• Sat. Sep 21st, 2024

24×7 Live News

Apdin News

SC: याची की बिना जानकारी दाखिल की याचिका, सुप्रीम कोर्ट ने दिए सीबीआई जांच के आदेश

Byadmin

Sep 21, 2024


 जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अदालतों के चक्कर लगाने वाले लोग अक्सर फर्जीवाड़े की कहानियां सुनाते मिलते हैं, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट में भी फर्जीवाड़ा करने और याची की इजाजत, सहमति और जानकारी के बगैर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दाखिल करने का मामला सामने आया है। सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक प्रणाली को दूषित करने के प्रयास और कोर्ट के साथ फर्जीवाड़े को गंभीरता से लेते हुए सीबीआइ को मामले की जांच के आदेश दिए हैं।

कोर्ट ने सीबीआइ को निर्देश दिया है कि प्रारंभिक जांच के बाद वह मामला दर्ज करके जांच करे, सारे लिंक पता लगाए और दो महीने में कोर्ट को रिपोर्ट दे। ये आदेश शुक्रवार को जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने भगवान सिंह बनाम स्टेट आफ यूपी के मामले में दिए।

याची ने नहीं किया केस दाखिल

इस केस में याचिकाकर्ता भगवान सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि उसने कभी यह केस दाखिल नहीं किया और न ही वह कभी किसी वकील से मिला है, न ही उसने कभी कोई वकील पैरोकारी के लिए रखा। जबकि केस के साथ संलग्न वकालतनामे पर याचिकाकर्ता भगवान सिंह के हस्ताक्षर मौजूद थे, इतना ही नहीं उसके हस्ताक्षर और दस्तावेज नोटरी द्वारा सत्यापित भी किए गए थे।

सुप्रीम कोर्ट ने तारीख दर तारीख केस की जांच की तो फर्जीवाड़े की कहनी सुप्रीम कोर्ट से लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट तक खुलती चली गई। एक वकील ने दूसरे और दूसरे ने तीसरे पर मामला डाला। अंत में सारा मामला सामने आने के बाद और याचिकाकर्ता भगवान सिंह द्वारा केस दाखिल करने व किसी तरह के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने से इन्कार करने के बाद कोर्ट ने केस को गंभीर मानते हुए सीबीआइ को जांच कर दोषियों का पता लगाने का आदेश दिया।

कोर्ट ने सीबीआइ निदेशक को मामले में जरूरी कार्रवाई करने का निर्देश देते हुए दो महीने में रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। शीर्ष कोर्ट ने मामले को गंभीर बताते हुए कहा कि वकील जो कि कोर्ट आफिसर होते हैं, गलत उद्देश्य हासिल करने के लिए गलत मुकदमेबाजी में सक्रिय रूप से शामिल हुए।

पेशेगत कदाचार के मामले भी बढ़ रहे

पीठ ने कहा कि लोग अदालत और वकीलों पर बहुत भरोसा करते हैं। वकील न्यायिक प्रक्रिया का अभिन्न हिस्सा हैं और लोकतांत्रिक व्यवस्था में न्यायपालिका की स्वतंत्रता कायम रखने में उनकी अहम भूमिका होती है। कानूनी पेशा एक सेवा प्रदान करने वाला पवित्र पेशा है और कोर्ट आफिसर के रूप में वकीलों की बहुत जिम्मेदारी होती है। पीठ ने कहा, लेकिन पेशेगत मूल्यों का हृास होने और पेशेगत कदाचार के मामले भी बढ़ रहे हैं।

आपराधिक कार्यों के लिए अभियोजन से छूट नहीं

पीठ ने कहा कि जब भी कोई वकील कोर्ट में दाखिल दस्तावेज पर हस्ताक्षर करता है तो यह माना जाता है कि उसने पूरी संजीदगी और जिम्मेदारी से ऐसा किया होगा। कोर्ट ने आदेश में कहा कि किसी भी पेशे को जिसमें कानूनी पेशा भी शामिल है, आपराधिक कार्यों के लिए अभियोजन से छूट नहीं है। जब सुप्रीम कोर्ट और शीर्ष कानूनविद सबसे अच्छा ज्यूरिसप्रूडेंस (न्यायिक तंत्र) विकसित करने में लगे हुए हैं, तो कुछ खराब लोग लगातार प्रक्रिया का दुरुपयोग कर अनुचित लाभ उठाने और न्यायिक प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाने में लगे रहते हैं।

