एक तरफ़ ‘वीराना’, ‘तहख़ाना’, ‘बंद दरवाज़ा’ या ‘पुराना मंदिर’ जैसी पुरानी फ़िल्में हैं तो दूसरी तरफ़ ‘भूत’, ‘स्त्री’, ‘भेड़िया’ जैसी नए ज़माने की फ़िल्में हैं.
लेकिन इन सभी फ़िल्मों में एक बात कॉमन है. वो है- डर से भरपूर माहौल.
इसी की तलाश में भारतीय सिनेमा की हॉरर फ़िल्मों का प्रशंसक थिएटर तक पहुंचता है.
70 और 80 के दशक में रामसे ब्रदर्स हॉरर फ़िल्मों का पर्याय बनकर उभरे थे. उन्होंने लगभग 45 फ़िल्में बनाईं और ज़्यादातर फ़िल्में कमाई के लिहाज़ से फ़ायदे का सौदा साबित हुईं.
फिर एक लंबा अंतराल आया, जब बड़े परदे से हॉरर फ़िल्में लगभग ग़ायब हो गईं. इस दौरान फ़िल्म मेकर राम गोपाल वर्मा ने कुछ फ़िल्में बनाईं, लेकिन वैसा माहौल नहीं बन पाया, जैसा रामसे ब्रदर्स के समय था.
राम गोपाल वर्मा ने ‘कौन’, ‘रात’, ‘भूत’, ‘फूंक’, ‘डरना मना है’, ‘भूत रिटर्न’ और ‘ये कैसी अनहोनी’ जैसी फ़िल्में बनाईं.
मगर, दर्शकों के बीच ‘रात’ और ‘भूत’ जैसी फ़िल्मों को ही पसंद किया गया.
इसके बाद पिछले कुछ सालों में ‘1920’, ‘स्त्री’, ‘शैतान’, ‘भेड़िया’, ‘मुंज्या’, ‘स्त्री-2’ और ‘तुम्बाड’ जैसी फ़िल्में रिलीज़ हुईं, जिन्हें दर्शकों ने ख़ूब पसंद किया. यह क्रम अभी भी जारी है.
ऐसे में सवाल उठा कि क्या भारतीय सिनेमा में हॉरर फ़िल्मों का दौर फिर लौट आया है? या इस बदलाव की वजह ओटीटी प्लेटफॉर्म्स मात्र ही हैं.
ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब जानने के लिए बीबीसी हिंदी ने सिनेमा से जुड़े विशेषज्ञों से बात की, जिन्होंने इस ट्रेंड की कुछ ख़ास संभावित वजहें बताई हैं.
‘अगर हॉरर के साथ कॉमेडी भी हो, तो डबल मज़ा आता है’
जाने-माने फ़िल्म समीक्षक कोमल नाहटा कहते हैं, “मुझे लगता है कि पहले के ज़माने में हॉरर फ़िल्में ‘सी’ कैटेगरी की मानी जाती थीं, तो फ़िल्म मेकिंग भी कमज़ोर रहती थी. फ़िल्म स्टार्स ऐसी फ़िल्में करने के लिए राज़ी नहीं होते थे. इसलिए, सामान्य तौर पर ऐसी फ़िल्मों में स्टार्स नहीं होते थे.”
“जब से फ़िल्म स्टार्स ने ऐसी फ़िल्मों को महत्व देना शुरू किया, तब से इन फ़िल्मों का बजट भी बढ़ गया, क्योंकि, फ़िल्म स्टार्स पैसा लेते हैं.”
कोमल नाहटा मानते हैं कि भारतीय सिनेमा में हॉरर के बढ़ते क्रेज़ का क्रेडिट दर्शकों को भी जाता है.
वो कहते हैं, ”ऑडियंस का मिजाज़ भी विकसित हुआ है. क्योंकि, इतने सालों तक हॉरर जॉनर आगे ही नहीं आया था.”
“इसलिए, अचानक ऑडियंस को भी लगा कि हॉरर में भी मज़ा आता है और अगर हॉरर के साथ कॉमेडी भी हो, तो डबल मज़ा आता है.”
कोमल नाहटा कहते हैं, “इसलिए, आप देखेंगे कि फ़िल्म ‘स्त्री’ भी चली, ‘स्त्री-2’ भी चली. पहले ‘मुंज्या’ चली. कुछ साल पहले आई ‘गोलमाल अगेन’ भी चली थी, जो हॉरर कॉमेडी थी. ये एक नया पॉपुलर जॉनर ऑडियंस के बीच आ गया है.’’
तो फ़िल्म ‘तुम्बाड’ को थिएटर में मिल रही प्रतिक्रिया किस बात का इशारा है?
