सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष के धनुष और बाण चिन्ह एकनाथ शिंदे गुट को देने के निर्णय के खिलाफ उद्धव ठाकरे गुट की याचिका पर सुनवाई अगस्त में करने का फैसला किया है। जस्टिस सूर्यकांत और जायमाल्य बागची की पीठ ने कहा कि मामला लंबे समय से लंबित है और अनिश्चितता बनी नहीं रहनी चाहिए। कोर्ट ने मामले को जल्द निपटाने की बात कही है।
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले गुट की याचिका पर सुनवाई के लिए अगस्त का समय निर्धारित किया, जिसमें महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष के उस निर्णय के खिलाफ अपील की गई है, जिसमें ”धनुष और बाण” पार्टी चिन्ह एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट को दिया गया था।
जस्टिस सूर्यकांत और जायमाल्य बागची की पीठ ने सोमवार को कहा कि यह मुद्दा अरसे से लंबित है और अनिश्चितता को जारी नहीं रहने दिया जा सकता। पीठ ने उद्धव गुट की ओर से उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से कहा कि इस मामले को अगस्त में मुख्य मामले के अंतिम निपटारे के लिए तय करेंगे। वे राज्य में स्थानीय निकाय चुनावों के मद्देनजर मामले के त्वरित निपटान की मांग कर रहे हैं।
कपिल सिब्बल ने कोर्ट में दी ये दलील
शिवसेना के शिंदे गुट की ओर से उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल ने कहा कि अदालत ने पहले इस मुद्दे पर तात्कालिक सुनवाई से इनकार कर दिया था। सिब्बल ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष का 2023 में विपक्षी पार्टी को प्रतीक सौंपने का निर्णय संविधान पीठ के शीर्ष अदालत के फैसले के विपरीत था।
बाद में सामने आएगी सुनवाई की तारीख
जस्टिस सूर्यकांत ने तब कहा, ”हम मामले की सूचीबद्धता की सटीक तारीख बाद में देंगे क्योंकि हम अन्य मामलों के साथ टकराव नहीं चाहते।” सात मई को शीर्ष अदालत ने ठाकरे के नेतृत्व वाले गुट को स्थानीय निकाय चुनावों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा था, जब पार्टी ने महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष के निर्णय के खिलाफ अपनी याचिका पर तात्कालिक सुनवाई की मांग की थी।
उस समय शीर्ष अदालत ने कहा था कि मामला गर्मी की छुट्टियों के बाद लिया जाएगा। 10 जनवरी, 2024 को महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने शिंदे सहित सत्तारूढ़ गुट के 16 विधायकों को अयोग्य ठहराने के लिए शिवसेना (यूबीटी) की याचिका को खारिज कर दिया।
अध्यक्ष द्वारा पारित आदेश को ठाकरे ने दी है चुनौती
अध्यक्ष द्वारा पारित आदेशों को शीर्ष अदालत में चुनौती देते हुए ठाकरे गुट ने दावा किया कि ये ”स्पष्ट रूप से अवैध और विकृत” थे। उन्होंने विद्रोहियों को दंडित करने के बजाय उन्हें पुरस्कृत किया।