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Keral High Court: छोटे बच्चों को धरना-प्रदर्शन में ले जाने वाले माता-पिता पर हो कड़ी कार्रवाई, हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणी

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Sep 29, 2024


केरल हाई कोर्ट ने माता-पिता द्वारा विरोध प्रदर्शनों में छोटे बच्चों को ले जाने के बढ़ते चलन पर चिंता जताई है। कहा है कि बच्चे धरना प्रदर्शन सत्याग्रह आदि का उद्देश्य नहीं समझते। माता-पिता अपने विरोध प्रदर्शन में ध्यान खींचने के लिए बच्चों को वहां ले जाते हैं। कोर्ट ने कहा कि बच्चों को उनकी इच्छानुसार मित्रों के साथ खेलने-कूदने के लिए छोड़ देना चाहिए।

 माला दीक्षित, नई दिल्ली। केरल हाई कोर्ट ने माता-पिता द्वारा विरोध प्रदर्शनों में छोटे बच्चों को ले जाने के बढ़ते चलन पर चिंता जताई है। कहा है कि बच्चे धरना, प्रदर्शन, सत्याग्रह आदि का उद्देश्य नहीं समझते। माता-पिता अपने विरोध प्रदर्शन में ध्यान खींचने के लिए बच्चों को वहां ले जाते हैं। कोर्ट ने कहा कि बच्चों को उनकी इच्छानुसार मित्रों के साथ खेलने-कूदने के लिए छोड़ देना चाहिए।

यदि अभिवावक ध्यान आकर्षित करने के लिए जानबूझकर छोटे बच्चों को विरोध प्रदर्शन, धरना या सत्याग्रह में ले जाएं तो कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। कानून लागू करने वाली एजेंसियों (ला एनफोर्सिंग एजेंसियों) को कार्रवाई करने का पूरा अधिकार है। हाई कोर्ट ने कहा कि बच्चे सिर्फ माता-पिता की ही संपत्ति नहीं है बल्कि समाज की भी निधि हैं। इसलिए, माता-पिता का कर्तव्य है कि वह छोटे बच्चों को धरना प्रदर्शन में न ले जाएं।

केरल हाई के न्यायाधीश पीवी कुन्हीकृष्णन ने यह बात 24 सितंबर को दिये आदेश में कही है। हाई कोर्ट ने इस चलन को खत्म किये जाने की जरूरत पर बल देते हुए कहा है कि इसे खत्म करने के कई कारण हैं। इसमें बच्चों का सामना तेज गर्मी से होता है। वहां स्वच्छता नहीं होती। भीड़ में बच्चे बीमार हो सकते हैं। प्रदर्शन से बच्चे की नियमित दिनचर्या प्रभावित हो सकती है। उसकी नींद और शिक्षा आदि में व्यवधान आ सकता है। बच्चे को धरने में ले जाया गया तो वहां हिंसा की भी आशंका रहती है। बच्चे को शारीरिक क्षति का खतरा रहता है। शोर, भीड़ और झगड़े से बच्चे को तनाव हो सकता है।

हालांकि मौजूदा मामले में हाई कोर्ट ने तीन साल की छोटी बच्ची को मई की गर्मी में प्रदर्शन में शामिल करने वाले माता-पिता के खिलाफ जुविनाइल जस्टिस कानून 2000 की धारा 23 में दर्ज मुकदमा निरस्त कर दिया। कहा कि इसमें यह नहीं कहा जा सकता कि माता-पिता बच्चे को गैरजरूरी मानसिक और शारीरिक पीड़ा देना चाहते थे। लेकिन इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि इस मामले को नजीर नहीं माना जाएगा। यदि भविष्य में फिर ऐसी घटना होती है तो कड़ी कार्रवाई की जा सकती है।

मौजूदा मामले में माता-पिता तिरुअनंतपुरम के एसएटी अस्पताल की चिकित्सीय लापरवाही में अपने एक अन्य बच्चे की मौत के विरोध में तीन साल की बेटी के साथ सचिवालय के गेट पर लगातार 59 दिनों से प्रदर्शन कर रहे थे। उनकी मांग वित्तीय मदद की भी थी। तीन मई 2017 को पुलिस ने उनके खिलाफ जेजे एक्ट में मामला दर्ज किया था, जिसे रद कराने की मांग लेकर वे हाई कोर्ट पहुंचे थे।

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