इस सवाल पर कोमल नाहटा कहते हैं, “जब ‘तुम्बाड’ रिलीज़ हुई थी, तब अच्छी नहीं गई थी. बिजनेस अच्छा नहीं हुआ था. लेकिन, इसकी चर्चा ख़ूब हुई थी. क्लास ऑडियंस को यह बहुत पसंद आई थी.”
“मुझे लगता है कि इस बार इसका बिजनेस पहले से ज़्यादा होगा. कई बार दिमाग में होता है कि यह हमने ओटीटी पर देखी थी. चलो, अब थिएटर में देखते हैं.”
‘स्त्री-2’ और ‘तुम्बाड’ की कमाई
बॉक्स ऑफिस पर ‘स्त्री-2’ और ‘तुम्बाड’ जैसी फिल्मों की कमाई इस बात का संकेत देती दिखती हैं कि दर्शकों की पसंद में बदलाव तो आ रहा है.
जाने-माने फ़िल्म क्रिटिक तरण आदर्श ने सोशल मीडिया पर लिखा- “फ़िल्म ‘स्त्री-2’ ने रिलीज़ होने के पांचवें हफ़्ते में सोमवार (16 सितंबर 2024) को 3.17 करोड़ रुपये की कमाई की. यह फ़िल्म अब तक बॉक्स ऑफिस पर क़रीब 583 करोड़ रुपये की कमाई कर चुकी है और 600 करोड़ रुपये की कमाई के आंकड़े को पार कर सकती है.”
उन्होंने दूसरे ट्वीट में लिखा- “फ़िल्म ‘तुम्बाड’ साल 2018 में जब पहली बार थिएटर में रिलीज़ हुई थी, तब इस फ़िल्म ने दो हफ़्ते में क़रीब नौ करोड़ रुपए कमाए थे. इसने पहले हफ़्ते में 5.85 करोड़ रुपए और दूसरे हफ़्ते में 3.14 करोड़ रुपए थे.”
“मगर, जब फिर से इस फ़िल्म को थिएटर में रिलीज़ किया गया, तो अब इस फ़िल्म ने केवल 4 दिन में क़रीब नौ करोड़ रुपए कमा लिए हैं. फ़िल्म ने शुक्रवार को 1.65 करोड़ रुपए, शनिवार को 2.65 करोड़ रुपए, रविवार को 3.04 करोड़ रुपए और सोमवार को 1.69 करोड़ रुपए कमाए. इस फ़िल्म ने सोमवार को शुक्रवार से ज़्यादा कमाई की.”
वैसे बॉक्स ऑफिस पर ‘तुम्बाड’ जैसी फ़िल्मों के कमाई को लेकर वरिष्ठ फ़िल्म पत्रकार अजय ब्रह्मात्मज एक नया पहलू जोड़ते हैं.
वह कहते हैं, “फ़िल्म ‘तुम्बाड’ को थिएटर में मिल रहे रिस्पांस में एक मजेदार पक्ष जुड़ा है. इसे आपको केवल हॉरर फ़िल्म को मिल रहे रिस्पांस तक सीमित करके नहीं देखना चाहिए. दरअसल, आजकल फ़िल्मों को फिर से थिएटर में रिलीज़ करने का मौका मिल रहा है. इसकी शुरुआत हुई थी ‘लव स्टोरी’ से. “
उन्होंने कहा, “जब ऐसा होता है तो फ़िल्म को लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बातें होती हैं. दर्शकों के बीच फ़िल्म को लेकर एक जुड़ाव पैदा हो जाता है, जो दर्शकों को थिएटर तक खींच लाता है. ‘तुम्बाड’ के साथ भी ऐसा ही हो रहा है.”
अजय ब्रह्मात्मज इसमें ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की एक बड़ी भूमिका मानते हैं.
वो कहते हैं, ”इसमें ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ने भी रोल प्ले किया है. इसके ज़रिए फ़िल्म का कनेक्शन दर्शकों के साथ पहले ही बन चुका था. अब दर्शक थिएटर में पहुंच रहे हैं.”
“दरअसल, घर पर आपको थिएटर वाला अनुभव नहीं मिल पाता है. थिएटर में आप लोगों के साथ फ़िल्म देखते हैं. घर पर आप अकेले भी देखेंगे, तो एकाग्रता से नहीं देख पाएंगे. मगर, थिएटर में यह संभव हो जाता है.”
हॉरर फ़िल्मों का ट्रेंड किस ओर जा रहा है?
क्या हिंदी सिनेमा में हॉरर फ़िल्मों का दौर ऐसी फ़िल्मों से लौट पाएगा?
इस सवाल पर कोमल नाहटा कहते हैं, “नहीं. ‘तुम्बाड’ जैसी फ़िल्म से तो नहीं लौटकर आएगा. यह ट्रेंड सेट हो रहा है. ‘स्त्री-2 जैसी फ़िल्म से. वैसे तो ‘स्त्री’ के बाद ही यह ट्रेंड सेट हो गया था. ‘गोलमाल अगेन’ जैसी फ़िल्म भी चली थी.”