नीतीश कटारा हत्याकांड से है मामले का संबंध

सुप्रीम कोर्ट में जो मामला था, वह उत्तर प्रदेश के बदायूं का था। इस मामले का संबंध नीतीश कटारा हत्याकांड के गवाह अजय कटारा से भी था, जिसका कहना था कि नीतीश कटारा केस में गवाही देने के बाद उसे निशाना बनाया गया और उसके विरुद्ध बहुत से केस दाखिल किए गए, जिनमें से एक मौजूदा मामला था। उसकी गवाही के आधार पर ही विकास यादव, विशाल यादव व अन्य को सजा हुई थी। इस मामले में हाई कोर्ट के आदेश के विरुद्ध भगवान सिंह की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दो अपीलें दाखिल की गईं थी।

एक में इलाहाबाद हाई कोर्ट के 16 दिसंबर, 2019 के आदेश को चुनौती दी गई थी। उसमें हाई कोर्ट ने अजय कटारा की मामला रद करने की मांग स्वीकार करके उसके विरुद्ध बदायूं जिले के सहसवान थाने में दर्ज दुष्कर्म व अन्य धाराओं का केस निरस्त कर दिया था जो बदायूं के एडीशनल चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट द्वितीय की अदालत में लंबित था। दूसरी अपील में हाई कोर्ट के दो अप्रैल, 2024 के आदेश को चुनौती दी गई थी। उसमें हाई कोर्ट ने रिकाल अर्जी (आदेश को वापस लेने की मांग) खारिज कर दी थी।

उत्तर प्रदेश सरकार और अजय कटारा को नोटिस जारी

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 17 मई, 2024 को याचिका में प्रतिवादी बनाए गए उत्तर प्रदेश सरकार और अजय कटारा को नोटिस जारी किया था। सुप्रीम कोर्ट ने ये नोटिस याचिका दाखिल करने में हुई देरी माफ करने की अर्जी और विशेष अनुमति याचिका पर जवाब के लिए जारी किया था एवं आठ सप्ताह में जवाब मांगा था। जब केस सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पर आया तो उसकी 29 जुलाई, 2024 की आफिस रिपोर्ट में कहा गया था कि नौ जुलाई, 2024 को भगवान सिंह (याचिकाकर्ता) का पत्र मिला जिसमें कहा कि उसने सुप्रीम कोर्ट में कोई एसएलपी दाखिल नही की है, उसकी ओर से झूठा केस दाखिल किया गया है। 30 जुलाई, 2024 को मामला सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पर लगा तो खुलता ही चला गया।

एओआर उन्हीं वकीलों को अनुमति दे जिन्हें पेशी का अधिकार

कोर्ट ने आदेश में एडवोकेट आन रिकार्ड (सुप्रीम कोर्ट में केस दाखिल करने के अधिकृत वकीलों) से कहा है कि वे केस में उन्हीं वकीलों की पेशी की अर्जी दें जिन्हें उस दिन कोर्ट में पेश होने और बहस करने का अधिकार है। आदेश में कोर्ट ने आपराधिक मामलों में गवाहों की अहमियत का भी जिक्र किया है।

सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की दलबदल विरोधी कानून के विरुद्ध याचिका

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दलबदल विरोधी कानून (संविधान की दसवीं अनुसूची) के विरुद्ध एक याचिका को खारिज कर दिया।यह कानून 1985 में संविधान संशोधन के जरिये लाया गया था। इसमें राजनीतिक पार्टी के सदस्यों, निर्दलीय सदस्यों एवं नामित सदस्यों द्वारा संसद या विधानसभा में दलबदल की स्थिति से निपटने का प्रविधान है और सदस्यों की अयोग्यता के आधार बताए गए हैं। सांसद या विधायक उस दल से अलग होने के बाद अयोग्य हो जाते हैं जिनके टिकट पर उन्होंने चुनाव लड़ा होता है।

प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पार्डीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि वे मामले पर फिर से विचार नहीं कर सकते क्योंकि 1992 में संविधान पीठ ने दसवीं अनुसूची को बरकरार रखा था। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि वह दसवीं अनुसूची जोड़े जाने को चुनौती दे रहे हैं। इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि इसे भी चुनौती दी गई थी और बरकरार रखा गया था। इसके बिना वह दलबदल के मुद्दे से कैसे निपट सकते थे।

By admin