तुर्की की अनादोलु स्टेट न्यूज एजेंसी ने शनिवार को बताया कि अजरबैजान से लौटते समय एर्दोगन ने कहा कि “मुझे विश्वास है कि ट्रंप हमारे द्वारा किए गए समझौते के प्रति वफादार रहेंगे। मुझे लगता है कि उनके कार्यकाल के दौरान तुर्की को F-35 विमान चरणबद्ध तरीके से दिए जाएंगे।”

अनादोलु स्टेट न्यूज एजेंसी ने शनिवार को बताया कि अजरबैजान से लौटते समय एर्दोगन ने कहा कि “मुझे विश्वास है कि ट्रंप हमारे द्वारा किए गए समझौते के प्रति वफादार रहेंगे। मुझे लगता है कि उनके कार्यकाल के दौरान तुर्की को F-35 विमान चरणबद्ध तरीके से दिए जाएंगे।” हालांकि उन्होंने समझौते के बारे में कोई और जानकारी नहीं दी, लेकिन कहा कि यह कदम “जियो-इकोनॉमिक क्रांति का हिस्सा है।” इससे पहले अंकारा में वाशिंगटन के दूत टॉम बैरक ने कहा था कि ये प्रतिबंध “वर्ष के अंत तक” खत्म हो जाने की संभावना है।
तु्र्की को F-35 लड़ाकू विमान बेचने को अमेरिका तैयार!
एक्सपर्ट्स का मानना है कि डोनाल्ड ट्रंप काफी आसानी से इस डील के लिए तैयार हो सकते हैं। इसमें अमेरिका को आर्थिक फायदे हैं। अनादोलु एजेंसी ने कहा है कि ट्रंप और एर्दोगन अपने शीर्ष राजनयिकों को निर्देश देंगे कि वे एफ-35 अधिग्रहण को लेकर “रास्ता निकालें और इसे (प्रतिबंध) समाप्त करें और कांग्रेस एक बुद्धिमान समाधान का समर्थन करेगी”। मार्च में, एर्दोगन ने ट्रंप से एक ऐसे सौदे को अंतिम रूप देने की आवश्यकता के बारे में बात की, जो तुर्की को अमेरिकी F-16 लड़ाकू विमान खरीदने और F-35 युद्धक विमानों के विकास कार्यक्रम में फिर से शामिल होने की अनुमति देगा। आपको बता दें कि F-35 लड़ाकू विमान कार्यक्रम से तुर्की को हटाने की वजह थी रूस से खरीदा गया S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम। अमेरिका ने इसे NATO की सुरक्षा के लिए खतरा बताया था और जवाब में 2020 में तुर्की के रक्षा क्षेत्र पर प्रतिबंध भी लगा दिए गए थे। लेकिन एर्दोगन का कहना है कि ट्रंप प्रशासन के साथ उनका एक “समझौता” हुआ था और उन्हें भरोसा है कि ट्रंप उस समझौते के प्रति वफादार रहेंगे।
ट्रंप के वाइट हाउस लौटने के बाद से तुर्की-अमेरिकी रिश्तों में कुछ गर्माहट लौटी है। मार्च में हुई बातचीत के दौरान एर्दोगन और ट्रंप के बीच F-16 फाइटर जेट्स की डील को अंतिम रूप देने की भी चर्चा हुई थी। इसी कड़ी में अब तुर्की F-35 कंसोर्टियम में दोबारा शामिल होने की कोशिश कर रहा है। इस डील के पीछे एक गहरी भू-राजनीतिक रणनीति है। तुर्की, अमेरिका और रूस के बीच संतुलन साधने की कोशिश कर रहा है। एक तरफ वह रूस से मिसाइल सिस्टम लेता है, दूसरी ओर अमेरिका से F-35 जैसे विमानों की उम्मीद रखता है। यह स्थिति NATO के भीतर भी असमंजस पैदा करती है। लेकिन ट्रंप के लौटने के बाद समीकरण बदल गये हैं और तुर्की, एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम को हटाने के लिए तैयार हो गया है।
एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम को बेच सकता है तुर्की
रिपोर्ट के मुताबिक तुर्की, अमेरिका की एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम बेचने की शर्त पर तैयार हो गया है। अभी तक तुर्की ने रूसी एयर डिफेंस सिस्टम एस-400 को अपनी वायुसेना के साथ इंटीग्रेट नहीं किया है। रूस ने जिस तरह से एस-400 को पैक कर भेजा था, वो तुर्की में एक गुप्त स्थान पर वैसा ही रखा हुआ है। अब , तुर्की इस रूसी सिस्टम को किसी तीसरे देश को बेचने की संभावना पर विचार कर रहा है। लेकिन सवाल ये उठता है, कि क्या तुर्की वास्तव में रूस के इस हाईटेक डिफेंस सिस्टम को बेच सकता है? अगर ऐसा होता है तो इससे तुर्की-रूस संबंधों में जबरदस्त तनाव आ सकता है। रूस ने S-400 सिस्टम को बेचते वक्त कई तकनीकी शर्तें रखी थीं, जिसमें ‘तीसरे पक्ष को न बेचे जाने’ की गारंटी भी शामिल है। अगर तुर्की इस दिशा में कदम उठाता है, तो यह मास्को के लिए सीधा धोखा माना जाएगा। कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि तुर्की, पाकिस्तान को भी एस-400 बेचने की संभावना पर विचार कर सकता है, लेकिन इसमें काफी मुश्किलें होंगी और इससे रूस-भारत के रिश्ते एक झटके में खराब सकते हैं, लिहाजा इस डील पर भारत गहरी आपत्ति जता सकता है।