नीति आयोग ने चीनी कंपनियों के निवेश नियमों को सरल बनाने का सुझाव दिया है। प्रस्ताव के अनुसार, चीनी कंपनियां बिना मंजूरी के 24% तक हिस्सेदारी खरीद सकती हैं। इसका उद्देश्य भारत में एफडीआई को बढ़ाना है। सरकार इस प्रस्ताव पर विचार कर रही है। पहले सीमा विवाद के बाद निवेश नियम सख्त किए गए थे।

भारत और चीन के बीच 2020 में सीमा पर हुए विवाद के बाद ये नियम लागू किए गए थे। इन नियमों का सबसे ज्यादा असर चीनी कंपनियों पर पड़ा है। इसकी वजह से BYD का इलेक्ट्रिक कार बनाने के लिए 2023 में किया जाने वाला 1 अरब डॉलर का निवेश रुक गया। रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे भू-राजनीतिक तनावों के कारण दुनिया भर में विदेशी निवेश कम हो गया है। भारत में भी एफडीआई में भारी गिरावट आई है। यह पिछले वित्तीय वर्ष में घटकर 35.3 करोड़ डॉलर रह गया, जबकि मार्च 2021 में यह 43.9 अरब डॉलर था।
संबंधों को सुधारने के प्रयास जारी
अक्टूबर में सैन्य तनाव कम होने के बाद से भारत और चीन के बीच संबंधों को सुधारने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसमें सीधी उड़ानें फिर से शुरू करने और सीमा विवादों को हल करने की योजनाएं शामिल हैं।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हाल ही में चीन का दौरा किया और सीमा मुद्दों को हल करने और व्यापार प्रतिबंधों को हटाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि सीमा मुद्दों को हल करना और व्यापार प्रतिबंधों को हटाना जरूरी है।
नीति आयोग ने एफडीआई मंजूरी के लिए जिम्मेदार बोर्ड में बदलाव करने का भी सुझाव दिया है। इसका उद्देश्य निवेश प्रक्रिया को और आसान बनाना है।
निवेश करने के लिए बहुत सारी जांच
अभी, चीनी कंपनियों को भारत में निवेश करने के लिए बहुत सारी जांच से गुजरना पड़ता है। नीति आयोग चाहता है कि यह प्रक्रिया आसान हो जाए। उनका मानना है कि इससे भारत में ज्यादा विदेशी निवेश आएगा।
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, नीति आयोग का प्रस्ताव है कि चीनी कंपनियों को 24% तक हिस्सेदारी खरीदने के लिए सरकार से मंजूरी लेने की जरूरत नहीं होगी। सरकार के कुछ विभाग इस प्रस्ताव का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन अंतिम फैसला अभी बाकी है।
एफडीआई भारत की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इससे देश में नौकरियां पैदा होती हैं और विकास होता है। सरकार एफडीआई को आकर्षित करने के लिए कई कदम उठा रही है। नीति आयोग का प्रस्ताव एफडीआई को बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
यह कदम भारत की ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी पहलों के अनुरूप है, जो घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग और निवेश को बढ़ावा देना चाहती हैं। चीनी निवेश को अधिक सुलभ बनाकर भारत ग्लोबल सप्लाई चेन में अपनी स्थिति मजबूत करने और अपनी आर्थिक तरक्की को रफ्तार देने की उम्मीद करता है, जबकि रणनीतिक हितों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करता है। यह देखना होगा कि यह संतुलन कैसे हासिल किया जाता है, खासकर जब सुरक्षा चिंताएं अभी भी कुछ सरकारी हलकों में बनी हुई हैं।