलें
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मध्य प्रदेश वक़्फ़ बोर्ड और भोपाल में मौजूद औक़ाफ़-ए-अम्मा संस्था, भोपाल की ज़्यादातर नवाबी रियासत की प्रॉपर्टी की देखभाल करती हैं.
औक़ाफ़-ए-अम्मा के एक पदाधिकारी एमवाई ख़ान ने कहा, “यह ज़मीन वक़्फ़ के तहत क़ब्रिस्तान के तौर पर रजिस्टर्ड है. इसे अश्विनी श्रीवास्तव को किराए पर दिया गया था, हालाँकि कुछ समय बाद वह किरायेदारी निरस्त कर दी गई थी. हमारी जानकारी के अनुसार यह ज़मीन वक़्फ़ की संपत्ति है.”
जब कोलार के एसडीएम आदित्य जैन से जाँच समिति में वक़्फ़ के प्रतिनिधित्व पर सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा, “इसमें वक़्फ़ का कोई व्यक्ति शामिल नहीं है. अगर उन्हें इस मामले में अपना पक्ष रखना है, तो जाँच समिति के सामने प्रस्तुत होकर रख सकते हैं.”
यह मामला जाँच समिति के लिए भी आसान नहीं होगा. एक तरफ़ तो सरकार के राजस्व रिकॉर्ड में यह ज़मीन शासकीय भूमि और क़ब्रिस्तान के तौर पर दर्ज है.
लेकिन दूसरी तरफ़ क़ब्रिस्तान समेत अन्य नवाबी रियासत की संपत्तियों की देखरेख करने वाले वक़्फ़ बोर्ड के दस्तावेज़ों में यह ज़मीन वक़्फ़ की संपत्ति के रूप में दर्ज है.
ऐसे में किसका दावा सही माना जाएगा, इस पर भी सवाल खड़े होते हैं.
क़ब्रिस्तान की ज़मीन से जुड़ी एक अन्य मुश्किल
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हनीफ़ समेत इलाक़े में रहने वाले कई मुस्लिम बताते हैं कि 2011 में आख़िरी बार इस क़ब्रिस्तान में किसी को दफ़न किया गया था. लेकिन क़ब्रिस्तान की ज़मीन से जुड़ा एक और पेंच है.
जिस जगह को 2011 और उससे पहले क़ब्रिस्तान के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था, उसका खसरा नंबर 114 है.
साल 2015 में ज़िला प्रशासन ने ज़मीनों की माप के बाद यह बताया कि अब तक जिसे क़ब्रिस्तान समझकर इस्तेमाल किया जा रहा था, दरअसल वह किसी की निजी ज़मीन का हिस्सा है. जबकि असली क़ब्रिस्तान की ज़मीन इसके ठीक बगल में है.
अकबरपुर के रहने वाले 75 वर्षीय सत्तार ख़ान कहते हैं, “मेरे वालिद, मेरी माँ और मेरा एक बेटा इसी क़ब्रिस्तान में दफ़न हैं. जो क़ब्रिस्तान की ज़मीन थी, प्रशासन ने क़रीब एक दशक पहले बताया कि असल में वह प्राइवेट ज़मीन है और उसके बगल वाली ज़मीन क़ब्रिस्तान है. हमने मान लिया. लेकिन अब इस ज़मीन पर भी गोशाला बनाने की मुहिम चलाई जा रही है.”
गोशाला के हिमायती क्या कहते हैं?
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इस मामले में गोशाला बनाने की पहल और अगुवाई अश्विनी श्रीवास्तव कर रहे हैं. वह पेशे से एक कॉलेज के मालिक और ठेकेदार हैं.
22 जून को भोपाल निवासी श्रीवास्तव ने बीजेपी विधायक रामेश्वर शर्मा को बुलाकर इस ज़मीन पर गोशाला निर्माण के लिए भूमि पूजन किया.
अश्विनी श्रीवास्तव ने बीबीसी से कहा, “साल 2008–09 के आसपास हाईकोर्ट ने वक़्फ़ को अपनी संपत्तियों का ब्योरा सही करने का आदेश दिया था. इसके बाद वक़्फ़ की तरफ से हमें भी नोटिस मिला. हमने जाकर उस ज़मीन का किरायानामा बनवा लिया. कुछ समय बाद हमें पता चला कि वह ज़मीन सरकारी है, तो हमने वक़्फ़ से किया गया अपना किरायानामा रिन्यू नहीं कराया.”
अश्विनी श्रीवास्तव का दावा है, “उस ज़मीन पर कभी क़ब्रिस्तान था ही नहीं.”
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अश्विनी श्रीवास्तव का दावा है, “बहुत पहले वहाँ बच्चों के अंतिम संस्कार के लिए श्मशान हुआ करता था. उस समय नवाबी शासन था, तो उन्होंने उसका नाम बदलकर क़ब्रिस्तान कर दिया.”
हालाँकि, भूमि पूजन करवाने को अपनी ग़लती मानते हुए उन्होंने कहा, “वो मेरी एक ग़लती थी. अगर सरकार चाहेगी, तो ही मैं वहाँ गोशाला बनाऊंगा. मैं यह काम पूरी तरह चैरिटी की मंशा से कर रहा हूँ.”
विवादित ज़मीन के आसपास रहने वाले कई लोग दबी ज़ुबान में वहाँ क़ब्रिस्तान होने की बात कहते हैं.
70 वर्षीय लक्ष्मी बाई, घर के बाहर बर्तन धोते हुए कहती हैं, “हमें ज़्यादा नहीं पता, लेकिन वहाँ एक क़ब्रिस्तान था. इससे ज़्यादा कुछ नहीं पता, हमने कभी देखा नहीं है. अब तो कई साल से वहाँ कुछ नहीं हुआ है.”
इस मामले ने अब तक ज़्यादा सियासी तूल नहीं पकड़ा है, लेकिन मुस्लिम पक्ष का आरोप है कि इस ज़मीन पर कभी भी स्थायी निर्माण किया जा सकता है.
मोहम्मद हनीफ़ कहते हैं, “देखिए, गोशाला बनाना कोई बुरी बात नहीं है और हम उसका सहयोग करेंगे. लेकिन क्या आप किसी के घर पर गोशाला बना देंगे? अगर इतना ही शौक है, तो आप ज़मीन ख़रीदकर बनाइए. किसी की ज़मीन पर गोशाला बना देना ज़्यादती है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित