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Government Inform Rajya Sabha Said No Plan To Remove Socialist Secular From Constitution – Amar Ujala Hindi News Live

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Jul 25, 2025


केंद्र सरकार ने कहा है कि उनकी संविधान से ‘समाजवाद’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द हटाने पर विचार करने की फिलहाल कोई मंशा या योजना नहीं है। सरकार ने कहा कि इस संबंध में कोई प्रक्रिया शुरू भी नहीं की गई है। राज्यसभा में सरकार ने यह जानकारी दी। एक सवाल के जवाब में केंद्रीय कानून मंत्री ने ये भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट भी 42वें संविधान संशोधन को वैध करार दे चुका है।

सरकार ने राज्यसभा में क्या कहा

राज्यसभा में सांसद रामजी लाल सुमन ने इस संबंध में सवाल किया था। जिस पर केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने गुरुवार को लिखित जवाब में बताया कि ‘सरकार का आधिकारिक रुख यह है कि संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवाद’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्दों पर पुनर्विचार करने या उन्हें हटाने की कोई योजना या मंशा नहीं है। प्रस्तावना में संशोधनों के संबंध में किसी भी चर्चा के लिए गहन विचार-विमर्श और व्यापक सहमति की जरूरत होगी, लेकिन अभी तक सरकार ने इन प्रावधानों को बदलने के लिए कोई औपचारिक प्रक्रिया शुरू नहीं की है।’  

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सरकार ने कहा- सुप्रीम कोर्ट भी संशोधन को दे चुका वैधता

केंद्रीय मंत्री ने जवाब में बताया कि ‘सर्वोच्च न्यायालय साल 1976 में हुए 42वें संविधान संशोधन की वैधता की पुष्टि कर चुका है, जिसके तहत संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवाद’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द जोड़े गए थे। उन्होंने कहा कि ‘नवंबर 2024 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ‘डॉ. बलराम सिंह एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य’ के मामले में, 1976 के संशोधन (42वें संविधान संशोधन) को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था, और पुष्टि की थी कि संसद के पास संविधान की प्रस्तावना में भी संशोधन की शक्ति है। मेघवाल ने अपने जवाब में कहा, सर्वोच्च न्यायालय ने साफ किया है कि भारत के संदर्भ में समाजवाद एक कल्याणकारी राज्य का प्रतीक है और यह निजी क्षेत्र के विकास में बाधा नहीं डालता, जबकि पंथनिरपेक्षता संविधान के मूल ढांचे का अभिन्न अंग है।’

संघ सरकार्यवाह होसबाले ने दोनों शब्द हटाने पर विचार करने की जरूरत बताई थी

सरकार ने कहा, ‘कुछ सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों द्वारा बनाए गए माहौल के चलते, यह संभव है कि कुछ समूह इन शब्दों पर पुनर्विचार करने की वकालत कर रहे हों। लेकिन इस तरह की गतिविधियां सार्वजनिक चर्चा या माहौल तो बना सकती हैं, लेकिन जरूरी नहीं कि ये सरकार का आधिकारिक रुख हो।’ गौरतलब है कि जून में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा था कि समाजवाद और पंथनिरपेक्ष जैसे शब्दों को संविधान में जबरन डाला गया था और अब इस पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। संघ महासचिव ने आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में ये बात कही थी। हालांकि कई विपक्षी नेताओं ने होसबाले के बयान की तीखी आलोचना की थी। 

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