Nitin Gadkari on wealth inequality केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने देश में बढ़ती अमीर-गरीब की खाई पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि गरीबों की संख्या बढ़ रही है और धन कुछ अमीरों के हाथों में केंद्रित हो रहा है। गडकरी ने धन के समान वितरण की आवश्यकता पर बल दिया और अर्थव्यवस्था को रोजगार सृजन और ग्रामीण विकास की दिशा में मोड़ने की बात कही।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने देश में अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई को लेकर चिंता जाहिर की है।
उन्होंने शनिवार को नागपुर में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि देश में गरीबों की तादाद बढ़ रही है और दौलत कुछ अमीरों के हाथों में सिमटती जा रही है। गडकरी ने इस बात पर चिंता जताई और दौलत के बंटवारे की जरूरत पर जोर दिया।
उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था को इस तरह बढ़ाना होगा, जिससे रोजगार पैदा हो और गांवों का उद्धार हो। गडकरी ने कृषि, मैन्युफैक्चरिंग, टैक्सेशन और इंफ्रास्ट्रक्चर में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप जैसे कई मुद्दों पर भी बात की।
‘दौलत का बंटवारा जरूरी’
केंद्रीय मंत्री ने कहा, “धीरे-धीरे गरीबों की गिनती बढ़ रही है और दौलत कुछ अमीरों के पास इकट्ठा हो रही है। ऐसा नहीं होना चाहिए।” उन्होंने अर्थव्यवस्था को ऐसा रास्ता देने की बात कही, जो रोजगार दे और गांवों को मजबूत करे।
उन्होंने यह भी कहा कि दौलत का विकेंद्रीकरण जरूरी है और इस दिशा में कई बदलाव भी हुए हैं। गडकरी ने पूर्व प्रधानमंत्रियों पी.वी. नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह की तारीफ की, जिन्होंने उदार आर्थिक नीतियों को अपनाया।
उन्होंने कहा, “पी.वी. नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह ने उदारीकरण को अपनाया, लेकिन फिर भी उन्होंने धन को केंद्रीकरण होने से नहीं रोका।”
‘खाली पेट वाले को दर्शन नहीं सिखाया जा सकता’
नितिन गडकरी ने भारत की आर्थिक संरचना पर भी रोशनी डाली। उन्होंने बताया कि मैन्युफैक्चरिंग से जीडीपी में 22-24 फीसदी हिस्सा आता है, सर्विस सेक्टर से 52-54 फीसदी, जबकि कृषि, जो ग्रामीण आबादी का 65-70 फीसदी हिस्सा रखती है, केवल 12 फीसदी योगदान देती है।
उन्होंने स्वामी विवेकानंद का जिक्र करते हुए कहा, “खाली पेट वाले को दर्शन नहीं सिखाया जा सकता।”
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