थाईलैंड की संवैधानिक अदालत ने 7-2 के बहुमत से फैसला लेते हुए कहा कि कि “संवैधानिक अदालत बहुमत से निर्णय लेते हुए 1 जुलाई से प्रधानमंत्री को उनके कार्यों से निलंबित करती है, जब तक कि अदालत इस मामले में अंतिम निर्णय न सुना दे।”

आपको बता दें कि ये पूरा विवाद मई 2025 में थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा पर हुए टकराव के बाद शुरू हुआ था, जिसमें एक कंबोडियाई सैनिक की मौत हो गई थी। सीमा पर चल रही तनातनी के बीच प्रधानमंत्री पैतोंगतार्न ने कंबोडियाई नेता और पूर्व प्रधानमंत्री हुन सेन को फोन किया था, जो अब भी देश की राजनीति में मजबूत हस्ती माने जाते हैं। हाल ही में वही टेलीफोन कॉल की एक रिकॉर्डिंग लीक हो गई, जिसमें थाईलैड की प्रधानमंत्री पैतोंगतार्न ने हुन सेन को “अंकल” कहकर संबोधित किया था और थाईलैंड की सेना के एक वरिष्ठ कमांडर को अपना “विरोधी” कहा था। उनके इस बयान ने देश के रक्षा प्रतिष्ठान और संसद में बैठे रूढ़िवादी सांसदों के बीच बवाल खड़ा कर दिया।
थाईलैंड की प्रधानमंत्री को कोर्ट ने किया सस्पेंड
थाई संसद के एक समूह, जो कि सेनाओं के करीबी माने जाते हैं, उसने इस लीक कॉल को आधार बनाकर प्रधानमंत्री के खिलाफ एक याचिका दायर की थी। उनका आरोप है कि प्रधानमंत्री ने इस संवेदनशील मसले में कंबोडिया के आगे झुकने का संकेत दिया और सेना को सार्वजनिक रूप से नीचा दिखाया है, जो कि संविधान में बताए गये मंत्री पद की “नैतिक मर्यादा” और “स्पष्ट ईमानदारी” की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। इन सांसदों का तर्क है कि प्रधानमंत्री के इस आचरण ने थाईलैंड की राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेशी नीति और सैन्य प्रतिष्ठान की गरिमा को ठेस पहुंचाई है।
प्रधानमंत्री शिनावात्रा ने फिलहाल कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है, लेकिन उनके प्रवक्ता ने एक प्रेस ब्रीफिंग में कहा है कि “प्रधानमंत्री का इरादा क्षेत्र में शांति बनाए रखने और अनावश्यक संघर्ष को टालने का था। उन्होंने किसी भी तरह की अवांछित बयानबाजी नहीं की। कॉल के लीक होने और उसे गलत तरीके से फैलाया जा रहा है, जिससे प्रधानमंत्री काफी आहत हैं।” प्रवक्ता ने आगे कहा कि अदालत की कार्यवाही का सम्मान करते हुए प्रधानमंत्री जांच में पूरा सहयोग करेंगी। आपको बता दें कि प्रधानमंत्री शिनावात्रा, पूर्व प्रधानमंत्री थाक्सिन शिनावात्रा की बेटी हैं। थाक्सिन खुद 2006 में सैन्य तख्तापलट के बाद सत्ता से हटा दिए गए थे और उसके बाद से उनका परिवार थाईलैंड की राजनीति में लगातार विवादों में रहा है। प्रधानमंत्री शिनावात्रा की सरकार को भी शुरू से ही सेना और रूढ़िवादी ताकतों का प्रतिरोध झेलना पड़ा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह निलंबन सिर्फ एक कानूनी मामला नहीं, बल्कि सत्ता संघर्ष का हिस्सा भी है जिसमें सेना समर्थित प्रतिष्ठान फिर से एक लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है।