“संगीतकार ऐसी चीज है जिससे हर कोई जुड़ना चाहता है। हर किसी के दिल मे संगीत होता है। अगर किसी के पास संगीत के लिए दिल नहीं है तो फिर वह दिल नहीं पत्थर है।”
यह कहना है भारत के दिग्गज गीतकार समीर अनजान का। फिल्मी दुनिया में समीर अनजान, एक ऐसा नाम है जो किसी के लिए अनजान नहीं है। हिंदुस्तान में रहने वाले लोग उनके गीतों को सुनकर और गुनगुनाकर मोहब्बत का इजहार करते हैं। एक ऐसा गीतकार, जिसे यह कला विरासत में मिली, लेकिन उन्होंने अपने पिता की खींची गई लकीर से भी लंबी लाइन खींच दी। उनके नाम हिंदी सिनेमा में सर्वाधिक गीत लिखने का रिकॉर्ड दर्ज हैं। समीर अनजान ने अमर उजाला से खास बातचीत में बॉलीवुड के नेपोटिज्म, राजनीति और म्यूजिक इंडस्ट्री में अपने सफर की अनसुनी कहानियां सुनाईं।
लोगों को मेरा असली नाम पसंद नहीं आया तो अनजान बन गया
उत्तर प्रदेश के बनारस के शीतला पांडेय कैसे समीर अनजान बने इस पर वह कहते हैं कि मेरी पहली कविता बनारस के एक प्रमुख अखबार जयदेश में प्रकाशित हुई। उस वक्त में इस अखबार को उसके ऑफिस की दीवार पर लगाया जाता था। पहली बार जब कविता लगी तो लोगों ने कहा कि शीतला पांडेय तो किसी क्लर्क या किसी शिक्षक का नाम लगता है। इसके बाद में दो-तीन कविता घर के नाम राजन से लिखीं, उस पर भी कोई रिएक्शन नहीं आया। उस वक्त मैं समीर का एक नॉवेल पढ़ रहा था। मैंने विचार किया और अगली कविता इसी नाम से लिखकर दे दी। इस पर लोगों का जबरदस्त रिएक्शन देखने को मिला। इसी से मुझे पहचान भी मिली।
पिता नहीं चाहते थे मैं गीतकार बनूं
बनारस छोड़कर मुंबई पहुंचने के सवाल पर उन्होंने बताया कि पिताजी लाला जी पांडेय ने 17 साल के लंबे संघर्ष के बाद सफलता हासिल की थी। उन्होंने मुझे बोला था सबकुछ करना लेकिन गीतकार बनने की कोशिश मत करना। पढ़ाई के बाद मेरी सरकारी बैंक में जॉब भी लग गई। इस बीच मेरा शौक परवान चढ़ रहा था। मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि मैं बैंक में क्या कर रहा हूं? फिर मैंने जॉब छोड़ दी। इसके बाद सीधे मुंबई के लिए निकल गया।