उन्होंने कहा, “हालांकि ऐसी फ़िल्मों की संख्या अब भी कम है. अभी भी फ़ैमिली ड्रामा और रोमांस ज़्यादा है. मगर, हां. अब ऐसी फ़िल्मों को लेकर माहौल बन रहा है.”
दक्षिण भारत से एक्टर ममूटी की ‘ब्रह्मयुगम’ जैसी फ़िल्में भी हैं, जिसने सिनेमाघरों में अच्छी कमाई की थी और अब ओटीटी पर काफी पसंद की जा रही हैं.
तो क्या भारतीय सिनेमा में हॉरर फ़िल्मों का ट्रेंड लौट रहा है?
इस पर वरिष्ठ पत्रकार अजय ब्रह्मात्मज कहते हैं, “नहीं. मैं ऐसा नहीं मानता हूं. मुश्किल से एक या दो फ़िल्में सफल हुई हैं. एक ‘मुंज्या’ और दूसरी ‘स्त्री-2’. इसलिए, हम इसे ट्रेंड नहीं कहेंगे.”
वो कहते हैं, “‘तुम्बाड’ तो पुरानी फ़िल्म थी. लोगों का उससे जुड़ाव था. इसलिए उसे अच्छा रिस्पांस मिल रहा. बीच में ‘भूल भुलैया’ भी अच्छी चली है. अब ‘भूल भुलैया-3’ भी आ रही है.”
अजय ब्रह्मात्मज का मानना है कि एक या दो फ़िल्म से ट्रेंड का पता लगा पाना बहुत मुश्किल है.
वो कहते हैं, ”दरअसल, हॉरर और कॉमेडी का मिक्स लोगों को बहुत पसंद आ रहा है, ऐसा कहना भी ठीक नहीं है और बिल्कुल पसंद नहीं आ रहा है, यह कहना भी ठीक नहीं है. क्योंकि, पब्लिक का ट्रेंड समझ पाना मुश्किल काम है.”
उन्होंने ख़ुद का उदाहरण देते हुए कहा, “जैसे मुझे ‘स्त्री-2’ अच्छी नहीं लगी. ‘स्त्री’ ज़्यादा बेहतर फ़िल्म थी. उसमें एक विचार था, जिसका इस्तेमाल फ़िल्ममेकर्स ने किया था. हालांकि, ‘स्त्री-2’ को देखने दर्शक पहुंच रहे हैं. नंबर्स यह बता रहे हैं.”
अजय कहते हैं, ”मगर, क्या यह एक ट्रेंड बन गया है. मैं ऐसा मानने के लिए तैयार नहीं हूं. अभी भी दो-तीन फिल्में और बन रही हैं. उनमें पॉपुलर स्टार्स भी काम कर रहे हैं. तो यह एक सिलसिला है.”
बॉलीवुड में कैसा रहा है फ़िल्मों का ट्रेंड?
इसके इतर, बॉलीवुड में फ़िल्मों के ट्रेंड को लेकर वरिष्ठ पत्रकार सुदीप मिश्रा कहते हैं, “बॉलीवुड में शुरू से ही एक ट्रेंड रहा है. वो ये कि कुछ प्रोडक्शन हाउस एक जैसी फ़िल्में बनाते रहे हैं.”
उन्होंने कहा, “जैसे पहले के समय में रामसे ब्रदर्स हॉरर फ़िल्में बना रहे थे. उनकी ज़्यादातर फ़िल्मों को दर्शकों ने पसंद किया. अब ‘भेड़िया’, ‘मुंज्या’ या ‘स्त्री-2’ जैसी फ़िल्मों की बात करें तो इन्हें मैडॉक फ़िल्म्स बना रहा है. अभी भी ज़्यादा प्रोडक्शन हाउस ऐसी फ़िल्में नहीं बना रहे हैं.”
तो क्या यह माना जाए कि हॉरर फ़िल्मों की संख्या में कोई इजाफ़ा नहीं होने वाला है?
इस पर सुदीप कहते हैं, “देखिए, हॉरर फ़िल्में बॉलीवुड के लिए विक्रम भट्ट ने भी ख़ूब बनाई हैं. ‘1920’, ‘1920 रिटर्न्स’, ‘राज़’ फ्रेंचाइज़ी की फ़िल्में उसी कड़ी में आती हैं. ये सभी सफल भी रही हैं.”
“मगर, इसमें ऐसी फ़िल्मों के दौर लौटने वाली कोई बात नहीं है. कुछ सफल हो जाती हैं, तो कुछ असफल होती हैं. इसलिए, यशराज या धर्मा जैसे बड़े प्रोडक्शन हाउस ने हॉरर फ़िल्मों में ज़्यादा रुचि कभी नहीं दिखाई.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित